श्रवण-योग(आदिश्री अरुण)
श्रवण-योग सुनने की वह कला है जिसको अपनाने के बाद मनुष्यों को साधना करने की जरुरत नहीं होती । श्रवण-योग ऐसा श्रेष्टतम और
सहज साधन है जिसको अपनाने से लोगों को मुक्ति मिल जाती है ।इस
साधन से लोगों को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है, प्रेत पीड़ा का नाश हो जाता है । जो प्राणी गया में विधि पूर्वक पिंडदान किया फिर भी जीव को प्रेत योनि से मुक्ति नहीं मिली वह प्राणी यदि सप्ताह श्रवण-योग करे तो उसको प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाएगी । जिस जीव की मुक्ति के लिए सैकड़ों गया-श्राद्ध करने से मुक्ति नहीं मिली तो उसके लिए कोई भी प्राणी यदि सप्ताह श्रवण-योग लगाए तो उसको भी तुरत मुक्ति मिल जाती है ।
श्रीमद्भागवतम महा पुराण, माहात्म्य, अध्याय 5 का श्लोक 54
- 55 में महर्षि वेद व्यास जी ने यह भविष्यवाणी किया कि " जब कोई
मनुष्य सप्ताह श्रवण-योग लगाता है तो सब पाप थर्रा उठते हैं कि अब यह योग जल्दी ही हमारा अंत करदेगी । जिस प्रकार आग गीली-सुखी, छोटी-बड़ी सब तरह की लकड़ियों को जला डालती है ठीक उसी प्रकार सप्ताह श्रवण-योग मन, वचन और कर्म के द्वारा किए हुए नए - पुराने, छोटे-बड़े सभी
प्रकार के पापों को भष्म कर देता है। "
विद्वानों का कथन है कि " जब श्रवण-योग लग जाता है यानि जब सुनी हुई बातें ह्रदय में स्थित हो जाता है तब मनुष्य की मुक्ति निश्चित ही समझनी चाहिए ।
" (श्रीमद्भागवतम
महा पुराण, माहात्म्य, अध्याय 5 का श्लोक 66)
इस लोक में सप्ताह श्रवण-योग करने से भगवान् की प्राप्ति शीघ्र हो जाती है । सब प्रकार के दोषों से निवृत होने के लिए अर्थात सब प्रकार के दोषों से छूटने के लिए एकमात्र यही साधन है । महर्षि वेद व्यास जी ने श्रीमद्भागवतम महा पुराण में कहा कि - जो लोग सप्ताह श्रवण-योग से वंचित हैं वे तो जल में बुद्बुदे और जीवों में मच्छरों के
समान केवल मरने के लिए ही पैदा होते हैं । (श्रीमद्भागवतम महा पुराण, माहात्म्य, अध्याय 5 का श्लोक 62
- 63)
हे मनुष्य ! मेरी बातें ध्यान से सुनो । यूँ तो आदिश्री की बातें सुनने के लिए आदिश्री के पास बहुत से लोग आते हैं अर्थात श्रवण-योग लगाने के लिए आदिश्री के पास बहुत से लोग आते हैं परन्तु सबको सामान फल नहीं मिलते ।
आदिश्री के पास अनेकों शुद्ध ह्रदय वाले श्रोतागण हैं ; क्या उन सबको महिमा में जाने के लिए एक साथ समान विमान आएँगे ? नहीं
। अब प्रश्न यह उठता है कि आदिश्री के यहाँ सभी लोग समान
रूप से श्रवण-योग लगाते हैं फिर फल में इस प्रकार का भेद क्यों ? जबाब स्पष्ट है । यह ठीक है कि श्रवण तो सबने समान
रूप से ही किया परन्तु सबने एक जैसा अनुसरण नहीं किया । यही कारण है कि एक साथ समान सप्ताह श्रवण-योग लगाने पर भी उसके फल में भेद हो गया । यह विचार करने की बात है और समझने की बात है कि - एक आदमी ने 7 दिनों तक निराहार रह कर श्रवण-योग लगाया तथा सुने हुए विषयों का (उपदेशों या कथा का) स्थिर चित्त से खूब
मनन - निदिध्यासन भी करता रहा तो उसका फल भी उतना ही श्रेष्ट मिलेगा ।
सच्चाई यह है कि जो ज्ञान दृढ नहीं होता, वह व्यर्थ हो जाता है अर्थात जिस ज्ञान को मनन नहीं किया जाय तो
वह ज्ञान
व्यर्थ हो जाता है । इसी प्रकार ध्यान न देने से श्रवण पर संदेह करने से मन्त्र का और चित्त के इधर - उधर भटकते रहने से जप का
भी कोई फल
नहीं मिलता है । (श्रीमद्भागवतम महा पूराण, माहात्म्य, 5 : 73)