लोगों ने ईश्वर के साथ जो वाचा बाँधी थी (जो एग्रीर्मेंट किया था ) उसको तोड़ दिया। इसके कारण मनुष्य के जीवन और आराधना में लापरवाही और विकृति आगयी। लोग ईश्वर के शिक्षाओं के अनुकूल न जीकर ईश्वर को धोखा दे रहे हैं । इसलिए ईश्वर अपने लोगों का न्याय करने के लिए एक दिन निश्चित किया जिसको न्याय का दिन कहते हैं। न्याय का वह दिन प्रकट होने से पहले लोग अपने आप में सुधार कर ले इसके लिए मैं ईश्वर पुत्र अरुण सम्पूर्ण मानव जाति को सावधान करता हूँ।
ईश्वर ने लोगों से प्रतिज्ञा किया कि मैं तुमको कभी न छोड़ूंगा और न कभी त्यागूँगा इसके वावजूद भी लोगों ने ईश्वर को छोर दिया और उनपर भरोसा नहीं किया। लोगों ने अपने लिए ३३ करोड़ देवी - देवता रुपी टूटे - फूटे टैंक बना लिया। इसमें यदि ईश्वर कुछ दें तो भी वह नहीं रहेगा। मैं तुम से सच कहता हूँ कि विश्वास के बिना ईश्वर को प्रसन्न करना अनहोना है। जब आप ईश्वर को प्रसन्न ही नहीं कर सकते तो आपकी ईश्वर सुनेंगे कैसे ?
जो ईश्वर राजाओं के राजा हैं, देवोँ के देव हैं वह ईश्वर यह चाहते हैं कि मनुष्य विश्राम और चैन के साथ सारी भक्ति और प्रेम के साथ प्रार्थना अर्पण किया करे और वह अच्छी तरह से जीवन बिताये। ईश्वर ने प्रेम के उपर विशेष बल देते हुए कहा कि ईश्वर में प्रेम बनाएर रखो।
ईश्वर आपकी कुछ नहीं सुनते इसके मुख्य निम्नलिखित कारण हैं :-
(१) ईश्वर चाहते हैं कि आप बिना क्रोध और विवाद के पवित्र हाथों को उठा कर प्रार्थना किया करें किन्तु आप ऐसा नहीं करते हैं। इसलिए ईश्वर आपकी नहीं सुनते हैं।
(२) आप लड़ते -झगरते हैं इसलिए ईश्वर आपको कुछ नहीं देते हैं। आप ईश्वर से मांगते हैं परन्तु पाते नहीं हैं।
(३) उपदेश को तुम्हें पुत्र व पुत्री की तरह दिया जाता है परन्तु तुम उस उपदेश का अमल नहीं करते हो और जान बूझ कर उसको भुला देते हो। इसलिए ईश्वर तुम्हारी कुछ नहीं सुनते हैं।
(४) तुम्हें अपने ईश्वर पर भरोसा नहीं इसलिए तुम इनको छोर कर अपने लिए ३३ करोड़ देवी - देवता रुपी टूटे - फूटे टैंक बना लिए। और वश्वास के बिना ईश्वर प्रसन्न नहीं होते। इसलिए ईश्वर तुम्हारी कुछ नहीं सुनते हैं।
(५) चुकि तुम असंतुष्ट, कुड़कुड़ाने वाले और अपनी अभिलाषाओं के अनुसार चलने वाले बन गए हो इसलिए ईश्वर तुम्हारी कुछ नहीं सुनते हैं।
(६) तुम अपने मुँह से घमंड की बातें बोलते हो और लाभ के लिए मुँह देखी बड़ाई किया करते हो इसलिए ईश्वर तुम्हारी नहीं सुनते हैं।
(७) तुम कहते हो कि मैं ईश्वर पर विश्वास करता हूँ परन्तु तुम जो काम करते हो वह विश्वास रहित होता है। इसलिए ईश्वर तुम्हारी नहीं सुनते हैं।
(८) तुम्हारे घर में सब एक मन के नहीं हैं, किसी में प्रेम नहीं, तुम्हारे घर के लोग एक दुसरे पर विश्वास नहीं करते हैं बल्कि एक दूसरे की निंदा करते हैं। इसलिए ईश्वर तुम्हारी नहीं सुनते हैं।
(९) तुम अपने डिमांड को विनती और प्रार्थना के बीच रख कर विश्वास के साथ ईश्वर के आगे नहीं रखते हो। इसलिए ईश्वर तुम्हारी नहीं सुनते हैं।
(१०) तुम ईश्वर की व्यवस्था के आधीन नहीं रहते बल्कि उनकी व्यवस्था में दोष लगाते हो इसलिए ईश्वर तुम्हारी नहीं सुनते हैं।
अभी भी वक्त है कि मनुष्य अपने आप को बदल ले अन्यथा ईश्वर के न्याय उपस्थित होने पर दण्ड पाने और रोने के सिवा कुछ भी हाथ न आएगा। यह याद रखें कि न्याय के दिन न्याय के लिए ईश्वर के हाथों पकड़ा जाना बहुत ही कष्टप्रद होगा।