आदिश्री अरुण फेथ के राही

 

जो आदिश्री अरुण  के उपदेश में विश्वास रखता है और यह स्वीकार करता है कि (1) पूर्ण ब्रह्म का  केवल एक ही पुत्र है जिनको परमात्मा कहते हैं,  जो सम्पूर्ण  सृष्टि के रचयिता हैं, जो सभी मनुष्य की  आत्मा हैं और जो सभी आध्यात्मिकता एवं धर्मों  के निकलने वाले झरना स्रोत के मुख हैं (उद्गम के स्रोत हैं)  (2) केवल उन्हीं परमात्मा के  पास जीवन देने और जीवन को वापस लेने की शक्ति मौजूद है  (3) केवल उन्हीं परमात्मा से निकल कर मनुष्य जन्मने और मरने वाले शरीर में आया (4) केवल उन्हीं परमात्मा को प्राप्त कर जन्म - मृत्यु के चक्र से छुटकारा पा सकता है (5) केवल उन्हीं परमात्मा के आश्रय में रहकर सम्पूर्ण कर्म करने के बाबजूद भी मनुष्य उद्धार पासकता है और (6) केवल परमात्मा उन्हीं के मार्ग पर चल कर मनुष्य निज धाम वापस लौट सकता है, केवल ऐसा विश्वास करने वाला व्यक्ति ही  आदिश्री फेथ के अंतर्गत  हैं।
आदिश्री अरुण  का अर्थ:
"आदिश्री" शब्द का अर्थ होता है - ऊँचा गरिमा या कोई प्रशिद्ध या कोई विशिष्ट । "आदिश्री" शब्द का अर्थ यह भी होता है - जो सबसे पहले जन्म लिया हो या जो सबसे पहले प्रकट हुआ हो या आदि पुरुष और "आदिश्री" शब्द ईश्वरपुत्र को भी संबोधित करता है।
दूसरी ओर "अरुण" शब्द का अर्थ होता है - प्रकाश, सूर्य। इसलिए "आदिश्री " + "अरुण" (COMBINATION OF AADISHRI ARUN) का अर्थ होता है प्रकाश से भरा ऊँचा गणमान्य या विशिष्ट व्यक्ति " ईश्वरपुत्र "
Length of name (AADISHRI) – 8 letters ( ८ अक्षर )
Birth Star – Sun (सूर्य )
Rashi – Mesh (मेष)
Zodiac Sign – Aries (मेष)
Nakshtra – Krithika (कृतिका)
आदिश्री ही वह पहिलौठा (FIRST BORN) अथवा आदि पुरुष है जिसने प्रकाश रूप में आकार धारण किया और फिर बाद में अरुण नाम से शारीर धारण किया। आदिश्री अरुण जी का विचार धारा (दर्शन) और उनकी शिक्षाएँ निराकार ईश्वर - अनामी की प्रवृति (based on the Anaami - the formless nature of God) पर आधारित है जिसने अपने पहिलौठा (FIRST BORN) होने के स्तित्व से संपूर्ण ब्रह्मांड को रचा । इनकी विचार धारा किसी व्यक्ति विशेष में भेद - भाव उत्पन्न नहीं करता है और न एक आत्मा होने के कारण मानव के एक जाति, एक पंथ, एक धर्म के होने में अर्चन पैदा करता है और न लिंग और लुप्तप्राय जातियों में भेद - भाव उतपन्न करने वाली भावनाओं का समर्थन करता है।
आदिश्री अरुण के विचार धारा का चार स्तम्भ (Four Pillars of AADISHRI Philosophy) हैं :
चार स्तम्भ ही आदिश्री अरुण की शिक्षाओं का मुख्य केन्द्र है। इन चार सत्यों को समझ पाना बेहद आसान है। यह मानव जीवन से जुड़े बेहद आम बातें हैं जिनके पीछे छुपे गूढ़ रहस्यों को आप कभी समझ नहीं पाते। यह चार सत्य निम्नलिखित हैं:
(1) दुख :- जीवन का अर्थ ही दुख है। जन्म लेने से लेकर मृत्यु तक मनुष्य को कई चरणों में दुख भोगना पड़ता है।
(2) चाहत :- दुख का कारण चाहत है। मनुष्य के सभी दुखों का कारण उसका कार्य, मोह या व्यक्ति के प्रति लगाव ही है।
(3) दुखों का अंत संभव है :- कई बार मनुष्य अपने दुखों से इतना परेशान हो जाता है कि वह आत्म हत्या भी कर लेता है। मनुष्य को यह समझना चाहिए कि उसके दुखों का अंत संभव है।
(4) दुखों के निवारण का मार्ग :- सूरत शब्द योग ही मनुष्य के समस्त दुखों के निवारण का मार्ग है। इस मार्ग पर चल कर मनुष्य अपने समस्त दुखों से छुटकारा पा सकता है।
सूरत शब्द योग :-
आदिश्री अरुण के अनुसार दुखों के निवारण का मार्ग एक मात्र केवल सूरत शब्द योग ही है जो जो निम्न प्रकार वर्णित हैं। आदिश्री अरुण के मत के अनुसार मनुष्य को इन्हीं मार्गों का अनुसरण करना चाहिए :-
नौ द्वार (Nine gates) से संसार जुड़ा है। इन नौ द्वार के बिना संसार नहीं जुड़ सकता। शब्द के बिना कोई भी आदमी दसम द्वार से नहीं जुड़ सकता। दसवां द्वार से परमेश्वर के घर का मार्ग जुड़ा है। परमेश्वर के घर जाने का मार्ग दसम द्वार से मिलेगा। ज्यों - ज्यों तुम नाम की कमाई करोगे त्यों - त्यों दसम द्वार के करीब पहुंचोगे। इसलिए नाम जप सिख कर सेवा करो। जोड़ मत लगा बल्कि परमेश्वर से प्रेम कर तब दसवां द्वार खुल जायेगा। दसमा द्वार खोलने का प्रेम ही कोड (CODE) है। तुम्हारे अन्दर प्रेम कब जन्म लेगा ? जब तुम "मेरा " और "तेरा " (मेरा राग को कहते हैं और तेरा द्वेष को कहते हैं। जो अच्छा लगे वह मेरा है और जो अच्छा नहीं लगे वह तेरा है) अर्थात राग और द्वेष को छोड़ दोगे। यही "राग और द्वेष " भगवन की प्राप्ति में सबसे बड़ा रुकावट है।
गुरूद्वारे तक पहूँचना और बात है और गुरु का वचन पालन कर परमेश्वर तक पहुँचना और बात है। संसार तक पहुँचने के लिए नौ दरवाजे (Nine gates) हैं परन्तु परमेश्वर तक पहुँचने के लिए केवल एक ही दरवाजा है वह है दसम द्वार और वह भी बन्द है। मनुष्य का जब हजारों जन्म का पूण्य फल एक जगह इकट्ठा होता है तब उसको सच्चा गुरु मिलता है। अर्थात कम से कम एक हजार जन्म के बाद सच्चा गुरु से मुलाकात होने की सम्भावनाएँ होती है और जब मनुष्य गुरु के शरण में जाता है तो वह गुरु कृपा करके परमेश्वर तक पहुँचने की युक्ति को सिखा देता है। इसी युक्ति को सूरत शब्द योग कहते हैं। वह गुरु जिसको अगम धारा कहते हैं वह पाँच मण्डलों को पार परमेश्वर का घर है वहाँ तक पहुंचने की युक्ति सिखा देता है और परमेश्वर का पांच नाम दान में दे देता है। उसी पांच नाम का सुमिरन करता हुआ मनुष्य अनामी देश के अथाह प्रकाश सागर रूप  घर तक पहुंच जाता है और तब उसकी चाह मिट जाती है ।

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