कलियुग में क्यों और कब से होने लगी भगवान कल्कि जी की पूजा ?
( ईश्वर पुत्र अरुण )
कलियुग में क्यों होने लगी भगवान श्री कल्कि जी की पूजा:
रामायण में भविष्यवाणी किया गया है कि
"कलियुग केवल नाम अधारा; सुमरि - सुमरि नर भाव से पारा।"
अर्थात कलियुग में केवल भगवान श्री हरी का नाम ही उद्धार का एक मात्र उपाय है । उनके नाम का सुमिरन करने मात्र से ही लोग भव से पार हो जाएँगे । श्रीमद्भागवतम माह पुराण 12;3 :52 में चार वेद और अठारह माह पुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी ने भविष्यवाणी किया कि " जो फल सत्य युग में भगवान का ध्यान करने से, त्रेता में बड़े - बड़े यज्ञों के द्वारा उनकी आराधना करने से और द्वापर में विवधि पूर्वक उनकी पूजा, सेवा करने से जो फल मिलता है; वह कलियुग में केवल भगवान के नाम का कीर्तन करने से ही प्राप्त हो जाता है ।"
श्री नरसिह पुराण अद्याय 54 पेज न० 239 में यह भविष्यवाणी किया गया है कि " सत्य युग में भगवान का ध्यान करने से, त्रेता में बड़े - बड़े यज्ञों के द्वारा उनकी यजन करने से और द्वापर में विवधि पूर्वक उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है; वह कलियुग में केवल भगवान के नाम का कीर्तन करने से ही प्राप्त हो जाता है ।"
पद्म पुराण, पाताल खण्ड, शीर्षक "नाम कीर्तन कि महिमा, भगवान के चरण चिन्हों का परिचय तथा प्रत्येक मास में भगवान की विशेष आराधना का वर्णन" पेज न० 565 में पार्वती जी ने शंकर जी से पूछी कि " हे कृपानिधे ! विषय रूपी ग्राहों से भरे हुए भयंकर कलियुग के आने पर संसार के सभी मनुष्य पुत्र, स्त्री और धन आदि कि चिन्ता से व्याकुल रहेंगे । ऐसी दशा में उनके उद्धार का क्या उपाय है ?"
"कलियुग केवल नाम अधारा; सुमरि - सुमरि नर भाव से पारा।"
अर्थात कलियुग में केवल भगवान श्री हरी का नाम ही उद्धार का एक मात्र उपाय है । उनके नाम का सुमिरन करने मात्र से ही लोग भव से पार हो जाएँगे । श्रीमद्भागवतम माह पुराण 12;3 :52 में चार वेद और अठारह माह पुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी ने भविष्यवाणी किया कि " जो फल सत्य युग में भगवान का ध्यान करने से, त्रेता में बड़े - बड़े यज्ञों के द्वारा उनकी आराधना करने से और द्वापर में विवधि पूर्वक उनकी पूजा, सेवा करने से जो फल मिलता है; वह कलियुग में केवल भगवान के नाम का कीर्तन करने से ही प्राप्त हो जाता है ।"
श्री नरसिह पुराण अद्याय 54 पेज न० 239 में यह भविष्यवाणी किया गया है कि " सत्य युग में भगवान का ध्यान करने से, त्रेता में बड़े - बड़े यज्ञों के द्वारा उनकी यजन करने से और द्वापर में विवधि पूर्वक उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है; वह कलियुग में केवल भगवान के नाम का कीर्तन करने से ही प्राप्त हो जाता है ।"
पद्म पुराण, पाताल खण्ड, शीर्षक "नाम कीर्तन कि महिमा, भगवान के चरण चिन्हों का परिचय तथा प्रत्येक मास में भगवान की विशेष आराधना का वर्णन" पेज न० 565 में पार्वती जी ने शंकर जी से पूछी कि " हे कृपानिधे ! विषय रूपी ग्राहों से भरे हुए भयंकर कलियुग के आने पर संसार के सभी मनुष्य पुत्र, स्त्री और धन आदि कि चिन्ता से व्याकुल रहेंगे । ऐसी दशा में उनके उद्धार का क्या उपाय है ?"
महादेव जी ने कहा - देवी ! कलियुग में हरि का जो नाम होगा, केवल वही नाम ही लोगों को संसार समुद्र से पार लगाने वाला है ।
कौन हैं ईश्वर के सेकेंडरी अवतार (Secondari incarnation of God) ? कलियुग में कब से होने लगी भगवान कल्कि जी की पूजा:
भारत के पूण्य भूमि पर 21 जुलाई 1969 ई० से ही भगवान श्री कल्कि जी की पूजा होने लगी । लेकिन सर्वप्रथम जिन्होंने भारत की राजधानी दिल्ली में नारायणा ध्वज लहराने, भगवान श्री कल्कि जी के अवतार लेने, उनके नाम कि घोषणा करने का काम किया उसका नाम ईश्वर पुत्र अरुण है, जिनका जन्म 1 जनवरी 1961 ई ० में भारत के पूण्य भूमि पर हो चुका था। वे पूण ब्रह्म की गोद से उतरकर धरती पर इसलिए आए ताकि सम्पूर्ण मनुष्य जाति का उद्धार हो । कल्कि पुराण के अनुसार कलियुग में ये ईश्वर के सेकेंडरी अवतार हैं (Secondari incarnation of God) और उनको जन्म से ही भगवान कल्कि के अवतार लेने की बात याद थी । वे बचपन से ही भगवान कल्कि जी के लीला स्थल का तस्वीर बनाया करते थे। एकदिन पूर्णब्रह्म ने दर्शन में उनको कहा कि तुम धरती पर मेरी सेवा करने आए हो मनुष्य की सेवा करने नहीं आए । यह सुनकर उन्होंने तुरत ही परचेज एक्जिक्यूजिटिव की नौकरी से त्याग पत्र दे दिया । इस प्रकार अचानक 14 अक्टूबर 1989 से उनके जीवन का दूसरा अध्याय शुरू हुआ। अब उनके दिनचर्या में शुरू हुआ ईश्वर के बारे में लोगों को बताना तथा लोगों को उच्चतम श्रेणी का ज्ञान "ब्रह्म-ज्ञान" का उपदेश करना, जो धरती पर पूर्णतः लुप्त हो चुका था ।
दिनांक 14 अक्टूबर 1989 को उन्होंने एक सभा को संबोधित करते हुए यह घोषणा किया कि - "लो मैं आ गया ताकि ईश्वर की इच्छा पूरी हो "। 14 अक्टूबर 1989 को ही उन्होंने भगवान कल्कि-मिनिस्ट्री का कार्य भार संभाला और 3 अक्टूबर 1990 को सबसे पहले भारत की राजधानी दिल्ली में नारायण ध्वज लहरा कर लोगों से कहा कि - "उठ ! प्रकाशवान हो क्योंकि तेरा प्रकाश आगया है और उनका तेज तेरे मुख पर चमकेगा ।"
भगवान कल्कि ने कब लिया अवतार:
इतिहास और पौराणिक कथा को देखिए । भगवान राम और भगवान कृष्ण के आने के बारे में कोई नहीं जाना। यहाँ तक कि भगवान कृष्ण सात साल की उम्र में सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को कँगूलिया अँगुली से उठाये रहे फिर भी न तो मथुरा के राजा कंस ने जाना और न मथुरा के लोग ही जान पाए कि कृष्णावतार होगया। भगवान बुद्ध के बारे में कोई भी नहीं जाना कि ये भगवान विष्णु के अवतार हैं। ठीक उसी तरह भगवान कल्कि जी भी शम्भल ग्राम में दिनांक 2 मई 1985 को वैशाख मास शुक्ल पक्ष द्वादशी को अवतार लिए लेकिन कल्कि जी के अवतार लेने के बारे में कोई नहीं जाना। कल्कि पुराण 1;2:15 तथा कल्कि कम्स इन 1985 पुस्तक के तीसरा अध्याय ऊपर लिखे बातों की पुष्टि करता है। धर्मग्रन्थ के अनुसार भगवान कल्कि उत्तर भारत के शम्भल ग्राम में श्रेष्ठ ब्राह्मण (Group of Brahman) विष्णुयश के घर अवतार लेंगे । उत्तर भारत में दो शम्भल ग्राम है - एक मुरादाबाद में तथा दूसरा मथुरा और वृन्दावन के बोर्डर पर (गौड़ी मठ के पास) । मुरादाबाद शम्भल में 98 % मुस्लिम हैं तथा 2 % में अन्य जातियाँ निवास करती है तथा यहाँ बहुत कम ही ब्रह्मण परिवार हैं। यहाँ के अधिकतर लोग इस्लाम धर्म को मानने वाले हैं और भगवान कृष्ण पूजा करने वाले लोग नहीं के बराबर हैं । अतः इस शम्भल में Group of Brahman की कल्पना ही नहीं किया जासकता है । मथुरा और वृन्दावन के बोर्डर पर (गौड़ी मठ के पास) जो शम्भल है वहाँ पार ब्रह्मणों की संख्या बहुत ही अधिक लोग हैं तथा यहाँ के अधिकतर लोग भगवान कृष्ण की पूजा करने वाले हैं । अतः यही शम्भल भगवान कल्कि जी का अवतार स्थान है। संक्षिप्त भविष्यपुराण 4;5:27-28 ; प्रतिसर्ग पर्व, चुतुर्थ खंड पेज नो 331 के अनुसार भगवान श्री विष्णु ने कहा कि मैं देवताओं के हित और दैत्यों के विनाश के लिए कलियुग में अवतार लूंगा और कलियुग में भूतल पर स्थित सूक्ष्म रमणीय दिव्य वृन्दावन में रहस्यमय एकांत - क्रीड़ा करूँगा। घोर कलियुग में सभी श्रुतियाँ गोपी के रूप में आकर रासमंडल में मेरे साथ रासक्रीड़ा करेगी। कलियुग के अंत में राधा जी के प्रार्थना को स्वीकार करके मैं रहस्यमयी क्रीड़ा को समाप्त कर के कल्कि के रूप में अवतीर्ण होऊंगा ।
इस समय (Presently) भगवान कल्कि की आयु 31 साल है तथा इनकी शादी पद्म जी के साथ 4 अप्रैल 2006 को श्रीलंका में हुई ।