क्या हैं 19 तरीके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए ?
(आदिश्री अरुण)
आदिश्री अरुण ने स्वधर्म की स्थापना करने के उद्द्येश्य से
सम्पूर्ण मानव जाति के लिए कुछ नियम बताए जिस पर चल कर मनुष्य अपने जीवन में सुख - शांति प्राप्त कर सकता है । अगर कोई व्यक्ति पुरे विश्वास के साथ इन नियमों का पालन करे तो वह दुखों से दूर हो सकता है और सुखी, संतुष्ट और शांत जीवन व्यतीत कर सकता है। आज आप आदिश्री अरुण के कुछ ऐसे ही नियमों को पढ़ने जा रहे हैं जिनसे आपके जीवन में भी परिवर्तन आ सकता है।
1. संसार को दुखालय कहते हैं । सबसे पहले मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ - पुस्तकालय किसे कहते हैं ? पुस्तकालय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - पुस्तक + आलय। पुस्तकालय उस स्थान को कहते हैं जहाँ पर अध्ययन सामग्री (पुस्तकें, फिल्म, पत्रपत्रिकाएँ, मानचित्र, हस्तलिखित ग्रंथ, ग्रामोफोन रेकार्ड एव अन्य पठनीय सामग्री) संगृहीत रहती है और इस सामग्री की सुरक्षा की जाती है।ठीक इसी तरह दुखालय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - दुःख + आलय। दुखालय उस स्थान को कहते हैं जहाँ पर दुःख सामग्री (पुस्तकें, फिल्म, पत्रपत्रिकाएँ, मानचित्र, हस्तलिखित ग्रंथ, ग्रामोफोन रेकार्ड एवं अन्य दुःख को प्राप्त करने वाली सामग्री) संगृहीत रहती है और इस सामग्री की सुरक्षा की जाती है। इसलिए संसार दुखों से भरा हुआ है और इन सभी दुखों का कारण आपकी इच्छाएं हैं क्योंकि इच्छा व् कामना ही
वह ताला है जिसको खोलने से दुख सामग्री प्राप्त होता है । इन इच्छाओं पर काबू पा लेने से दुखों का नाश हो सकता है।
2. आपकी एक इच्छा पूरी होते ही तुरंत दूसरी इच्छा जन्म ले लेती है इसलिए इच्छाओं की कामना नहीं करनी चाहिए।
3. क्रोध करने से हमेशा आपका ही नुक्सान होता है। क्रोध एक गर्म कोयला है जिसको किसी के ऊपर फेंकने की नीयत से पकड़े रहने से आप खुद ही जलते रहते हैं। इसलिए अपने जीवन से आप क्रोध को डिलीट कर दीजिए। क्रोध को नियंत्रित करने के बाद आपके आधे दुख तो स्वतः ही समाप्त हो जायेंगे ।
4. आप जो कर्म करते हैं, जो खाते हैं, जो हवन करते हैं, जो दान देते हैं और जो तप करते हैं वह सब ईश्वर को अर्पण कर दीजिए। ऐसा करने से आप शुभ एवं अशुभ फल रूप कर्म बंधन से मुक्त हो जायेंगे और उनसे मुक्त होकर आप ईश्वर को ही प्राप्त होंगे ।
5. तेरहवीं का भोज नहीं खाईए क्योंकि तेरहवीं का भोज खाने से आपके पूरे जीवन का पुण्य फल नष्ट हो जायेगा।
6. अच्छी सेहत सबसे बड़ा उपहार है और यह उपहार केवल अनुलोम - विलोम प्राणायाम करके प्राप्त किया जा सकता है । प्राणायाम करने से जैविक विद्दुत ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे आप दीर्घ काल तक जीवित रह सकते हैं और आप बहुत सारे विमारियों से मुक्त हो सकते हैं । जल से स्नान करने से केवल बाहरी शरीर ही धुलता है किन्तु प्राणायाम करने से अंदर और बहार दोनों धूल जाता है । जल से स्नान करके आप देवताओं के साथ पूजा में नहीं बैठ सकते हैं किन्तु प्राणायाम करने के बाद आप अंदर और बहार से इतना अधिक पवित्र हो जाते हैं जिससे कि आप देवताओं के साथ पूजा में बैठ सकते हैं ।
7. विश्वास से बेहतर कोई संबंध नहीं है। इसलिए यदि आप ईश्वर से सम्बन्ध बनाना चाहते हैं तो ईश्वर पर 100 % विश्वास कीजिए ।
8. श्रद्धा का स्थान सबसे ऊपर है । श्रद्धा वह बीज है जिसको अंतःकरण में बोने से भक्ति का पौधा उगता है । भक्ति का पौधा उगने पर उसमें ज्ञान का फूल लगते हैं और ज्ञान का फूल प्राप्त करने से मनुष्य ईश्वर को ढूंढ कर
ईश्वर को प्राप्त कर लेता है और ईश्वर को प्राप्त कर लेने से आवागमन मिट जाता है ।
9. प्रेम जीवन देने वाला वह जल है जिसका छिड़काव करने से श्रद्धा रूपी भक्ति का बीज अंकुरित होता है और भक्ति के पौधे के जड़ में इस जल का छिड़काव करने से भक्ति का पौधा हरा - भरा हो जाता है और उसमें ज्ञान के बहुत सारे फूल लगते हैं ।
10. ईश्वर को किसी भी चीज से बाँधा नहीं जा सकता है । ईश्वर को तो केवल प्रेम के धागे से ही बांध सकते हैं ।
11. आपको कभी भी किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। दुर्योधन के पास बहुत शक्तिशाली और बहुत बड़ी सेनाएँ थी, उन सेना में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य तथा कर्ण जैसे वीर थे और भगवान कृष्ण की नारायणी सेना भी उसके ही साथ थी जबकि अर्जुन के पास बहुत कम सेनाएँ थी फिर भी दुर्योधन महाभारत का युद्ध हार गया और अर्जुन महाभारत का युद्ध जीत गया। ऐसा क्यों हुआ ? क्योंकि दुर्योधन दूसरे के बलबूते पर युद्ध लड़ा था इसलिए वह महाभारत का युद्ध हार गया
और अर्जुन अपने बलबूते पर युद्ध लड़ा था इसलिए वह महाभारत का युद्ध जीत गया । इसलिए आपको कभी भी किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
12. ब्रह्म मुहूर्त रात्रि का चौथा पहर होता है। सूर्योदय के पूर्व के पहर में दो मुहूर्त होते हैं। उनमें से पहले मुहूर्त को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त
में 4 कार्य ही करें: 1. संध्या वंदन, 2. ध्यान, 3. प्रार्थना और 4. अध्ययन। ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर ध्यान कीजिए । इस समय संपूर्ण वातावरण शांतिमय और निर्मल होता है। देवी-देवता इस काल में विचरण कर रहे होते हैं। इस समय सत्व गुणों की प्रधानता रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।
ब्रह्म मुहूर्त में सौंदर्य, बल, विद्या और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। यह समय ग्रंथ रचना के लिए उत्तम माना गया है।
वैज्ञानिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि ब्रह्म मुहुर्त में वायुमंडल प्रदूषणरहित होता है। इसी समय वायुमंडल में ऑक्सीजन (प्राणवायु) की मात्रा सबसे अधिक
(41 प्रतिशत) होती है, जो फेफड़ों की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती है। शुद्ध वायु मिलने से मन, मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है। ऐसे समय में शहर की सफाई निषेध है।
आयुर्वेद के अनुसार इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। सूर्य उगते ही प्रकृति में अर्थात सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में रासायनिक प्रक्रियाएं शुरू हो जाती है और वातावरण दूषित हो जाता है । रासायनिक प्रक्रियाएं जैसे नदी , समुद्र तथा तालाब के जल में वाष्पीकरण की क्रियाएँ शुरू हो जाती है, पेड़ - पौधे भोजन बनाना शुरू कर देते हैं, तार के पेड़ के रस में फर्मेंटेशन की प्रक्रियाएँ शुरू हो जाती है । इस प्रकार सम्पूर्ण वायुमंडल का एस्ट्रक्चर ही बदल जाता है ।
13. अतीत और भविष्य के बारे में सोचकर समय व्यतीत करने से अच्छा है वर्तमान का बहुत अच्छा प्रयोग करें
बीता हुआ समय कभी भी आपके जीवन में परिवर्तन नहीं ला सकता है।
14. आपको अपनी आलोचना सुनना आना चाहिए जिससे कि आप खुद में सुधार ला कर बेहतर इंसान बन सकें। आपका हाथ वरदान देने वाले पोजीशन में होना चाहिए । आपकी प्रवृति लेने की नहीं बल्कि देने की होनी चाहिए । आपकी प्रवृति छीनने की नहीं बल्कि देने की होनी चाहिए । आपके हाथ का पोजीशन हर हमेशा दर्शाये गए तस्वीर के समान होना चाहिए ।
15. आपके द्वारा किए गए किसी भी गलत काम का परिणाम आपको समय आने पर जरूर भुगतना पड़ेगा । उन्हीं शब्दों का प्रयोग करना चाहिए जो कि कुछ सकारात्मक अर्थ वाले हों । निगेटिभ
सोच को डिलीट कर दीजिये तथा हमेशा पॉजिटिव सोच को धारण कीजिए।
16. हमेशा जो काम करना बाकी है उस पर ध्यान देना चाहिए जो काम आप कर चुके हों उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए। जो व्यक्ति काम करते समय अपने मन से शांत रहता है वह दुखों और तकलीफों से दूर रहता है।
17. किसी भी महान व्यक्ति के स्वभाव में किसी भी तरह की तारीफ़ या आलोचना करने से आपके जीवन में अथवा आपके स्वभाव में कोई भी परिवर्तन नहीं आएगा ।
18. शुक्रवार के शाम से शनिवार के शाम तक भोजन बनाने के लिए आग न जलावें। उस समय आप ईश्वर का अधिक से अधिक
ध्यान करें, नाम जप तथा ईश्वर के नाम का सुमिरन करें व् नामसंकीर्तन करें या फिर श्रवण
योग करें । उस दिन आप आपने समय को व्यर्थ के कामों में न गवां कर धर्मशास्त्र का अध्ययन
करें ।
19. ईश्वर का नामसंकीर्तन, सेवा, शब्द सूरत योग तथा श्रवण योग आपको
भव से पार कर देगा ।