(1) मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है; और लगातार तुम्हें बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है।
(2) मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है। सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता न तो इस लोक में है और ना ही परलोक में ही है।
(3) ज्ञानवान व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं रहता है।
(4) अपने परम भक्तों, जो हमेशा ईश्वर का स्मरण या एक-चित्त मन से पूजन करते हैं, ईश्वर व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण का उत्तरदायित्व लेते हैं।
(5) वह जो मृत्यु के समय ईश्वर को स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागता है, वह ईश्वर के धाम को प्राप्त होता है, इसमें कोई शंशय नहीं है।
(6) वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, ईश्वर को प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं।
(2) मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है। सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता न तो इस लोक में है और ना ही परलोक में ही है।
(3) ज्ञानवान व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं रहता है।
(4) अपने परम भक्तों, जो हमेशा ईश्वर का स्मरण या एक-चित्त मन से पूजन करते हैं, ईश्वर व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण का उत्तरदायित्व लेते हैं।
(5) वह जो मृत्यु के समय ईश्वर को स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागता है, वह ईश्वर के धाम को प्राप्त होता है, इसमें कोई शंशय नहीं है।
(6) वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, ईश्वर को प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं।