मनुष्य का परमेश्वर के ऊपर विशवास रखना तथा परमेश्वर का विश्वासयोग्य बनना ये ही मुख्य दो चीज हैं जिससे परमेश्वर को प्रसन्न किया जासकता है। परमेश्वर को प्रसन्न किये बिना उनसे कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है। लोग तप करते हैं किस लिए ? परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए। लोग यज्ञ करते हैं किस लिए? परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए। लोग संकीर्तन करते हैं किस लिए? परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए। लोग दान हैं किस लिए ? परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए।लेकिन मनुष्य ने कभी भी यह खोज नहीं किया कि ईश्वर किस प्रकार प्रसन्न होंगे। उसने समाज में जो देखा, अपने पूर्वजों और बाप-दादाओं को जो करते देखा, उसी को एक मात्र उत्तम साधन मान लिया और वैसा ही करने लगा। उसने तत्वदर्शी ज्ञानी पुरुष से पूछना आवश्यक ही नहीं समझा जबकि परमेश्वर के बारे में ठीक - ठीक केवल तत्वदर्शी ज्ञानी पुरुष ही बता सकते हैं।
हे सांसारिक सुख में फसे लोगों ! मैं आया हूँ आपको याद दिलाने, मैं आया हूँ आपको उदासी से मुक्त करने, मैं आया हूँ आपको मृत्यु से छुटकारा दिलाने। तेरा परमेश्वर तुम से स्नेह रखता है, तेरा परमेश्वर तुमसे प्रेम करता है। वह परमेश्वर सभी देश के लोगों में से तुमको चुन लिया है। तेरा परमेश्वर यही चाहता है कि तू परमेश्वर के मार्गों पर चलो, पूरे मन से तुम उनकी सेवा करो, पूरे मन से उनकी आज्ञा और विधि को मानते रहो और केवल उनसे ही लिपटे रहो। लेकिन तुम उस परमेश्वर को छोड़ कर ३३ करोड़ देवी - देवताओं से ही लिपट गए। तू जो ३३ करोड़ देवी - देवताओं की पूजा करते हो वह पूजा अविधि पूर्वक है। उनसे जो कुछ भी तुमको मिलेगा वह छणिक है क्योंकि सब पूजा का भोक्ता एक मात्र केवल पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर ही हैं । लेकिन जो फल पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर से मिलेगा उसका नाश कभी भी नहीं होगा। क्योंकि पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर अविनाशी हैं। इनका कभी भी नाश नहीं होता।
धन तो प्रारब्ध से मिलता है, भगवान की कृपा तो मन की शुद्धि होने पर मिलती है। जीव पागल है कि वह साधारण आनंद से भी पागल हो उठता है और थोरे से दुःख आने पर ही वह रोने लग जाता है। ऐसी विकट स्थिति में अनन्य भक्ति ही आपका काम बना सकता है। केवल अनन्य भक्ति एवं प्रेम से ही आप परमेश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं । अब प्रश्न यह उठता है कि अनन्य भक्ति प्राप्त होगी कैसे ? अनन्य भक्ति को प्राप्त करने मुख्य के ६ साधन हैं। आप इन साधनों को कर लीजिये, आपको अनन्य भक्ति की प्राप्ति होजायेगी। वे ६ साधन निम्नलिखित हैं :-
(१) प्रार्थना (२) पूजा (३) स्तुति (४) कीर्तन (५) कथा श्रवण और (६) स्मरण
(१) प्रार्थना:- प्रातः काल में आँख खुलने पर भगवान का स्मरण करो, उनको धन्यवाद दो, उनकी प्रशंसा करो लेकिन ध्यान रहे कि तेरी प्रार्थना कामना रहित हो।
(२) पूजा :- स्नानादि से निवृत्त होकर एकांत में कामना रहित पूजा करो, उनके स्वरूप का मनन करो। याद रहे कि कामना की इच्छा से पूजा करने वाला मनुष्य लेन - देन करने वाला बनिया है।
(३) स्तुति :- प्रभु की स्तुति इस प्रकार करो कि हे नाथ !आपने हमको आपने पास बुलाया है इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ।
(४) कीर्तन :- एकांत में बैठकर कलियुग में जो प्रभु के प्रश्नल नाम हैं उस नाम को जानो फिर प्रभु के उस नाम का संकीर्तन करो।
(५) कथा श्रवण :- इसके लिए संत समागम करो।
(६) स्मरण :- समस्त कर्मों का एक मात्र परमेश्वर में ही अर्पण किया करो। ऐसा करने से कर्मपना ही नष्ट हो जाएगा। ऐसा करने से आपका पुनर्जन्म मिटजाएगा और आप परमेश्वर को प्राप्त होजाएंगे।