राजीव बंसल : आदि श्री के चरणों में मेरा प्रणाम स्वीकार हो। मैंने आपको कहते सुना है कि कल्कि अवतार धरती पर आचुके हैं। लेकिन मुझे आपकी बातों पर विश्वास नहीं होता है। क्या आप मुझे भगवान कल्कि जी से आमने - सामने मिलवा सकते हैं
? यदि मैं आप से ज्ञान प्राप्त करना चाहूँ तो क्या आप मुझको ज्ञान देंगे ?
आदि श्री अरुण : पहले तुम अपने मन को वश में करो। अगर तुम भगवान कल्कि जी को को प्रत्यक्ष यानि कि आमने - सामने देखना चाहते हो तो मैं तुम्हें दिखा सकता हूँ लेकिन इसके लिए तुम्हारे अन्दर भगवान कल्कि जी के लिए अनन्य भक्ति का होना एकदम अनिवार्य है।अनन्य भक्ति ही एक ऐसा उपाय है जिसको अपनाकर तुम भगवान कल्कि जी को आमने - सामने देख सकते हो। गीता 11 : 54 में ईश्वर ने कहा कि अनन्य भक्ति के द्वारा प्रत्य्क्ष देखने के लिए, तत्व से जानने के लिए और एकभाव से प्राप्त होने के लिए मैं शक्य हूँ ।लेकिन मन को वश में किए बिना ईश्वर के रूप का दर्शन करना संभव नहीं है । यह जानना सबके लिए आवश्यक ही नहीं बल्कि परम आवश्यक है कि सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता न तो इस लोक में है और ना ही परलोक में ही है। क्योंकि जिस प्रकार पानी में तैरती नाव को प्रचण्ड वायु दूर बहा ले जाती है उसी प्रकार विचरणशील इन्द्रि यों में से कोई एक जिस पर मन निरन्तर लगा रहता है, मनुष्य की बुद्धि को हर लेती है। मेरे कहने का भाव यह है कि यदि समस्त इन्द्रियाँ भगवान् की सेवा में न लगी रहें और यदि इनमें से एक भी अपनी तृप्ति में लगी रहती है, तो वह भक्त को दिव्य प्रगति-पथ से विपथ कर सकती है । मैं केवल उन्हीं व्यक्ति को ज्ञान देता हूँ जो मुझ पर सदा विश्वास करते हैं, जो मुझसे सदा जुड़े रहते हैं और जो मुझसे सदा प्रेम करते हैं। वह जो मुझमें विश्वास नहीं करते अथवा वह
जो मेरे ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, वे ईश्वर को प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं।
आदि श्री अरुण : पहले तुम अपने मन को वश में करो। अगर तुम भगवान कल्कि जी को को प्रत्यक्ष यानि कि आमने - सामने देखना चाहते हो तो मैं तुम्हें दिखा सकता हूँ लेकिन इसके लिए तुम्हारे अन्दर भगवान कल्कि जी के लिए अनन्य भक्ति का होना एकदम अनिवार्य है।अनन्य भक्ति ही एक ऐसा उपाय है जिसको अपनाकर तुम भगवान कल्कि जी को आमने - सामने देख सकते हो। गीता 11 : 54 में ईश्वर ने कहा कि अनन्य भक्ति के द्वारा प्रत्य्क्ष देखने के लिए, तत्व से जानने के लिए और एकभाव से प्राप्त होने के लिए मैं शक्य हूँ ।लेकिन मन को वश में किए बिना ईश्वर के रूप का दर्शन करना संभव नहीं है । यह जानना सबके लिए आवश्यक ही नहीं बल्कि परम आवश्यक है कि सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता न तो इस लोक में है और ना ही परलोक में ही है। क्योंकि
जो मेरे ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, वे ईश्वर को प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं।