आदिश्री अरुण जी ने अपने मन की व्यथा बताते हुए लोगों को चेतावनी देने के क्रम में कहा कि - प्राणी कितना मुर्ख है यह बात मैं आप लोगों को कैसे बताऊँ ? जरा उनको देखो कि वह परमेश्वर के आश्रय में रहना छोड़ कर धन, दौलत, यश, कीर्ति, पत्नी और अलप काल के सुख के पीछे भागता है ।
मातु, पिता, गुरु, स्वामी को
सिर धरि नबाऊं प्रातः काल ।
जानेउ यह सत्य लोग सब
पुनर जनम नहीं पाय ।।
क्या वह यह नहीं जानता है कि धन, दौलत, यश, कीर्ति, पत्नी और अल्प काल के सुख उनके साथ नहीं जाएँगे और परमेश्वर के आश्रय में रहने से उनका निश्चित ही उद्धार हो जाएगा ?
वह माता, पिता, गुरु और परमेश्वर चारों का तिरस्कार कर अल्पकालीन सुख में डूबा रहता है जबकि माता, पिता, गुरु और परमेश्वर - ये चारों पूजने योग्य होते हैं और इन चारों में से किसी एक का भी तिरस्कार करने पर उसको इस लोक में क्या परलोक में भी सुख और शांति नहीं मिल सकती है ।
क्या वे यह भी भूल गए कि माता, पिता, गुरु, ऋषि और देवताओं का ऋण चुकाए बिना उन्हें मुक्ति भी नहीं मिल सकती है। जो लोग माता, पिता, गुरु, ऋषि और देवताओं का तिरस्कार करते हैं अथवा उनसे उल्टा बोलते हैं, वे बहुत बड़ा पाप करते हैं । उनके पापों का संसार में कोई प्रायश्चित नहीं है।
सदा याद रखिये :मातु, पिता, गुरु, स्वामी को
सिर धरि नबाऊं प्रातः काल ।
जानेउ यह सत्य लोग सब
पुनर जनम नहीं पाय ।।