गुरु पर्व के शुभ अवसर पर आदिश्री का सन्देश


हे पृथ्वी पर रहने वाले  आलसी एवं असावधान लोगों ! अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती है। तुम यह भेद जान लो कि सबकुछ कुछ नहीं से शुरू हुआ था। सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से तुम  नदी नहीं पार कर सकते हो अगर तुम  चाहते हो  कि कोई चीज अच्छे से हो तो उसे खुद करो  काम इतनी शांति से करो कि सफलता शोर मचा दे। अच्छे काम करते रहो चाहे लोग तारीफ करें या करें क्या तुम्हें पता है कि आधी से ज्यादा दुनिया सोती रहती हैसूरजफिर भी उगता है अगर एक हारा हुआ इंसान हारने के बाद भी मुस्करा दे तो जीतने वाला भी जीत की खुशी खो देता है। देखो ! पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और आकाश लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं। आवश्यकता को देख कर विचलित मत हो आवश्यकता डिजाइन का आधार है। हर एक काम को करने से पहले डिजाइन तैयार किया जाता है यदि डिजाइन ही तैयार नहीं है तो सफलता कैसे मिल सकती है ? वही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि " मैं  विजयी होऊँगा " जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं - पहले वे जो सोचते हैं पर करते नहीं दूसरे वे जो करते हैं पर सोचते नहीं। वह ज्ञान बेकार है जिसमें   आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति मिले, वह ज्ञान बेकार है जिसमें गति और शक्ति  पैदा हो, वह ज्ञान बेकार है जिसमें आपका सौंदर्य प्रेम  जागृत हो, वह ज्ञान बेकार है जो संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता  उत्पन्न करे। जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है ठीक उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है। सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर विचलित हुए बिना काम करने के लिए डटे  रहते हैं। विपत्ति को देख कर तुम चिंतित मत हो क्योंकि चिंता एक काली दीवार की भांति चारों ओर से घेर लेती है, जिसमें से निकलने की फिर कोई गली नहीं सूझती। सच्चाई यह है कि विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला। बस इस बात को कभी मत भूलो  कि  जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में हैं, उनका सुख लूटने में नहीं - आदिश्री अरुण 

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