जीवन : आदि श्री के चरणों में प्रणाम स्वीकार हो। आदि श्री जी, मुझे यह जानने की जिज्ञासा है कि सृष्टि के संबन्ध में जो अंतरिक्ष विज्ञान कहता है वह ठीक है अथवा धर्मशास्त्र जो कहता है वह ठीक है। ईश्वर के साथ प्रेम का क्या सम्बन्ध है ?
आदि श्री अरुण : जब से पृथ्वी पर मानव जाति का जन्म हुआ है, तब से मनुष्य हमेशा से यही समझने की कोशिश की है कि प्राकृतिक व्यवस्था कैसे काम करती है, रचनाओं और प्राणियों की सृष्टि में इसका अपना क्या स्थान है और खु़द जीवन की अपनी उपयोगिता और उद्देश्य क्या है ?
सच्चाई की इसी तलाश में, जो सदियों से और रहस्य बनकर संस्कृतियों पर फैली हुई है। धार्मिक संगठनों ने धर्मो की मानवीय जीवन शैली की संरचना की है और एक व्यापक क्षेत्र में ऐतिहासिक धारा का निर्धारण भी किया है ।
कुछ धार्मिक संगठनों ने दावा है किया है कि जीवन ईश्वरीय साधनों से मिलने वाली तत्व है और जीवन का स्रोत ईश्वर है जो शिक्षा का सारतत्व है जब कि अन्य धर्म की निर्भरता केवल मानवीय अनुभवों पर आधारित रही है ।
धार्मिक संगठनों का मानना है कि धर्मशास्त्र आसमानी साधनों से आया है। इसके अलावा क़ुरआन -ए पाक के बारे में मुसलमानों का यह विश्वास, कि इसमें रहती दुनिया तक मानवजाति के लिये निर्देश मौजूद है, चूंकि क़ुरआन का पैग़ाम हर ज़माने, हर दौर के लोगों के लिये है, अत: इसे हर युगीन समानता के अनुसार होना चाहिये।
मानव इतिहास में एक युग ऐसा भी था जब
‘‘चमत्कार" या चमत्कारिक वस्तु मानवीय ज्ञान और तर्क से आगे हुआ करती थी। चमत्कार की आम परिभाषा है, ऐसी
‘‘वस्तु" जो साधारणतया मानवीय सोच के बाहर हो और जिसका बौद्धिक विश्लेषण इंसान के पास न हो। फिर किसी भी वस्तु को करिश्मे के तौर पर स्वीकार करें जिसको समस्त मानव जाति के कल्याण के लिये उतारा गया है।आइये हम इस आस्था और विश्वास की प्रमाणिकता का बौद्धिक विश्लेषण करते हैं ।
अंतरिक्ष विज्ञान का मानना है कि सृष्टि की संरचना
‘‘बिग बैंग
‘‘ की देन है। अंतरिक्ष विज्ञान के विशेषज्ञों ने सृष्टि की व्याख्या एक ऐसे सूचक
(phenomenon) के माध्यम से करते हैं जिसको व्यापक रूप
‘‘से बिग बैंग"(big bang) के रूप में स्वीकार किया जाता है। बिग बैंग के प्रमाण में पिछले कई दशकों की अवधि में शोध एवं प्रयोगों के माध्यम से अंतरिक्ष विशेषज्ञों की इकटठा की हुई जानकारियां मौजूद है। "बिग बैंग" दृष्टिकोण के अनुसार प्रारम्भ में यह सम्पूर्ण सृष्टि प्राथमिक रसायन
(primary nebula) के रूप में थी फिर एक महान विस्फ़ोट यानि बिग बैंग
(secondry separation) हुआ जिस का नतीजा यह हुआ कि वह आकाशगंगा के रूप में उभरा, फिर वह आकाश गंगा विभाजित हुआ और उसके टुकड़े सितारों, ग्रहों ,
सूर्य, चंद्रमा आदि के अस्तित्व में परिवर्तित हो गए कायनात।
पवित्र क़ुरआन सृष्टि की संरचना के संदर्भ से निम्नलिखित आयतों में बताता है:
क्या वह लोग जिन्होंने धर्मशस्त्र की यह बात मानने से इन्कार कर दिया है कि यह सब आकाश और धरती परस्पर मिले हुए थे फिर ईश्वर ने उन्हें अलग किया (क़ुरआन: सुर:
21, आयत
30)
इस क़ुरआनी वचन और
‘‘बिग बैंग" के बीच आश्चर्यजनक समानता से इनकार सम्भव ही नहीं है। यह कैसे सम्भव है कि एक किताब जो आज से
1400 वर्ष पहले अरब के रेगिस्तानों में व्यक्त हुई अपने अन्दर ऐसे असाधारण वैज्ञानिक यथार्थ समाए हुए है?
आकाशगंगा की उत्पत्ति से पूर्व प्रारम्भिक वायुगत रसायन वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि सृष्टि में आकाशगंगाओं के निर्माण से पहले भी सृष्टि का सारा द्रव्य एक प्रारम्भिक वायुगत रसायन
(gas) की अवस्था में था, संक्षिप्त में यह कहना है कि आकाशगंगा निर्माण से पहले वायुगत रसायन अथवा व्यापक बादलों के रूप में मौजूद था जिसे आकाशगंगा के रूप में नीचे आना था। सृष्टि के इस प्रारम्भिक द्रव्य के विश्लेषण में गैस से अधिक उपयुक्त शब्द
‘‘धुंआ" है।
निम्नलिखित आयतें क़ुरआन में सृष्टि की इस अवस्था को "धुंआ " शब्द से रेखांकित किया है।
फिर आसमान की ओर ध्यान आकर्षित हुए, जो उस समय सिर्फ़ धुआं था उस (अल्लाह) ने आसमान और ज़मीन से कहा -
अस्तित्व में आजाओ चाहे तुम चाहो या न चाहो दोनों ने कहा -
हम आ गये फ़र्मांबरदारों (आज्ञाकारी लोगों) की तरह (कु़रआन: सूर:
41 ,,आयत
11)
एक बार फिर, यह यथार्थ भी
‘‘बिग बैंग” के अनुकूल है जिसके बारे में हज़रत मुहम्मद मुस्तफा़ की पैग़मबरी से पहले किसी को कुछ ज्ञान नहीं था (बिग बैंग दृष्टिकोण बीसवीं सदी यानी पैग़मबर काल के
1300 वर्ष बाद की पैदावार है)
अगर इस युग में कोई भी इसका जानकार नहीं था तो फिर इस ज्ञान का स्रोत क्या हो सकता है?
दूसरा प्रश्न, धरती की अवस्था: गोल या चपटी थी ?
प्राराम्भिक ज़मानों में लोग विश्वस्त थे कि ज़मीन चपटी है, यही कारण था कि सदियों तक मनुष्य केवल इसलिए सुदूर यात्रा करने से भयभीत हुआ करता रहा कि कहीं वह ज़मीन के किनारों से किसी नीची खाई में न गिर पडे़! सर फ्रांस डेरिक वह पहला व्यक्ति था जिसने
1597 ई0 में धरती के गिर्द (समुद्र मार्ग से)
चक्कर लगाया और व्यवहारिक रूप से यह सिद्ध किया कि ज़मीन गोल (वृत्ताकार)
है। यह बिंदु दिमाग़ में रखते हुए ज़रा निम्नलिखित क़ुरआनी आयत पर विचार करें जो दिन और रात के अवागमन से सम्बंधित है:
क़ुरआन यह भविष्यवाणी किया है कि "क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में "
(क़ुरआन: सूर:
31 आयत
29)
यहां स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि अल्लाह ताला ने क्रमवार रात के दिन में ढलने और दिन के रात में ढलने (परिवर्तित होने)की चर्चा की है ,यह केवल तभी सम्भव हो सकता है जब धरती की संरचना गोल (वृत्ताकार )
हो। अगर धरती चपटी होती तो दिन का रात में या रात का दिन में बदलना बिल्कुल अचानक होता ।
निम्न में एक और आयत देखिये जिसमें धरती के गोल बनावट की ओर इशारा किया गया है:
उसने आसमानों और ज़मीन को यथार्थ रूप से उत्पन्न किया है वही दिन पर रात और रात पर दिन को लपेटता है।(क़ुरआन: सूर:39
आयत
5)
यहां प्रयोग किये गये अरबी शब्द
‘‘कव्वर" का अर्थ है किसी एक वस्तु को दूसरे पर लपेटना या
overlap करना या (एक वस्तु को दूसरी वस्तु पर) चक्कर देकर (तार की तरह)
बांधना। दिन और रात को एक दूसरे पर लपेटना या एक दूसरे पर चक्कर देना तभी सम्भव है जब ज़मीन की बनावट गोल हो ।
ज़मीन किसी गेंद की भांति बिलकुल ही गोल नहीं बल्कि नारंगी की तरह
(geo-spherical) है यानि ध्रुव
(poles) पर से थोडी सी चपटी है। निम्न आयत में ज़मीन के बनावट की व्याख्या यूं की गई है "और फिर ज़मीन को उसने बिछाया"
( क़ुरआन: सूर
79 आयत
30)
यहां अरबी शब्द
‘‘दहाहा" प्रयुक्त है, जिसका आशय
‘‘शुतुरमुर्ग़" के अंडे के रूप, में धरती की वृत्ताकार बनावट की उपमा ही हो सकता है। इस प्रकार यह माणित हुआ कि पवित्र क़ुरआन में ज़मीन के बनावट की सटीक परिभाषा बता दी गई है, यद्यपि पवित्र कुरआन के अवतरण काल में आम विचार यही था कि ज़मीन चपटी है।
चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है
प्राचीन संस्कृतियों में यह माना जाता था कि चांद अपना प्रकाश स्वयं व्यक्त करता है। विज्ञान ने हमें बताया कि चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है फिर भी यह वास्तविकता आज से चौदह सौ वर्ष पहले पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में बता दी गई है।
बड़ा पवित्र है वह जिसने आसमान में बुर्ज (
दुर्ग )
बनाए और उसमें एक चिराग़
और चमकता हुआ चांद आलोकित किया ।(क़ुरआन, सूर:
25 आयत
61)
पवित्र क़ुरआन में सूरज के लिये अरबी शब्द
‘‘शम्स" प्रयुक्त हुआ है। अलबत्ता सूरज को ‘सिराज' भी कहा जाता है जिसका अर्थ है मशाल
(torch) जबकि अन्य अवसरों
पर उसे ‘वहाज' अर्थात् जलता हुआ चिराग या प्रज्वलित दीपक कहा गया है। इसका अर्थ
‘‘प्रदीप्त तेज और महानता" है। सूरज के लिये उपरोक्त तीनों स्पष्टीकरण उपयुक्त हैं क्योंकि उसके अंदर प्रज्वलन
combustion का ज़बरदस्त कर्म निरंतर जारी रहने के कारण तीव्र ऊष्मा और रौशनी निकलती रहती है।
चांद के लिये पवित्र क़ुरआन में अरबी शब्द क़मर प्रयुक्त किया गया है और इसे बतौर 'मुनीर' प्रकाशमान बताया गया है ऐसा शरीर जो ‘नूर' (ज्योति) प्रदान करता हो। अर्थात, प्रतिबिंबित रौशनी देता हो। एक बार पुन: पवित्र क़ुरआन द्वारा चांद के बारे में बताए गये तथ्य पर नज़र डालते हैं, क्योंकि निसंदेह चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है बल्कि वह सूरज के प्रकाश से प्रतिबिंबित होता है और हमें जलता हुआ दिखाई देता है। पवित्र क़ुरआन में एक बार भी चांद के लिये “सिराज वहाज” या दीपक जैसें शब्दों का उपयोग नहीं हुआ है और न ही सूरज को ‘नूर या मुनीर’ कहा गया है। इस से स्पष्ट होता है कि पवित्र क़ुरआन में सूरज और चांद की रोशनी के बीच बहुत स्पष्ट अंतर रखा गया है, जो पवित्र क़ुरआन की आयत के अध्ययन से साफ़ समझ में आता है।
निम्नलिखित आयात में सूरज और चांद की रोशनी के बीच अंतर इस तरह स्पष्ट किया गया है:
वही है जिसने सूरज को उजालेदार बनाया और चांद को चमक दी।(क़ुरआन: सूरः
10, आयत 5) पवित्र बाईबल, उत्पत्ति 1:1-19 में भी सृष्टि का वर्णन है।
इसी धर्मशास्त्र ने यह भी कहा है कि प्रेम ही ईश्वर है, ईश्वर जीवन का स्रोत है और ईश्वर का श्रेष्ठ वरदान प्रेम ही है । प्रेम के गुणों के तारीफ में यह कहा है कि प्रेम थकान को मिटाता है, प्रेम दुःख को सुख में बदलता है और जीवन की बाटिका में अपने चारों और शान्ति की सुगन्ध बिखेर देता है।