क्या है आदिश्री अरुण की 11 शिक्षाएँ ?
(1) ईश्वर केवल एक हैं । इनके केवल एक ही पुत्र और केवल एक ही संदेशवाहक (Messenger) हैं ।
(2) सभी धर्मशात्र केवल एक इसी ईश्वर की प्रेरणा से लिखी गई है । इसलिए सभी धर्मग्रन्थों को श्रद्धा, प्रेम एवं निष्ठा से पढ़ो ।
(3) ईश्वर के लिए प्रेम बिना शर्त के हों (Unconditional love), कामना रहित हों (Desire-free love) और हमेशा एक ही ईश्वर की अनन्य प्रेम से उपासना करो ।
(4) जो तुम कर्म करते हो, जो खाते हो, जो हवन करते हो, जो दान देते हो और जो तप करते हो केवल एक मात्र इसी ईश्वर में अर्पण करो ।
(5) अपने कमाई का दशमांश भाग ईश्वर के भवन में दो, अपने समय का दशमांश समय परोपकार में लगाओ, अपने समय का दशमांश समय ईश्वर के सुमिरन में लगाओ तथा अपने समय का दशमांश समय ईश्वर के कार्य में लगाओ ।
(6) हमेशा प्रसन्न रहो तथा ईश्वर से अपने लिए क्षमा माँगो । सभी गलत कार्य मन से ही उपजते हैं। अगर मन परिवर्तित हो जाय तो गलत कार्य स्वतः रुक जाएगा ।
(7) उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता है ।
(8) जो मनुष्य इसी जीवन में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है उसको एक ही जन्म में हजारों काम करना पड़ेगा। जैसे - इसी जन्म में गुरु घर जाओ (महीने में कम से कम एक दिन गुरु के घर जाओ), इसी जन्म में गुरु की सेवा करो (महीने में कम से कम एक दिन गुरु के घर जा कर गुरु की सेवा करो), इसी जन्म में गुरु की भक्ति करो (सप्ताह में कम से कम एक दिन गुरु के घर जा कर गुरु की भक्ति करो) और इसी जन्म में नाम दान पालो । अर्थात इसी जन्म में चार जन्म का काम करना है ।
(9) ईश्वर का विश्वास योग्य बनो, ईश्वर के सभी नियमों का पालन करो। आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्णरूपेण विकसित हो चुकने पर ही तुम बहार निकल कर संसार में जीवन व्यतीत करो ।
(10) सभी मरेंगे - साधु या असाधु, धनि या दरिद्र । इसलिए पहले स्वयं सम्पूर्ण मुक्तावस्था को प्राप्त कर लो उसके बाद प्रत्येक कार्य में अपनी शक्ति का प्रयोग करो।
(11) उठो, जागो, मूर्ति पूजा मत करो और सम्पूर्ण रूप से सूरत - शब्द योग के द्वारा अपने स्वरुप को विकसित करो । जड़ की कोई शक्ति नहीं। प्रबल शक्ति आत्मा की ही है । डरो मत ! क्योंकि तुम्हारा नाश नहीं है बल्कि यह संसार सागर से पार उतरने का उपाय है । तुम बहादुर हो । हिचकने वाले पीछे रह जाएँगे और तुम कूद कर सबसे आगे पहुँच जाओगे । इससे अलग हट कर जो अपना उद्धार पाने में लगे हुए हैं, वे कभी भी अपना उद्धार नहीं कर सकेंगे।