मेरे माता - पिता !
माता - पिता की सेवा करो तो धन - दौलत, इज्जत के साथ - साथ जन्नत भी मिलना सुलभ हो जाएगा । मुझे वो दिन याद है और वह दिन मेरे आँखों के आगे घूम रहा है जब मेरे पिता जी मुझको कंधे पर बैठा कर स्कूल से घर लेकर आये थे ; क्योंकि उस दिन मैं स्कूल में प्रथम आया था । समस्ती पुर ले जाकर मुझको कीमती टोपी खरीद कर दिए थे और बुक स्टॉल से मेरे लिए गणित का पुस्तक खरीद कर दिए थे । जब मैं बीमार पड़ जाता था तब मेरे माता - पिता जी रात - रात भर जागते थे । एक दिन में चार - चार डाक्टर से सलाह लेते थे। तेज बुखार होने पर मेरे पिता जी मेरे माथे पर रात भर पानी की पट्टियां रखते थे । मेरी माँ पल्लू से पैड़ का तलवा सहलाती थी ताकि जल्दी से बुखार उतर जाय, इसको स्पर्श चिकित्सा कहते हैं । मेरे पिता मेरी हर छोटी - छोटी खुशियों का ख्याल रखते थे । वे मेरी हर डिमांड को पूरा किया करते थे । वे मेरी हर जिद को पूरा करते थे । वे मेरे आँखों में आँशू कभी भी नहीं आने देते थे । एक दिन वे दोनों मुझको छोड़कर अपना चोला बदल लिए । मुझको बहुत कुछ उनसे सीखना था पर वे मुझको अधूरा ज्ञान देकर चले गए । तब से मैं काफी दुःख झेला और अंत में ईश्वर स्वयं मेरे माता - पिता बनकर मेरा हाथ पकड़ लिए । वे जहां भी हों और जिस लोक में हों मुझ पर उनकी छात्र - छाया सदैब बनी रहे । मैं उनके बताये गए रास्ते पर चल कर अभी भी उनके आज्ञा का पालन कर रहा हूँ। अपने माता - पिता के दिखाए रास्ते पर चल कर उनका सबसे अच्छा बेटा बन कर रहना चाहता हूँ । मैं अभी भी अपने माता - पिता का एक आज्ञाकारी बेटा हूँ। मैं अपने माता - पिता को ईश्वर का स्वरुप जानकर उनकी पूजा करता हूँ। क्योंकि जो व्यक्ति अपने माता - पिता का सेवा नहीं कर सका जिसको ईश्वर ने उसके सामने साकार रूप में दिया तो वो ईश्वर की क्या सेवा करेगा जिसको उसने कभी देखा भी नहीं। मेरे ह्रदय में अपने माता - पिता के लिए अबर्णननिय आदर है । मैं आराध्य देव के रूप में पूर्ण-ब्रह्म को जान कर उनके चरणों में अपने आपको समर्पित किया ताकि मेरे माता - पिता और मेरे पिछले पीढ़ियों के सभी लोगों का निश्चित ही उद्धार हो जाय और मैं अपने माता - पिता का कर्ज चुका सकूं ।