क्यों करें योग ?
ईश्वर पुत्र अरुण
योग संस्कृत धातु 'युज' से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। ये क्रियाएँ मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमताओं की तमाम परतों को खोलने वाले ग़ूढ विज्ञान के बहुत ही सारे पहलू से संबंधित हैं। योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार का वर्णन किया गया है, जिसमें ज्ञान योग या तत्व ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग और राज योग इत्यादि मानसिक नियंत्रण मार्ग समाहित हैं । जिसका अभ्यास मनुष्य अपने जीवन में करता है और वह योग के उच्च सीमा या सिद्धि को प्राप्त होता है।
योग शब्द के दो अर्थ हैं - पहला है जोड़ और दूसरा है समाधि । जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते, समाधि तक पहुँचना कठिन होगा। योग धर्म नहीं है बल्कि यह गणित से कुछ ज्यादा है। दो में दो को मिलाओ चार हो जाएँगे, चाहे आप विश्वास करो या मत करो, सिर्फ करके देख लो। आग में हाथ डालने से हाथ जलेंगे ही, यह विश्वास का मामला नहीं है। योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे है। योग एक प्रायोगिक विज्ञान है जिसके सम्बन्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने गीता अध्याय 4 :1 - 2 में कहा कि मैंने इस अविनाशी योग को सबसे पहले सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा। इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजऋषियों ने जाना किन्तु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्त हो गया । गीता अध्याय 9:1 -2 में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि तुझ दोष दृष्टि रहित भक्त के लिए इस परम गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान को पुनः भलीभांति कहूँगा जिसको जानकर तू दुःखरूप संसार से मुक्त हो जाएगा । यह विज्ञान सहित ज्ञान सब विद्द्याओं का राजा, सब गोपनीयों का राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फल वाला, धर्मयुक्त, साधन करने में बड़ा सुगम और अविनाशी है । वास्तव में धर्म लोगों को खूँटे से बाँधता है और योग सभी तरह के खूँटों से मुक्त होने का मार्ग अर्थात मुक्ति का मार्ग बताता है। मैं तो यह कहूँगा कि योग उस परम शक्ति की ओर क्रमश: बढ़ने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है और यदि आप उस ओर चल पड़े हैं तो पहुँच ही जाएँगे। योग किए बगैर आप भवसागर पार नहीं कर सकते और जो योग करके छलाँग नहीं लगाएँगे, तो वे यहीं रह जाएँगे। योग की शुरुआत शरीर के तल से ही करना होगा । योग से समस्त तरह की चित्तवृत्तियों का निरोध होता है- योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:। दुनिया के सारे धर्म इस चित्त पर ही कब्जा करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने तरह-तरह के नियम, क्रिया कांड, ग्रह-नक्षत्र और ईश्वर के प्रति भय को उत्पन्न कर लोगों को अपने-अपने धर्म से जकड़े रखा है। मैं तो कहता हूँ कि इस चित्त को ही खत्म करो। योग विश्वास करना नहीं सिखाता और न ही संदेह करना। योग यह कहता है कि आपमें जानने की क्षमता है, इसका उपयोग करो। आपकी आँखें हैं इससे और भी कुछ देखा जा सकता है, जो सामान्य तौर पर दिखता नहीं। आपके कान हैं, इनसे वह भी सुना जा सकता है जिसे अनाहत कहते हैं। इसके लिए सर्वप्रथम आप अपने इंद्रियों को बलिष्ट बनाओ।
योग के सम्बन्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने गीता 6 :23 में कहा कि जो दुःख रूप संसार के संयोग से रहित है तथा जिसका नाम योग है उसको जानना चाहिए । गीता 6 :17 में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि दुखों को नाश करने वाला योग तो यथायोग्य आहार - विहार करने वाले का, कर्मों में यथायोग्य चेष्टा करने वाले का, और यथायोग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है ।
योग के आठ अंग बताये गए हैं - (1) यम (2) नियम (3) आसन (4) प्राणायाम (5) प्रत्याहार (6) धारणा (7) ध्यान (8) समाधि। वर्तमान में योग के तीन ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान ।
योग के निम्नलिखित फायदे हैं -
(1) योग से शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक लाभ मिलता है । योग ध्यात्मिक, शारीरिक और मानसिक रूप से मानव जाती के लिए वरदान है ।
(2) नित्य दिन योग के अभ्यास से मानसिक तनाव दूर होता है, अच्छी नींद आती है, पाचन क्रिया सही ढंग से काम करता है और अच्छी भूख लगती है ।
(3) योगाभ्यास से रोगों से लड़ने कि शक्ति बढ़ती है, बुढ़ापे में भी जवान बने रह सकते हैं, त्वचा पर चमक आजाती है, शरीर स्वस्थ, निरोग और बलवान बनता है ।
(4)योग से आपकी आयु लंबी होती होती है, फेफड़ा संबधी रोग नष्ट होजाते हैं, अस्थमा, साइनोसाइटिस, नजला, जुकाम, नर्वससिस्टम से संबधित रोग नष्ट हो जाते हैं।
(5) योग से अनिद्रा, डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया, विहेभियर डिसऑर्डर, बाइपोलर, हार्ट, किडनी और लिवर जैसे असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं, ब्लड शुगर, एल डी एल, ट्राइग्लिसराइड इत्यादि नॉर्मल हो जाते हैं।
(6) योग रोगों को दूर भगानेवाली प्रक्रिया ही नहीं बल्कि जीवन को बेहतर बनाने वाली पद्धति है । योग से गहन आत्मिक शांति मिलती है और जीवन आनन्दमय हो जाता है।
(7) योग का सबसे प्रमुख पक्ष है साँस और गति के बीच तालमेल स्थापित होना जिससे शांति और विश्राम की स्थिति में पहुचा जासकता है । तनाव चक्र को तोड़ने के लिए तथा विहेवियर डिसऑर्डर को ठीक करने के लिए यह सर्वोत्तम प्रक्रिया है । यह ह्रदय रोग से लेकर पूरे शरीर के प्रतिरोधी तंत्र पर प्रभाव डालता है । खास करके बी० पी०, ऑटोमयुन डिसऑर्डर, घबराहट, अवसाद, कार्डियो वैस्कुलर सिस्टम पर योग का आश्चर्जनक प्रभाव देखने को मिलता है।