पिता की कीमत
(आदिश्री अरुण)
कलियुग के इस कलिकाल में बच्चे और बच्चियाँ पिता की कीमत को भूल चुके हैं । वे आज के चमक - दमक की दुनिया में अपना घर - संसार अपने
मन के अनुसार हठ पूर्वक आसक्ति के नीव पर
रखते हैं। उसका अपने मन पर नियंत्रण नहीं रहता है । उनके मन में कुछ रहता है और आचरण में कुछ और होता है । अशुभ वस्तुओं के प्राप्ति के बाद भी वे प्रसन्न होते हैं । पिता के बिना घर क्या है ? इसका यदि अनुभव करना हो तो सिर्फ एक
दिन अंगूठे के बिना केवल अँगुलियों से अपने सारे काम करके देखिए तब पिता की कीमत पता
चल जाएगा ।