आदिश्री अरुण का महा उपदेश, भाग - 18
आदिश्री अरुण
लोग दुःख को देख कर घबरा जाते हैं और पूछते हैं कि मेरे
जिंदगी में दुःख का अंत कब होगा ? आपके
सांसारिक जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज
क्या है - दृष्टि या दृष्टिकोण ? समझ या सोच ? मनुष्य की दृष्टि और सोच में अधिकतर वो वस्तु, वो घटनाएँ या वो भाव श्रेष्ठ हैं जो
आपको आनन्द दे। और जो आपको आनंद नहीं देते हैं उनको आप दुखदाई मान लेते हैं ।
परन्तु दृष्टिकोण और सोच को यदि अलग - अलग मान
लें तो परिस्थितियाँ भिन्न सिद्ध हो सकती है । जिस प्रकार भीषण गर्मी किसी
को भी अच्छा नहीं लगता है परन्तु वही गर्मी सागर, तालाब, झील
और नदियों के जल को वाष्पीकृत करती है और अर्थात
सागर, तालाब, झील और नदियों के जल को भाफ में परिणत
कर देती है और वह बादल में जाकर छिप जाती है तथा आपको मनोरम रिमझिम वर्षा का सुखद
आनन्द देती है । ठीक उसी प्रकार भीषण परिश्रम के बाद आपको सफलता मिलती है, भीषण परिश्रम के बाद आपको आपना लक्ष्य
मिलता है ।
तो आप सबसे मेरा यह परामर्श है
कि आप दुःख और पीड़ा से भागे नहीं क्योंकि
यही भविष्य में आने वाले सुख का
मूल कारण है । इसलिए
जब आप दुःख के बोझ के नीचे दब जाइए
तब मेरी बातों को अवश्य ही याद कीजिएगा ।
इससे आपको दुःख के दुःश्चक्र से अवश्य ही छुटकारा मिलेगा
।
जब
सुख और दुःख आते हैं तो मनुष्य उसको स्थाई समझ कर जीते हैं । वे इस बात को
भूल जाते हैं कि यह अनित्य है और यही भूल
दुःख का सबसे बड़ा कारण बनता है। अगर आप इस रहस्य को अपने
जीवन में लागू करते हैं कि “दुःख
और पीड़ा भविष्य में आने वाले सुख का मूल
कारण है “ तो
आप कभी भी बड़ा से भी अत्यधिक बड़ा दुःख से विचलित नहीं होंगे क्योंकि उस समय आप इस परम सत्य से
अवगत हो चुके होंगे।