आदिश्री अरुण : मोक्ष की प्राप्ति के लिए चित्त की शुद्धि अनिवार्य है। इसलिए प्रत्येक मनुष्यको
निष्काम भाव से अपने स्वकर्म
में प्रवृत्त रहकर
चित्त शुद्धि करनी
चाहिये। चित्त शुद्धि का उपाय
ही फलाकंक्षाको छोड़कर
कर्म करना है।
जबतक चित्त शुद्धि न
होगी, जिज्ञासा उत्पन्न
नहीं हो सकती
और बिना
जिज्ञासा के मोक्ष
की इच्छा उतपन्न
होना ही असम्भव है। मोक्ष की
इच्छा उतपन्न होने
के पश्चात्
ही विवेक का
उदय होता है।
विवेकका अर्थ है
नित्य और अनित्य
वस्तुका भेद समझना।
संसारके सभी पदार्थ
अनित्य हैं और केवल
आत्मा उनसे पृथक्
एवं नित्य है।
ऐसा अनुभव होनेसे
विवेकमें दृढ़ता होती है,
दृढ़ विवेकसे बैराग्य
उत्पन्न होता है।
जिन साधनोंका फल
अनित्य है वे
मोक्षके कारण हो
ही नहीं सकते
। मोक्ष का
स्वरूप है जीवात्मा
परमात्माकी अभिन्नता का ज्ञान।
दोनों एक स्वरूप
ही हैं, इसी
ज्ञान का नाम
मोक्ष है।