क्या है योग का असली मतलब?
ईश्वर पुत्र अरुण
योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक सीधा सा प्रायोगिक विज्ञान है, जो जीवन को जीने की कला सिखाता है । योग के बारे में कहा जाता है कि ये व्यक्ति को सभी धर्म के खूंटो से मुक्त कर जीवन की सरल राह दिखता है । जिस तरह से पर्वतो में हिमालय श्रेष्ठ है उसी प्रकार समस्त दर्शनों, विधियों, नीतियों, नियमों, धर्मो और व्यवस्थाओं में योग श्रेष्ठ है ।
योग शब्द का अर्थ है जोड़ । अर्थात योग का अर्थ है स्वयं को परमात्मा से जोड़ना । योग का अर्थ परमात्मा से मिलन भी कह सकते हैं । जब तक हम स्वयं को परमात्मा से नहीं जोड़ते, समाधि तक पहुंचना असंभव होगा।
योग संस्कृत धातु 'युज' से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। ये क्रियाएँ मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमताओं की तमाम परतों को खोलने वाले ग़ूढ विज्ञान के बहुत ही सारे पहलू से संबंधित हैं। योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार का वर्णन किया गया है , जिसमें ज्ञान योग या तत्व ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग और राज योग इत्यादि मानसिक नियंत्रण मार्ग समाहित हैं । जिसका अभ्यास मनुष्य अपने जीवन में करता है और वह योग के उच्च सीमा या सिद्धि को प्राप्त होता है।
21वीं सदी में सभी लोगों ने योग को सिर्फ व्यायाम तक ही सिमित मान लिया है और अपने आपको स्वस्थ रखने के लिये सभी नुस्खे अपना चुके हैं ; जबकि योग का लक्ष्य स्वयं को परमात्मा से जोड़ कर समाधि तक पहुँचाना है। योग दर्शन या योग का कोई धर्म नहीं है, इसको किसी भी देश, किसी भी धर्म के लोग कर सकते हैं। ये सोचना गलत होगा कि योग किसी धर्म विशेष की सम्पत्ति है । योग तो एक तकनीक है जिसके जरिए हम अपने आप को स्वस्थ रखने की इच्छा रखते हैं।
छह भारतीय दर्शन : (six philosophies of hindu India) हमारे धरोहर में छह दर्शन प्राप्त हैं और भारत के उन छह दर्शनों में से एक है योग। ये छह दर्शन निम्नलिखित हैं -
1.न्याय 2.वैशेषिक 3.मीमांसा 4.सांख्य 5.वेदांत और 6.योग
योग का महत्व : (yoga benefits) योग के माध्यम से शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ्य किया जा सकता है। तीन को स्वस्थ्य रहने से आत्मा स्वत: को स्वस्थ्य महसूस करती है। लंबी आयु, सिद्धि और समाधि के लिए योग किया जाता रहा है और यह सभी धर्मों का महत्वपूर्ण अंग है ।
योग के प्रकार : (types of yoga) : वेद, पुराण आदि ग्रन्थों में योग के अनेक प्रकार बताए गए हैं। भगवान कृष्ण ने योग के तीन प्रकार बताए हैं - ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग। जबकि योग प्रदीप में योग के दस प्रकार बताए गए हैं- 1.राज योग, 2.अष्टांग योग, 3.हठ योग, 4.लय योग, 5.ध्यान योग, 6.भक्ति योग 7.क्रिया योग, 8.मंत्र योग, 9.कर्म योग और 10.ज्ञान योग। इसके अलावा कुछ और बताए गए हैं वे हैं- धर्म योग, तंत्र योग, नाद योग आदि।
आष्टांग योग (Ashtanga yoga) : आष्टांग योग का सर्वाधिक प्रचलन और महत्व है। आष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग हैं । यह आठ अंग सभी धर्मों का सार है। उक्त आठ अंगों से बाहर धर्म, योग, दर्शन, मनोविज्ञान आदि तत्वों की कल्पना नहीं की जा सकती है।
यह आठ अंग हैं- (1) यम (2)नियम (3)आसन (4)प्राणायम (5)प्रत्याहार (6)धारणा (7)ध्यान और (8)समाधि ।
योग को प्रथम यम से ही सिखना होता है।
1.यम- (yama) सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह।
2.नियम- (niyama) शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान।
3.आसन- (asana) आसनों के अनेक प्रकार हैं। आसन के संबंध में हठयोग प्रदीपिका, घरेण्ड संहिता तथा योगाशिखोपनिषद् में विस्तार से वर्णन मिलता है।
4.प्राणायाम- (pranayama) नाड़ी शोधन और जागरण के लिए किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायम के भी अनेकों प्रकार हैं।
5.प्रत्याहार- (pratyahara) इंद्रियों को विषयों से हटाकर अंतरमुख करने का नाम ही प्रत्याहार है।
6.धारणा- (dharana) चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है।
ध्यान - (dhyana yoga) ध्यान का अर्थ है सदा जाग्रत या साक्षी भाव में रहना अर्थात भूत और भविष्य की कल्पना तथा विचार से परे पूर्णत: वर्तमान में जीना।
8.समाधि- (samadhi yoga) समाधि के दो प्रकार है- संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात। समाधि मोक्ष है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए उपरोक्त सात कदम क्रमश: चलना होता है।
योग का संक्षिप्त इतिहास (History of Yoga) : योग का उपदेश सर्वप्रथम ईश्वर ने सूर्य को दिया, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाक से कहा । बाद में यह दो शखाओं में विभक्त हो गया। एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग। ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुरि, वोढु और पच्चंशिख नारद-शुकादिकों ने शुरू की थी। यह ब्रह्मयोग लोगों के बीच में ज्ञान, अध्यात्म और सांख्य योग नाम से प्रसिद्ध हुआ।
दूसरी कर्मयोग की परम्परा विवस्वान की है। विवस्वान ने मनु को, मनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजर्षियों एवं प्रजाओं को योग का उपदेश दिया। उक्त सभी बातों का वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है। वेद को संसार की प्रथम पुस्तक माना जाता है जिसका उत्पत्ति सृष्टि के आदि काल में हुई है। गीता 17 :23 में ईश्वर ने कहा कि सृष्टि के आदि काल में ब्राह्मण, वेद तथा यज्ञ रचे गए । पुरातत्ववेत्ताओं अनुसार योग की उत्पत्ति 5000 ई.पू. में हुई। गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता रहा।
भारतीय योग जानकारों के अनुसार योग की उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक समय पहले हुई थी। योग की सबसे आश्चर्यजनक खोज 1920 के शुरुआत में हुई। 1920 में पुरातत्व वैज्ञानिकों ने 'सिंधु सरस्वती सभ्यता' को खोजा था जिसमें प्राचीन हिंदू धर्म और योग की परंपरा होने के सबूत मिलते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को 3300-1700 बी.सी.ई. पूराना माना जाता है।
योग ग्रंथ योग सूत्र (Yoga Sutras Books) : वेद, उपनिषद्, भगवद गीता, हठ योग प्रदीपिका, योग दर्शन, शिव संहिता और विभिन्न तंत्र ग्रंथों में योग विद्या का उल्लेख मिलता है। सभी को आधार बनाकर पतंजलि ने योग सूत्र लिखा। योग पर लिखा गया सर्वप्रथम सुव्यव्यवस्थित ग्रंथ है- योगसूत्र। योगसूत्र को पांतजलि ने 200 ई.पूर्व लिखा था।