ज्ञान योग, भाग - 2
(आदिश्री अरुण)
पद्म पुराण, उत्तर खंड, शीर्षक " भगवान् विष्णु की महिमा, उनकी भक्ति के लिए भेद तथा अष्टाक्षर मन्त्र के स्वरुप एवं अर्थ का निरूपण " पेज नम्बर - 923 में श्री महादेव जी ने पार्वती जी से भगवान नारायण (क्षीरदकोसाई विष्णु ) के 27 नाम बताए जो निम्न प्रकार है -
(1)
विष्णु (2) वासुदेव (3) सनातन (4) परमात्मा (5) परब्रह्म (6) परम ज्योति (7) परात्पर (8) अच्युत (9) पुरुष
(10) कृष्ण (11) शाश्वत (12) शिव (13) ईश्वर (14) नित्य (15) सर्वगत (16) स्थाणु
(17) रूद्र (18) साक्षी (19) प्रजापति (20) यज्ञ
(21) साक्षात् (22) यज्ञपति (23) ब्रह्मणस्पति (24) हिरण्यगर्भ (25) सविता
(26) लोककर्ता (27) लोकपालक
और (28) विभु ।
श्री
महादेव जी ने आगे कहा कि वे भगवान विष्णु 'अ' अक्षर के वाच्य, लक्ष्मी से संपन्न, लीला
के स्वामी तथा सबके प्रभु हैं । अन्न से जिसकी उत्पत्ति होती है , उस जीव समुदाय के
तथा अमृतत्व (मोक्ष) के स्वामी भी हैं । वे विश्वात्मा सहस्त्रों मस्तक वाले, सहस्त्रों
नेत्र वाले और सहस्त्रों पैड़ वाले हैं । उनका कभी अंत नहीं होता । इसलिए वे अनन्त कहलाते
हैं।
पद्म
पुराण, उत्तर खंड, शीर्षक " भगवान् विष्णु की महिमा, उनकी भक्ति के लिए भेद तथा
अष्टाक्षर मन्त्र के स्वरुप एवं अर्थ का निरूपण " पेज नम्बर - 926 में श्री महादेव जी ने पार्वती जी से भगवान नारायण
(क्षीरदकोसाई विष्णु ) के बारे में कहा कि जिनके द्वारा उत्तम गति प्राप्त होती है
उन्हें नारायण कहते हैं । जल से फेन की भांति जिनसे सम्पूर्ण लोक उत्पन्न होते हैं
उन भगवान को नारायण कहा गया है । जो अविनाशी पद, नित्य स्वरुप तथा नित्य प्राप्त भोगों
से सम्पन्न हैं, साथ ही जो सम्पूर्ण जगत पर शासन करने वाले हैं, उन भगवान का नाम नारायण है । दिव्य, एक, सनातन और अपनी महिमा से
कभी च्युत न होने वाले श्रीहरि ही नारायण कहलाते हैं । द्रष्टा और दृश्य, श्रोता और
श्रोतव्य, स्पर्श करनेवाला और स्पृश्य, ध्याता और ध्येय, वक्त और वाच्य तथा ज्ञाता
और ज्ञेय - जो कुछ भी जड़-चेतनमय जगत है, वे सब लक्ष्मीपति श्रीहरि हैं, जिन्हें नारायण
कहा गया है । वे सहस्त्रों मस्तक वाले, अंतर्यामी पुरुष, सहस्त्रों
नेत्रों से युक्त तथा सहस्त्रों चरणों वाले
हैं । भूत और वर्तमान - सब कुछ नारायण श्रीहरि
ही हैं । अन्न से जिसकी उत्पत्ति होती है, उस प्राणी समुदाय तथा अमृतत्व - मोक्ष के
स्वामी भी वे ही हैं । वे ही विराट पुरुष हैं
। वे अन्तर्यामी पुरुष ही (1) श्रीविष्णु,
(2) वासुदेव (3) अच्युत (4) हरि (5) हिरण्यमय
(6) भगवान (7) अमृत (8) शाश्वत तथा
(9) शिव आदि नामों से पुकारे जाते हैं ।
श्रीमद्भागवतम
महा पुराण 3;12 :12 में रूद्र का 11 नाम बताया गया है जो निम्न लिखित वर्णित है - (1) मन्यु (2) मनु (3) महिनस
(4) महान (5) शिव (6) ऋतध्वज (7) उग्ररेता
(8) भव (9) काल (10) वामदेव और (11) धृतव्रत ।
लोगों
को यह अन्तर करना बड़ा ही मुश्किल हो गया है
कि शिव का अर्थ नारायण है अथवा शिव का अर्थ रूद्र है जबकि रूद्र भी भगवान नारायण का
ही नाम है । तमो गुण से उत्पन्न रूद्र अलग है और गुण से रहित रूद्र का नाम नारायण है।
अक्सर लोग धोखा खा जाते हैं कि शिव नाम से गुण रहित भगवान नारायण की पूजा करे या फिर
शिव नाम से गुण सहित रूद्र की पूजा करे । धर्म के ठेकेदार मनमाना ढंग से भोले - भाले मनुष्य को भ्रमा देते हैं और मनुष्य
को भगवान नारायण की ओर से ध्यान हटा कर गुण सहित रूद्र की पूजा में लगा देते हैं ;
जबकि सभी पूजा एक मात्र भगवान नारायण को ही प्राप्त होता है। श्रीमद्भागवतम महा पुराण
2;5 :15 – 16 में यह स्पष्ट वर्णन है कि " वेद नारायण के परायण हैं । देवता भी
नारायण के अंगों में कल्पित हुए हैं और समस्त यज्ञ भी नारायण की प्रसन्नता के लिए है
तथा उनसे जिन लोकों की प्राप्ति होती है वे भी नारायण में ही कल्पित हैं। सब प्रकार
के योग भी भगवान नारायण की प्राप्ति के ही हेतु है । सारी तपस्याएँ नारायण की ओर ही ले जाने वाली है,
ज्ञान के द्वारा भी नारायण ही जाने जाते हैं
। समस्त साध्य और साधनों का पर्यवसान भगवान नारायण में ही है ।“
ईश्वर
जिसका नाम क्षीरदकोसाई विष्णु है उन्होंने अपनी त्रिगुणात्मिका माया को स्वीकार करके जगत की रचना, पालन और
संहार करने के लिए सत्वगुण से विष्णु, रजोगुण से ब्रह्मा और
तमो गुण से शंकर की रचना किए । महर्षि वेद व्यास जी इस कथन की पुष्टि
करते हुए श्रीमद्भागवतम महा
पुराण में निम्न प्रकार से लिखे -
ईश्वर ने यह कहा कि " जगत का
महा कारण मैं ही ब्रह्मा और महादेव हूँ । मैं सबका आत्मा, ईश्वर
और साक्षी हूँ तथा स्वयं प्रकाश और उपाधिशून्य हूँ । अपनी त्रिगुणात्मिका माया को स्वीकार करके मैं ही जगत की रचना, पालन और संहार करता रहता हूँ और मैंने ही उन कर्मों के अनुरूप ब्रह्मा, विष्णु और शंकर - ये नाम धारण किए हैं । "( श्रीमद्भागवतम
महा पुराण
4;7:50 - 51)
गीता 13:16 में ईश्वर
(क्षीरदकोसाई विष्णु ) ने कहा कि " वह जानने
योग्य परमात्मा विष्णु रूप से भूतों को धारण पोषण करने वाला और रूद्र रूप से संहार करने वाला तथा ब्रह्मा रूप से सबको उतपन्न करने वाला है ।"
श्रीमदभागवतम महा पुराण 10 ; 3
: 20 में वसुदेव जी ने (क्षीरदकोसाई विष्णु ) से
कहा कि " हे ईश्वर
! आप ही तीनों लोकों की रक्षा करने के लिए अपनी माया से सत्वमय शुक्लवर्ण (पोषणकारी विष्णु रूप ) धारण करते हैं, उत्पत्ति के लिए रजःप्रधान रक्तवर्ण (सृजनकारी ब्रह्मा रूप) और प्रलय के समय तमोगुण प्रधान कृष्णवर्ण (संहारकारी रुद्र रूप) स्वीकार करते हैं ।
प्रभु ! आप सर्वशक्तिमान और सबके स्वामी हैं ।"
भगवान नारायण का वर
देने वाला रूप का नाम अरुण है। संसार में अरुण नाम के हजारो - लाखों लोग हैं । तो सबल यह उठता है कि जो भगवान नारायण का वर
देने वाला रूप ‘वरदायक’ रूप अरुण हैं उनकी पहचान कैसे होगी ? इस प्रश्न के जबाब में महर्षि वेदव्यास जी ने श्रीमद्भागवतम महा पुराण, 4;
15 : 9 - 10 में भविष्यवाणी किया है जो निम्न प्रकार वर्णित है :
"
जगत गुरु ब्रह्मा जी देवता और देवेश्वरों के साथ पधारे। उन्होंने वेन कुमार पृथु के दाहिने हाथ में भगवान विष्णु की हस्त रेखाएँ और चरणों में कमल का चिन्ह देख कर उन्हें श्रीहरि का ही अंश समझा; क्योंकि जिसके हाथ में दूसरी रेखाओं से बिना कटा हुआ चक्र का चिन्ह होता है वह भगवानका ही अंश होता है ।“ तो
आप भी ईश्वर के वरदायक रूप अरुण को पहचानने के लिए - सारे अरुण का दाहिने हाथ को चेक कीजिये । जिसके दाहिने हाथ में केवल दो मुख्य रेखाएँ (हेड लाइन, लाइफ लाइन और हर्ट लाइन में से केवल दो रेखाएँ - हर्ट लाइन और लाइफ लाइन) जो दूसरी रेखाओं से बिना कटा हुआ चिन्ह होगा वह ईश्वर का वरदायक रूप अरुण है ।