What is Bhakti Yog ? / क्या है भक्ति योग ?

क्या है भक्ति योग ?

ईश्वर पुत्र अरुण 

What is Bhakti Yog ?

क्या है भक्ति योग ?

भक्ति, संस्कृत के मूल शब्द “भज” से निकला  है – जिसका अर्थ है प्रेममयी सेवा  और संस्कृत में योग का अर्थ है “जोड़ना”। भक्ति योग का अर्थ है परमेश्वर से प्रेममयी सेवा के द्वारा  जुड़ना। प्रेम में स्वार्थ नहीं होता है । प्रेम में लोग बलिदान देते हैं । प्रेम में लोग त्याग करते हैं । प्रेम में उपहार उस वस्तु को देते  हैं जो अनमोल हो । अर्थात वह प्रेम जो अनमोल हो, जिसमें स्वार्थ नहीं हो उस निःस्वार्थ सेवा द्वारा परमेश्वर से जुड़ने का नाम भक्ति योग है । पराभक्ति ही भक्तियोग के अन्तर्गत आती है जिसमें मुक्ति को छोड़कर अन्य कोई अभिलाषा नहीं होती। गीता के अनुसार पराभक्ति तत्व ज्ञान की वह पराकाष्ठा  है जिसको प्राप्त होकर और कुछ भी जानना बांकी नहीं रह जाता ।

सामान्य जीवन में भी आप जो  कुछ कार्य करते हैं वह  अगर इस भावना से  किए  जाएँ कि वे सब परमेश्वर की प्रसन्नता के लिए हैं एवं उनके फलस्वरूप जो भी प्राप्त होगा वो उनको ही अर्पित करें तो यह भी भक्ति योग ही है ।

भक्ति का मतलब यह नहीं है कि आपको मंदिर जाना होगा, आपको पूजा करनी होगी, आपको घंटों भर बैयह कर भजन गाना  होगा, आपको नारियल तोडऩा होगा। भक्ति बुद्धि का ही एक दूसरा आयाम है। बुद्धि सत्य पर जीत हासिल करना चाहती है। भक्ति बस सत्य को गले लगाना चाहती है। भक्ति समझ नहीं सकती मगर अनुभव कर सकती है। बुद्धि समझ सकती है मगर कभी अनुभव नहीं कर सकती। व्यक्ति के पास चुनाव का एक यही विकल्प है - पराभक्ति ।

जब आप किसी चीज या किसी व्यक्ति से अभिभूत होते हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से भक्त हो जाते हैं। लेकिन यदि आप भक्ति करने की कोशिश करते हैं, तो इससे समस्याएं पैदा होती हैं क्योंकि भक्ति और छल के बीच बहुत बारीक रेखा है। भक्ति की कोशिश आपमें कई तरह के भ्रम पैदा कर सकती है। तो आप भक्ति का अभ्यास नहीं कर सकते, लेकिन आप कुछ ऐसी चीजें जरूर कर सकते हैं जो आपको भक्ति तक पहुंचा सके, भक्त बना सके वह चीज है निःस्वार्थ प्रेम ।

यह मार्ग सभी के लिए समान रूप से खुला है। भक्त होने के लिए किसी भी प्रकार की योग्यता, ज्ञान आदि की आवश्यकता नहीं। बस भक्त का सरल, सहज एवं निर्मल होना ही भक्ति के लिए जरूरी है।  

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