परमेश्वर का प्रिय बनने के लिए क्या है 7 तरीका ?
ईश्वर पुत्र अरुण
परमेश्वर का प्रिय बनने के लिए क्या है 7 तरीका ?
परमेश्वर का प्रिय बनने के लिए 7 तरीका निम्न लिखित है :
(1) तत्व ज्ञानी बनो : परमेश्वर का प्रिय बनने के लिए जरुरी है कि आप तत्व ज्ञानी बनिए क्योंकि परमेश्वर ने कहा कि - उत्तम कर्म करने वाले चार प्रकार के भक्त मुझको भजते हैं -
अथार्थी (सांसारिक पदार्थों के लिए भजने वाला)
आर्त (संकट निवारण के लिए भजने वाला)
जिज्ञासु (मुझको जानने की इच्छा से भजने वाला)
ज्ञानी (मुझको तत्व से जानने वाला )
उनमें नित्य मुझमें एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेम भक्ति वाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम हैं, क्योंकि मुझको तत्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यंत प्रिय है। (गीता 7 : 16 -17)
(2) परमेश्वर से निःस्वार्थ प्रेम करो और कामना छोड़कर उनकी पूजा करो : परमेश्वर ने कहा कि जो कोई भक्त मेरे लिए पत्र, पुष्प, फल, आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेम पूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुन रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूँ। (गीता 9 :26 )
(3) आसक्ति को त्याग कर कर्तव्य कर्म करो : परमेश्वर ने कहा कि जो निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्य कर्म करता है वह भक्त मुझको मुझको प्रिय है।
(4) परमेश्वर ने कहा कि जो पुरुष सब भूतों में द्वेष भाव से रहित, स्वार्थ रहित, सबका प्रेमी और हेतु रहित दयालू है तथा ममता से रहित, अहंकार से रहित, सुख-दुखों की प्राप्ति में सम और क्षमावान है अर्थात अपराध करने वाले को भी अभय देने वाला है; तथा जो योगी निरंतर संतुष्ट है, मन-इन्द्रियों सहित शरीर को वश में किए हुए है और मुझमें दृढ़ निश्चय वाला है - वह मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धि वाला मेरा भक्त मुझको प्रिय है। (गीता 12 : 13 -14 )
(5) परमेश्वर ने कहा किमुझमें मन को एकाग्र करके निरन्तर मेरे भजन-ध्यान में लगे हुए हैं, जो भक्तजन अति श्रेष्ट श्रद्धा से युक्त होकर अनन्य प्रेम से मुझ परमेश्वर को भजते हैं वह भक्त मुझको मुझको प्रिय है।
(6) परमेश्वर ने कहा कि जो पुरुष अनन्य प्रेम और भक्ति से युक्त होकर निरन्तर मुझको स्मरण करता है वह भक्त मुझको मुझको प्रिय है।
(7) परमेश्वर ने कहा कि जो पुरुष परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीता शास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा वह मुझको ही प्राप्त होगा - इसमें कोई संदेह नहीं। जो पुरुष ऐसा करेगा उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करने वाला मनुष्यों में कोई भी नहीं है; तथा पृथ्वी भर में उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई भविष्य में होगा भी नहीं। (गीता 18 : 68 - 69)