आदिश्री का महा उपदेश, भाग - 15
(आदिश्री अरुण )
मनुष्य को अपने जीवन में कई जरुरी निर्णय लेने पड़ते हैं । ऐसी अवस्था में कुछ निर्णय तो बहुत आसानी से ले लेते हैं लेकिन कभी - कभी निर्णय लेना बहुत ही कठिन हो जाता है । कई बार मनुष्य गलत निर्णय ले बैठता है जिसका परिणाम उसे जिंदगी भर भुगतना पड़ता है । तो अब प्रश्न यह उठता है कि इन सब पड़ेशानियों से कैसा बचा जाय और किस तरह हमेशा सही निर्णय लिए जाएँ ?
द्वारपर युग में भगवान श्रीकृष्ण जी ने गीता का ज्ञान देकर समझाया था और आज भी मैं आपको ब्रह्म - ज्ञान देकर समझाने ही आया हूँ । इसलिए तुम इधर - उधर मत ताक, मैं तुम्हारे शोक को दूर करके तुम्हें आनंदित करूंगा, मैं तुमको शांति दूंगा और दुःख के बदले आनंद दूंगा ।
मनुष्य को हमेशा ही कोई न कोई निर्णय लेना ही पड़ता है और मनुष्य के द्वारा लिया गया हर एक निर्णय उसके ऊपर जीवन भर अपना प्रभाव छोड़ जाता है । आज का लिया गया निर्णय भविष्य का सुख और दुःख तय करता है - यह न केवल आपके लिए बल्कि आपके पूरे परिवार के लिए भी और आने वाले कि पीढ़ियों के लिए भी।
जब भी कोई मनुष्य पड़ेशानी को झेलता है तो उसका मन विचलित हो जाता है । जब भी कोई मनुष्य पड़ेशानी को झेलता है तो उसका मन व्याकुल हो जाता है । उसके दिमाग में कई तरह की बातें चलने लगता है । ऐसी परिस्थिति में किसी बात का निर्णय लेना किसी युद्ध से कम नहीं होता । मनुष्य अपने जिंदगी का कई जरुरी निर्णय पड़ेशानी को हल करने के लिए लेता है और कई निर्णय निर्णय पड़ेशानी को हल करने के लिए नहीं बल्कि अपने अशांत मन को शांत करने के लिए ले बैठता है । लेकिन जिस तरह कोई मनुष्य दौड़ते हुए भोजन नहीं कर सकता है ठीक उसी तरह अशांत मन कोई भी योग्य निर्णय नहीं ले सकता है ।
वास्तव में यदि मनुष्य शांत मन से कोई निर्णय ले तो वे अपने लिए एक सुखद भविष्य बना सकता है और ऐसा लिया गया निर्णय उसके लिए भविष्य में खुशियाँ लेकर आएगा । इसलिए मेरा यह परामर्श है कि आप कभी भी कोई भी निर्णय पड़ेशानी में या फिर अशांत मन को शांत करने के लिए नहीं लें बल्कि अपने मन को अच्छी तरह से शांत करके, सभी बातों पर विचार करके पूरे संयम के साथ लिया करें ताकि आपके द्वारा लिया गया प्रत्येक निर्णय भविष्य में आपके लिए सुख और खुशियाँ लेकर आए ।