What to do at the time of Death / मृत्यु के समय क्या करना चाहिए ?

मृत्यु के समय क्या करना चाहिए ?

हे मनुष्य ! मृत्यु के समय मनुष्य को जीवन-मृत्यु के चक्र से निकल कर मोक्ष प्राप्त करने का अवसर मिलता है । मनुष्य के शरीर को मोक्ष का द्वार कहा जाता है । मनुष्य को जन्म लेने का प्रधान उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है, और मोक्ष की प्राप्ति  केवल मनुष्य योनि के द्वारा ही संभव हो सकता है । हे मनुष्य ! मनुष्य शरीर बड़ी मुश्किल से मिलता है । इसे यूँ ही गवांना नहीं चाहिए । देवता भी मनुष्य शरीर पाने के लिए तरसते हैं । परन्तु मनुष्य की सबसे बड़ी भूल यही है कि वह भोग-विलाश  को प्राप्त करने के चक्क्ड़ में  मोक्ष प्राप्ति के अवसर को गवां देता है । वह अपना  सारा जीवन लड़ने-झगड़ने, कामना की प्राप्ति, सुख भोगने और अपनी इच्छा को पूरा करने में बिता देता है ; यहां तक कि जब मरने का समय आता है तब भी इच्छा और कामना उसका पीछा नहीं छोड़ती । 

हे मनुष्य ! मृत्यु के समय जो  इच्छा और कामना मनुष्य के मन में दृढ़ रहती है उसी  इच्छा और कामना के अंतर्गत मनुष्य का दूसरा जन्म होता है । अर्थात मृत्यु के समय मनुष्य के मन में जो  इच्छा और अधूरी कामना होती है मनुष्य का अगला जन्म उसी के अंतर्गत होता है । चुकि यह अत्यंत गूढ़ ज्ञान है, गूढ़ विद्या है इसलिए मनुष्य इस वास्तविकता को सुन लेने के बाद भी स्वीकार नहीं करता है । जिस प्राणी को यह ज्ञान समझ में आ जाय और वह इस ज्ञान पर चले तो उसे बड़ा आसानी से मोक्ष मिल जाएगा  । इस गूढ़ ज्ञान को मरने की कला  कहते हैं ।

इस विद्या के अनुसार प्राणी चाहे जैसा भी जीवन व्यतीत क्यों न किया हो अन्त काल में यदि वह एकाग्र मन होकर इस कलियुग में केवल भगवान् कल्कि का ध्यान करते हुए तथा भगवान कल्कि का नाम लेते हुए  शरीर का त्याग करे तो वह सीधा ईश्वर के चरणों में पहुँच जाता है जहाँ से उसे वापस नहीं आना होता है । अर्थात मृत्यु का क्षण बड़ा ही महत्व का क्षण होता है  । इस क्षण में प्राणी जिस स्वरुप या जिस चीज का ध्यान करता है उसी के अनुसार उसे दूसरा जन्म प्राप्त होता है  । 

इस गूढ़ ज्ञान के सम्बन्ध में गीता 8:5 में ईश्वर ने कहा कि - जो पुरुष अंत काल में मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्यागकर जाता है, वह मेरे साक्षात् स्वरुप को प्राप्त होता होता है - इसमें कुछ भी संसय नहीं है ।
गीता 8:6 में ईश्वर ने कहा कि - यह मनुष्य अंत काल में जिस - जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, उस - उस को ही प्राप्त होता है।   

गीता 8:8 में ईश्वर ने कहा कि - यह नियम है कि परमेश्वर के ध्यान के अभ्यासरूप योग से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरन्तर चिन्तन करता हुआ मनुष्य परम प्रकाशरूप परमेश्वर को ही प्राप्त होता  है।
  
अब मैं दूसरा गूढ़ रहस्य सुनाता हूँ ध्यान से सुनो ।  कल्कि अवतार  हुआ अथवा नहीं  मैं इस बात पर बहस नहीं करना चाहता हूँ बल्कि पद्म पुराण तथा श्रीमद्भागवतम महा पुराण की बात आपको याद दिलाना चाहता हूँ  ।

पद्म पुराण, पाताल खंड, शीर्षक " नाम कीर्तन की महिमा, भगवान के चरण चिन्हों का परिचय तथा प्रत्येक मास में भगवान् की विशेष आराधना का वर्णन "  पेज नम्बर 565 में पार्वती जी महादेव जी से पूछी - कृपानिधे ! विषय रूपी ग्राहों  से भरे हुए भयंकर कलियुग के आने पर संसार के सभी मनुष्य पुत्र, स्त्री, धन  आदि की चिंता से व्याकुल होंगे, ऐसी दशा में उनके उद्धार का क्या  उपाय है ? यह बताने की कृपा कीजिये ।

महादेव जी ने कहा - देवि ! कलियुग में केवल हरी नाम ही संसार समुद्र से पार लगाने  वाला  है । श्रीमद्भागवतम महा पुराण 12;3:52 में यह कहा गया है कि "सत्ययुग में भगवान् का ध्यान करने से, त्रेता में बड़े - बड़े यज्ञों के द्वारा उनकी आराधना करने से और द्वापर में विधिपूर्वक उनकी पूजा सेवा से जो फल मिलता है, वह कलियुग में केवल भगवान् नाम का कीर्तन करने से ही प्राप्त हो जाता है । "

यदि आपको इस कलियुग में केवल भगवान् नाम क्या है यह मालूम हो जाय तो आपको उद्धार पाना बड़ा ही आसान  हो जाएगा ।   

इस गूढ़ ज्ञान के रहस्यको समझने के लिए मैं आपके सामने एक घटना प्रस्तुत करता हूँ राजऋषि भरत मोक्ष के द्वार पर पहुँच चूका था किन्तु अंत में उसे एक हिरण के  बच्चे से मोह हो गया । इस कारण वह अंत समय में हिरण के  बच्चे को ध्यान करता हुआ शरीर त्यागा । इसका परिणाम यह हुआ कि उस राजऋषि भारत का  हिरण योनि में पुनर्जन्म हुआ । (श्रीमद्भागवतम महा पुराण 5;8:1-31) 

हे अज्ञान में भटके हुए लोगों ! मनुष्य को  मृत्यु के समय मोक्ष का अवसर मिलता है । ऐसे समय में यदि मनुष्य अपने विधाता से  मिलन के बदले उसकी माया के मोह में पड़ा रहे तो ये विधाता का अपमान जैसा ही है क्योंकि वह अपने विधाता से अधिक महत्व उसकी बनाई हुई माया को देता है । इसलिए उसे मृत्यु के बाद स्वर्ग तो मिल सकता है परन्तु मोक्ष नहीं मिल सकता । इसलिए मृत्यु के समय मनुष्य को संसार के किसी वस्तु में नहीं केवल अपने ईश्वर में ध्यान लगाना चाहिए । 

हे अज्ञान में भटके हुए लोगों ! यदि मनुष्य मृत्यु के समय यह विधि अपनाए जिसे मैं तुझसे बता रहा हूँ तो उसे तुरत मोक्ष प्राप्त होगा  और वह सीधा ईश्वर के निज धाम को पहुंचेगा। वह गोपनीय विधि क्या है यह ध्यान से सुनो  । प्राण त्यागते समय, अपने सभी इन्द्रियों के द्वार को रोक कर तथा मन को ह्रदय में स्थिर करके और प्राणों को मस्तिष्क में स्थापित करके ईश्वर को स्मरण करते हुए ॐ मंत्र का उच्चारण करे, फिर ॐ नमो नारायणाय, इसके बाद ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, इसके बाद ॐ किं  कल्कि देवाय नमः, इसके बाद ॐ  त्रियुग देवाय नमः मंत्र का उच्चारण करे,  तो वह मनुष्य जीवन भर कितना भी पापी क्यों न रहा हो उसे मोक्ष अवश्य प्राप्त हो जाएगा ।  

अब सबाल यह है कि पहले ॐ शब्द का उच्चारण क्यों करें ? हे मनुष्य ! ॐ केवल एक  शब्द नहीं है बल्कि
अध्यात्मिक साधना के सफलता का केंद्र बिंदु ॐ है । सिद्धि प्राप्ति का सूत्र भी ॐ है । अब सबाल यह है कि पहले ॐ शब्द का उच्चारण क्यों करें ? 

ॐ बीज मन्त्र है । ये वह शब्द है जिससे सारा ज्ञान और सारी सृष्टि उत्पन्न हुआ है । मृत्यु के समय ॐ का इतना महत्त्व क्यों है लिससे शरीर को शुद्धि और आत्मा को मुक्ति प्राप्त हो जाती है ? मनुष्य के शरीर को ब्रह्म्-पुर कहा गया है  और मानव शरीर के अंदर ह्रदय कमल में आत्मा का दिव्य ज्योति प्रकाशित रहती है । मृत्यु के समय जब मनुष्य ॐ मंत्र का उच्चारण मंद - मंद लय के साथ करता है तो आत्मा और परमात्मा दोनों ही महा-सुख और महा-आनन्द के साथ नाच उठते हैं और दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए ऐसे व्याकुल हो जाते हैं जैसे युगों - युगों से बिछुड़े हुए दो प्रेमी सारी सीमाएँ तोड़ कर एक दूसरे में समा जाने को एक दूसरे की ओर बढ़ते हैं । 

ॐ नमो नारायण मूल मन्त्र है । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय में वासुदेव नाम शरीर में ठहरे हुए  ईश्वर के आत्मा को कहते हैं । ॐ किं कल्कि देवाय नमः - कलियुग में भगवान् कल्कि का बीज मन्त्र है तथा ॐ त्रियुग देवाय नमः में - त्रियुग भगवान् कल्कि का नाम है ।  

हे मनुष्य ! ईश्वर ने मनुष्य शरीर को मुक्ति का द्वार कहा है परन्तु मनुष्य इसको समझ नहीं पाता है।  इसी महत्व के कारण मनुष्य शरीर की रचना भी विशेष रूप से की गई है । दोनों भौं के बीच वाला स्थान   आज्ञा चक्र है; आज्ञा चक्र से ऊपर तीसरा नेत्र है; इससे ऊपर ॐ ब्रह्म है इसी को ज्योति निरंजन भी कहते हैं  ; इससे ऊपर त्रिकुटी या माया ब्रह्म है; इससे ऊपर  दसम द्वार या रा रम ब्रह्म है ; इससे ऊपर मानसरोवर है ; इससे ऊपर शून्य द्वार है ; इससे ऊपर महा शून्य है ; इससे ऊपर भवँर गुफा या सोऽहं ब्रह्म है ; इससे ऊपर सत्य लोक है ।  मनुष्य दसम द्वार से ऊपर उठ कर सत्यलोक में जाकर ईश्वर में मिल जाते हैं ।  यहां से फिर अलख लोक ; इसके बाद अगम लोक; इसके बाद अनामी लोक में जाकर प्रकाश रूप ईश्वर में मिल जाते हैं   ।    

मृत्यु के समय दोनों भौं के बीच वाला स्थान  - आज्ञा चक्र में ईश्वर को देखने तथा कल्कि नाम का उच्चारण करने वाला मनुष्य दसम द्वार से ऊपर उठ कर सत्यलोक में जाकर ईश्वर में  मिल जाता है । साधारण मनुष्य को इस विधि का ज्ञान नहीं होता है । इसलिए उनके प्राण प्रायः दूसरे द्वारों से निकलते हैं।   

               

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