अनामी लोक
से चेतावनी
परमेश्वर के लिए न तो कोई कर्तव्य
है और न उन्हें किसी चीजों को प्राप्त
करने की जरूरत ही है। (गीता ३:२२) फिर भी परमेश्वर समय - समय पर अवतार लेकर संसार का हित करने के लिए सब कार्य करते हैं।
जिस युग में जितना कार्य आवश्यक है, परमेश्वर
उसी के अनुसार अवतार लेकर उस कार्य को पूरा करते हैं। श्रीमद्भगवतम् महा पुराण १०;३३:३७ में
महर्षि वेद व्यास जी ने कहा कि
"जीवों पर कृपा करने के लिए ही परमेश्वर अपने आपको मनुष्य रूप में प्रकट करते
हैं और ऐसी - ऐसी लीलाएँ करते हैं जिन्हें सुनकर जीव भगवत्प्रायण हो जाय।" इस
प्रकार परमेश्वर के अवतार लेने की दिव्यता को जानने से मनुष्य की परमेश्वर में
भक्ति हो जाती है और भक्ति से ही परमेश्वर की प्राप्ति हो जाती है। भक्त के लिए तो
परमेश्वर का नाम ही छुटकारे का साधन है और परमेश्वर का नाम ही भक्त का सौंदर्य है। परमेश्वर का नाम जप ही शरीर के अन्दर तथा बाहर दोनों को सुन्दरता
प्रदान करती है। लेकिन परमेश्वर के आराधना में
लोगों ने लापरवाही की और उसके पूजा
पद्धति में विकृति आगई है । याजक और जनसाधारण दोनों ही परमेश्वर के शिक्षा के अनुकूल जीवन न जीकर परमेश्वर को धोखा दे रहे हैं। परमेश्वर के अनुसार मनुष्य न चल कर
परमेश्वर के नजर में मुख्य मनुष्य ने 10 अपराध किया :
(1) परमेश्वर के
आराधना में लोगों ने लापरवाही की और उसके
पूजा पद्धति में विकृत ।
(2)मनुष्य
परमेश्वर के शिक्षा के अनुकूल जीवन न जीकर परमेश्वर को धोखा देते हैं और उसने परमेश्वर के भवन में दशमांश भी देना बन्द कर दिया ।
(3) मनुष्य परमेश्वर के नजर में विश्वास
योग्य नहीं रहा क्योंकि उसने परमेश्वर के
द्वारा दिए गए पर्व - त्यौहारों को मनाना छोड़ दिया इसलिए वे परिवार समेत दंड के
भागी हैं क्योंकि इस गलत कार्य में उनके परिवार के सदस्य भी शामिल हैं ।
(4) जब मनुष्य कष्ट एवं
विपत्ति में था तब उसने ईश्वर पुत्र को मंदिरों में ढूंढा, मस्जिद में ढूंढा, गिरजाघर में ढूंढा, नदियों के जल में ढूंढा, सूर्य और चाँद में ढूंढा, पत्थरों में ढूंढा और ईश्वर पुत्र को कण कण में बसा
दिया और जब वे कृपा करके उसको दुःख एवं पदेशानियों से
बहार निकाल दिया तब वह ईश्वर पुत्र को ही भूल गया । अब वह मनुष्य परमेश्वर के सभी नियमों का पालन नहीं करते बल्कि उसका सब्सटीच्युट ढूंढते हैं।
(5) मनुष्य ने
पूर्ण ब्रह्म के द्वारा भेजे गए पूर्ण ब्रह्म के एकलौता पुत्र का कहना नहीं मना तथा उनके वचनों पर विश्वास नहीं किया।
(6)
वह स्रष्टि
के लोगों पर ही विश्वास किया और उन्हीं के वचनों को श्रेष्ट माना जबकि इस बात को सब जनता है कि
मनुष्य मरणशील है । ईश्वर पुत्र के वचन यदि मनुष्य के ह्रदय को स्पर्श करे तो उसको जीवन मिल सकता है किन्तु मनुष्य के वचन
यदि आपके ह्रदय को स्पर्श करे तो
आपको उनसे जीवन कभी भी नहीं मिलेगा ।
(7)
पहले भी
लोगों ने यही गलती किया था और इसी गलती के कारण वे महिमा में प्रवेश नहीं कर सके ।
उसने 40 वर्षों तक परखा और फिर भी विश्वास नहीं
किया, आज्ञा नहीं माना तथा भटक गया । (धर्मशास्त्र, इब्रानियों 3 : 9 से 13
) आज भी
मनुष्य ने ईश्वर पुत्र को 28 वर्षों तक परखा और फिर भी विश्वास नहीं
किया, आज्ञा नहीं माना तथा भटक गया ।
(8) अनंत जीवन तथा मरे हुए लोगों को फिर से
जीवित कर देने का अधिकार केवल ईश्वर पुत्र के पास है किसी मनुष्य के पास नहीं । पिता जैसे मरे हुए
को जिलाता है उसी तरह पुत्र भी जिसको चाहता है मरे हुए को जिलाता है। पिता किसी का
न्याय भी नहीं करता परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है। इसलिए सब
लोग जैसे पिता का आदर करते हौं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें । (धर्मशास्त्र, इब्रानियों 5 : 21 से 23 )
(9) जो कोई मनुष्य पुत्र को देखे और उस पर विश्वास
करे तो वह अनन्त जीवन पाए । (धर्मशास्त्र, यूहन्ना 6 : 40 ); यदि वह मनुष्य को देखे और उस पर विश्वास करे तो वह अनन्त जीवन
नहीं पाएगा।
(10) जिसके पास ईश्वर पुत्र है उसके पास जीवन है और जिसके पास परमेश्वर का पुत्र
नहीं उसके पास जीवन भी नहीं है ।
(धर्मशास्त्र, 1 यूहन्ना
5 : 12 ) लेकिन फिर भी मनुष्य ईश्वर पुत्र के बातों नहीं चल के मनुष्य का कहना मानता है । लेकिन जो व्यक्ति मनुष्य के आश्रय में है और
उसके पास ईश्वर पुत्र नहीं है तो उस व्यक्ति के पास जीवन भी नहीं है ।
हे मनुष्य ! परमेश्वर की नजर में मनुष्य के द्वारा
किया गया अपराध ही मनुष्य को दुःख, विपत्ति एवं पड़ेशानियों
में डाल रहा है। परमेश्वर के इच्छा की कोई शाब्दिक अभिव्यक्ति नहीं है। पूरे विश्व
का प्रत्येक कार्य - व्यवहार उसके हुक्म में बंधा है, उससे बाहर कुछ भी नहीं है। मनुष्य अपनी
अज्ञानता पर प्रसन्न होता है। माया - बंधनों में पड़ा जीव अहंकारवश परमेशर के कार्य
- व्यापर को अपना किया बताते हैं, तो भी वह परमात्मा उन
पर क्रोधित न होकर उनकी नासमझी पर मुस्कुराते हैं ।
परमेश्वर शांति के धनि हैं, परमेश्वर शांति के राजा हैं, परमेश्वर के पास शांति रूपी धन है। जब तुम परमेश्वर के पास आओगे तब तुम शान्ति से भर जाओगे। परमेशर तुम्हारे घर में शांति का बरसात करेंगे। ऊँची - ऊँची बातों को सुनना बहुत ही अच्छा लगता है पर कुछ जमीनी बातें भी हैं जिसको व्यवहारिक जीवन में उतारना आवश्यक है। यह सच है कि परमेश्वर आपके उदासी को हटा कर खुशियाँ देना चाहते हैं। यह सच है कि परमेश्वर आपके जीवन के दुःख को मिटा कर आनन्द देना चाहते हैं। परन्तु आप परमेश्वर के पास आना नहीं चाहते हैं और न परमेश्वर के घर में सेट्ल करना चाहते हैं। परमेश्वर ने जो वादा किया है अब वह वादे का दिन उपस्थित होने वाला है। परमेश्वर के उस वादे के दिन को ही क़ियामत का दिन कहते हैं। (कुरान, तर्जुमा, सूरः कमर 54 का आयत 46 , पेज नम्बर - 846)
हे मनुष्य ! परमेश्वर ने कहा कि जिस समय मैं तुम्हें
मिटाने लगूँ उस समय मैं आकाश को ढकूँगा और तारों को धुंधला कर दूँगा। मैं सूर्य को
बादल से छिपाऊँगा और चन्द्रमा अपना प्रकाश न देगा। तेरे देश में अंधकार कर दूंगा।
(धर्मशास्त्र, यहेजकेल 32:7-8)
परमेश्वर के उस भयानक दिन के आने से पहले सूर्य
अँधियारा और चाँद लहू के जैसा लाल हो जायेगा। (धर्मशास्त्र, योएल 2:31 तथा प्रेरितों के काम 2 : 20) परमेश्वर ने कहा कि जिस महीने में यह
घटना घटेगी, वह घटना उस महीने के 15 वें दिन घटेगी। उस समय मैं सूर्य को दोपहर के समय अस्त कर दुँगा और इस देश को मैं
दिन दुपहरी अँधियारा कर दूंगा । (धर्मशास्त्र, आमोस 8 : 9)