प्रेम विस्तार है और स्वार्थ संकुचन है । इसलिए वह जो प्रेम करता है जीता है और वह जो स्वार्थी है मर जता है। मेरा परामर्श है कि प्रेम के लिए ठीक उसी तरह प्रेम करो, जिस तरह तुम जीने के लिए सांस लेते हो क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है। सबसे बड़ा धर्म है अपने स्वभाव के प्रति सच्चा होना। स्वयं पर विश्वास करो क्योंकि तुम्हारा स्वभाव ही प्रेम है। मैंने व्यवहारिक जीवन में यह देखा कि प्रेम वह भाषा है जिसे बहरे सुन सकते हैं और अंधे देख सकते हैं । प्रेम करने ने के लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं होती । प्रेम अपनी गहराई स्वयं जानता है । तुम प्रेम की गहराई को तब समझ सकोगे जब बिछड़ने का वक़्त आ जाये । मेरी बातों पर संदेह नहीं करो क्योंकि प्रेम और संदेह में कभी बात-चीत नहीं होती है। यह सत्य है कि प्रेम के बिना जीवन उस वृक्ष के सामान है जिसपे न कभी बहार आती है और न फल लगते हैं । यदि आपके अंतःकरण में प्रेम का स्थान नहीं है अथवा आपको प्रेम कि अनुभूति नहीं हुई है तो ये मत कहो कि , “ मैंने सच खोज लिया है ”। दृढ विश्वास की पुनरावृत्ति प्रेम से पैदा होती है। और एक बार जब वो विश्वास गहरी आस्था में बदल जाता है तो अप्राप्त सफलता भी प्राप्त हो जाती है। अगर आपका दिमाग सोच ले , और आपका दिल विश्वास कर ले – तब आप निशित ही उसे हासिल कर सकते हैं - आदिश्री अरुण
आदिश्री अरुण ने भेजा प्रेम का सन्देश
Kalki Avatar
0