हे भ्रम में रहने वाले लोगों ! क्रोध से मैं आपको भली -भांति परिचय करवाता हूँ इस पर आप गौर फरमाइए और तब आप निर्णय लीजिए कि क्या आपको क्रोध करना चाहिए ?
क्रोध के संबंध में आदि श्री की 15बातें :
*क्रोध
करने
से
आपका सुन्दर और मन को
भाने
वाला
रूप बिगर जाता है ।
*क्रोध
करने
से
सुन्दर
रूप
भी
डरावना
और
विकराल
दिखने लग जाता है । क्रोध करते
हुए
आप
स्वयं
अपना
रूप
दर्पण
में
देख
कर
बताइए
कि आप
कैसा
दीखते
हैं ?
*क्रोध सही समझ के दुश्मन हैं ।
*क्रोध वह तेज़ाब है जो किसी भी चीज जिस पर वह डाला जाये तो उससे से ज्यादा उस पात्र को अधिक हानि पहुंचा सकता है जिसके अन्दर वह है।
*क्रोध वह हवा है जो बुद्धि के दीप को बुझा देती है।
*क्रोध
अग्नि
से
भी
तेज
है
जो
बिना
हवा
किये
भी
धधक
उठती
है।
*क्रोध के कारण की तुलना में उसके परिणाम बहुत गंभीर होते हैं।
*क्रोधित
होने
से
व्यक्ति
सही
और
गलत
का
फैसला
करने
का
क्षमता
खो
देता
है,
वह
अच्छा
और
बुड़ा
में
अन्तर
नहीं
कर
पाता
है जिसका परिणाम यह
होता
है
कि
वह
गलत
पर
गलत
करता
जाता
है
और
अन्त
में
उसका
पतन
हो
जाता
है
।
*क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकडे रहने के सामान है; इसमें आप ही जलते हैं।
*क्रोध पर यदि काबू न किया जाये, तो वह जिस चोट के कारण उत्पन्न हुआ उससे से कहीं ज्यादा हानि क्रोध करने वाले को पहुंचा सकता है।
*कोई भी क्रोधित हो सकता है - क्रोधित होना आसान है, लेकिन सही व्यक्ति से सही सीमा में सही समय पर और सही उद्देश्य के साथ सही तरीके से क्रोधित होना सभी के बस की बात नहीं है ।
*हर एक मिनट जिसमें आप क्रोधित रहते हैं, आप उतनी जैविक
विद्दुत ऊर्जा (बायो एलेक्ट्रिकल इनर्जी ) को खोते हैं जितना दस मिल दौडने पर खोते हैं।
*हर बार जब आप क्रोधित होते हैं, तब आप अपनी ही शारीरिक प्रणाली में ज़हर घोलते हैं।
*तमो
गुण
के
बढ़ने
से क्रोध और मूढ़
भाव
उत्पन्न
होते
हैं
तथा क्रोध और मूढ़
भाव
(तमो
गुण)
को
धारण
किये
हुए
व्यक्ति
जब
शारीर
का
त्याग
करता
है
तो
उसका
जन्म
कीट
- पतंग
इत्यादि
नीच
से
नीच
योनि
में
होता
है
। अर्थात उसको
मरने
के
बाद
मनुष्य
शारीर
नहीं
मिलता
है
।
*आत्मा
का
नाश
होता
है
जब
मनुष्य
कामना,
क्रोध,
लोभ
और
मोह
को
धारण
करते
हैं
। इसलिए
यह
कहा
गया
है
कि
कामना,
क्रोध,
लोभ
और
मोह
- ये
नरक
के
द्वार
हैं।