How to live/जीने का तरीका

 How to live / जीने का तरीका

(आदिश्री अरुण )


दुःख तो आएगा यह  तुम्हारे हाथ में नहीं है परन्तु दुःख में तुम दुखी न हो, दुःख में तुम विचलित न हो क्योंकि  यह तुम्हारे हाथ में है  । ईश्वर पुत्र अरुण यह कहता है कि जो दुःख के आने पर दुखी नहीं होता है और जो सुख को आने पर छाती चौरा नहीं करता है तथा जिसके ह्रदय में प्रकृति के पांच तत्वों का विकार - कामना, क्रोध, मोह,लोभ  और अहंकार  इत्यादि के लिए कोई स्थान नहीं है तथा  जिसके ह्रदय में पाँचों इन्द्रियों और विषय के संयोग से उत्पन्न होने वाले दुःख और सुख के लिए कोई स्थान नहीं है और वह मनुष्य आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है तथा वह स्थितप्रज्ञ होता है तो ऐसा व्यक्ति  जीते जी मुक्त हो जाता है अर्थात जीते जी मुक्ति को प्राप्त कर चुका होता है ।  

गीता अध्याय 2 का श्लोक 55 में ईश्वर ने कहा कि जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भलीभांति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है , उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है  ।  

हे मनुष्य ! दुःख के आने पर भी दुखी न होना  क्योंकि दुःख आता नहीं  सदा रहने के लिए; बात रह जाती है सिर्फ कहने के लिए । दुःख तो केवल तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए आती है, तुम्हारे मित्रों  की  परीक्षा लेने के लिए आती है, तुम्हारी पत्नी की परीक्षा  लेने के लिए आती है तुम्हारे धैर्य और तुम्हारे धर्म की परीक्षा करने के लिए आती है ।  दुःख तुम्हारे पास रहने के लिए नहीं आती है । 

दुःख  हमेशा तुम्हारे चार चीजों की परीक्षा लेता है ।  जब - जब दुःख आता है ; जब - जब पीड़ा आती है तब - तब वह चार चीजों की परीक्षा लेता है - 

(1)  तुम्हारे धैर्य की  परीक्षा:-  तुम्हारे पास धैर्य या धीरज कितना है ? तुम धैर्य को खो देते हो या नहीं ? 

(2) तुम्हारे धर्म की परीक्षा :-  तुम धर्म को छोड़ देते हो या नहीं ? 

(3) तुम्हारे मित्रों की परीक्षा के लिए :-  चाय पीने वाले मित्र तो बहुत होते हैं लेकिन काम आने वाले कौन होते हैं इसकी परख हो जाती है। दूध पीने वाले मित्रों  की तो लम्बी लाइन होती है लेकिन खून देने वाला मित्र कौन हैं इसकी परख हो जाती है। महा विपत्ति में तुम्हारा मित्र तुम्हें  छोड़ देता है या नहीं - इसकी परख हो जाती है । 

और (4) तुम्हारी पत्नी की परीक्षा के लिए :-  पत्नी की परीक्षा तब होती है जब पति महा संकट में फसा हो।  हर तरफ से पीड़ा ही पीड़ा हो, स्वास्थ्य भी ख़राब हो, छवि भी बिगड़ गई हो और पति का सहारा सबने छोड़ दिया हो , उस समय पत्नी  की परीक्षा होती है । अगर वह उस समय साथ देती है तो वही धर्म पत्नी कहलाती है ।

रामायण में कहा गया है कि - 
धीरज, धर्म, मित्र अरु  नारी ।   
आपत्ति-काल  परखिये चारि ।।     

अर्थात धीरज, धर्म, मित्र और पत्नी (नारी) - ये चारों को विपत्ति काल में ही परखा जाता है ।  

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