कैसे बचें दुःख रूप संसार से ?
ईश्वर पुत्र अरुण
गीता 6 :23 में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जो दुःख रूप संसार के संयोग से रहित है तथा जिसका नाम योग है उसको जानना चाहिए । गीता 6 :17 में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि दुखों को नाश करने वाला योग तो यथायोग्य आहार - विहार करने वाले का, कर्मों में यथायोग्य चेष्टा करने वाले का, और यथायोग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है । एक दिन में 24 घंटे होते हैं जिसमें
(1) 2 घंटे खाने में तथा घूमने में (Walking करने में) खर्च करो
(2) 8 घंटे काम या नौकरी करने में खर्च करो
(3) 6 घंटे सोने में खर्च करो
(4) 8 घंटे पूजा, योग, ध्यान, जप इत्यादि में खर्च करो
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि योग एक प्रायोगिक विज्ञान है । उन्होंने गीता अध्याय 4 :1 - 2 में कहा कि मैंने इस अविनाशी योग को सबसे पहले सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा। इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजऋषियों ने जाना किन्तु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्त हो गया । गीता अध्याय 9:1 -2 में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि तुझ दोष दृष्टि रहित भक्त के लिए इस परम गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान को पुनः भलीभांति कहूँगा जिसको जानकर तू दुःखरूप संसार से मुक्त हो जाएगा । यह विज्ञान सहित ज्ञान सब विद्द्याओं का राजा, सब गोपनीयों का राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फल वाला, धर्मयुक्त, साधन करने में बड़ा सुगम और अविनाशी है । वास्तव में धर्म लोगों को खूँटे से बाँधता है और योग सभी तरह के खूँटों से मुक्त होने का मार्ग अर्थात मुक्ति का मार्ग बताता है। मैं तो यह कहूँगा कि योग उस परम शक्ति की ओर क्रमश: बढ़ने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है और यदि आप उस ओर चल पड़े हैं तो पहुँच ही जाएँगे। योग किए बगैर आप भवसागर पार नहीं कर सकते और जो योग करके छलाँग नहीं लगाएँगे, तो वे यहीं रह जाएँगे।
योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे है, जो जीवन को जीने की कला सिखाता है । योग के बारे में कहा जाता है कि ये व्यक्ति को सभी धर्म के खूंटो से मुक्त कर जीवन की सरल राह दिखता है । जिस तरह से पर्वतो में हिमालय श्रेष्ठ है उसी प्रकार समस्त दर्शनों, विधियों, नीतियों, नियमों, धर्मो और व्यवस्थाओं में योग श्रेष्ठ है ।
योग शब्द का अर्थ है जोड़ । अर्थात योग का अर्थ है स्वयं को परमात्मा से जोड़ना । योग का अर्थ परमात्मा से मिलन भी कह सकते हैं । जब तक हम स्वयं को परमात्मा से नहीं जोड़ते, समाधि तक पहुंचना असंभव होगा।
योग संस्कृत धातु 'युज' से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। ये क्रियाएँ मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमताओं की तमाम परतों को खोलने वाले ग़ूढ विज्ञान के बहुत ही सारे पहलू से संबंधित हैं। योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार का वर्णन किया गया है , जिसमें ज्ञान योग या तत्व ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग और राज योग इत्यादि मानसिक नियंत्रण मार्ग समाहित हैं । जिसका अभ्यास मनुष्य अपने जीवन में करता है और वह योग के उच्च सीमा या सिद्धि को प्राप्त होता है।
21वीं सदी में सभी लोगों ने योग को सिर्फ व्यायाम तक ही सिमित मान लिया है और अपने आपको स्वस्थ रखने के लिये सभी नुस्खे अपना चुके हैं ; जबकि योग का लक्ष्य स्वयं को परमात्मा से जोड़ कर समाधि तक पहुँचाना है।
भगवान कृष्ण ने योग के तीन प्रकार बताए हैं - ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग; जबकि योग प्रदीप में योग के दस प्रकार बताए गए हैं- 1.राज योग, 2.अष्टांग योग, 3.हठ योग, 4.लय योग, 5.ध्यान योग, 6.भक्ति योग 7.क्रिया योग, 8.मंत्र योग, 9.कर्म योग और 10.ज्ञान योग। इसके अलावा कुछ और बताए गए हैं वे हैं- धर्म योग, तंत्र योग, नाद योग आदि।
आष्टांग योग (Ashtanga yoga) : आष्टांग योग का सर्वाधिक प्रचलन और महत्व है। आष्टांग योग में योग के आठ अंग हैं । यह आठ अंग सभी धर्मों का सार है। उक्त आठ अंगों से बाहर धर्म, योग, दर्शन, मनोविज्ञान आदि तत्वों की कल्पना नहीं की जा सकती है।
योग के आठ अंग हैं- (1) यम (2)नियम (3)आसन (4)प्राणायम (5)प्रत्याहार (6)धारणा (7)ध्यान और (8)समाधि ।
योग को प्रथम यम से ही सिखना होता है।
1.यम- (yama) सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह।
2.नियम- (niyama) शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान।
3.आसन- (asana) आसनों के अनेक प्रकार हैं। आसन के संबंध में हठयोग प्रदीपिका, घरेण्ड संहिता तथा योगाशिखोपनिषद् में विस्तार से वर्णन मिलता है।
4.प्राणायाम- (pranayama) नाड़ी शोधन और जागरण के लिए किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायम के भी अनेकों प्रकार हैं।
5.प्रत्याहार- (pratyahara) इंद्रियों को विषयों से हटाकर अंतरमुख करने का नाम ही प्रत्याहार है।
6.धारणा- (dharana) चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है।
ध्यान - (dhyana yoga) ध्यान का अर्थ है सदा जाग्रत या साक्षी भाव में रहना अर्थात भूत और भविष्य की कल्पना तथा विचार से परे पूर्णत: वर्तमान में जीना।
8.समाधि- (samadhi yoga) समाधि के दो प्रकार है- संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात। समाधि मोक्ष है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए उपरोक्त सात कदम क्रमश: चलना होता है।
योग के निम्नलिखित फायदे हैं -
(1) योग से शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक लाभ मिलता है । योग ध्यात्मिक, शारीरिक और मानसिक रूप से मानव जाती के लिए वरदान है ।
(2) नित्य दिन योग के अभ्यास से मानसिक तनाव दूर होता है, अच्छी नींद आती है, पाचन क्रिया सही ढंग से काम करता है और अच्छी भूख लगती है ।
(3) योगाभ्यास से रोगों से लड़ने कि शक्ति बढ़ती है, बुढ़ापे में भी जवान बने रह सकते हैं, त्वचा पर चमक आजाती है, शरीर स्वस्थ, निरोग और बलवान बनता है ।
(4)योग से आपकी आयु लंबी होती होती है, फेफड़ा संबधी रोग नष्ट होजाते हैं, अस्थमा, साइनोसाइटिस, नजला, जुकाम, नर्वससिस्टम से संबधित रोग नष्ट हो जाते हैं।
(5) योग से अनिद्रा, डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया, विहेभियर डिसऑर्डर, बाइपोलर डिजीज , हार्ट, किडनी और लिवर जैसे असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं, ब्लड शुगर, एल डी एल, ट्राइग्लिसराइड इत्यादि नॉर्मल हो जाते हैं।
(6) योग रोगों को दूर भगानेवाली प्रक्रिया ही नहीं बल्कि जीवन को बेहतर बनाने वाली पद्धति है । योग से गहन आत्मिक शांति मिलती है और जीवन आनन्दमय हो जाता है।
(7) योग का सबसे प्रमुख पक्ष है साँस और गति के बीच तालमेल स्थापित होना जिससे शांति और विश्राम की स्थिति में पहुचा जासकता है । तनाव चक्र को तोड़ने के लिए तथा विहेवियर डिसऑर्डर को ठीक करने के लिए यह सर्वोत्तम प्रक्रिया है । यह ह्रदय रोग से लेकर पूरे शरीर के प्रतिरोधी तंत्र पर प्रभाव डालता है । खास करके बी० पी०, ऑटोमयुन डिसऑर्डर, घबराहट, अवसाद, कार्डियो वैस्कुलर सिस्टम पर योग का आश्चर्जनक प्रभाव देखने को मिलता है।