पिता का ऐतिहासिक महत्व
(आदिश्री अरुण)
प्रकृति को माता कहा गया है । माता तो गर्भाधान का स्थान होता है किन्तु पिता गर्भ को स्थापन करता है । पिता के द्वारा ही बच्चे तथा बच्चियाँ का दुनियाँ में पदार्पण होता है फिर भी कलियुग के इस कलिकाल में बच्चे और बच्चियाँ पिता की कीमत को भूल चुके हैं । यह सत्य है कि बिना पिता का उनका धरती पर जन्म लेना संभव ही नहीं है । वर्तमान समय में बच्चे एवं बच्चियाँ अपने जीवन में पिता के स्थान को ही डिलीट कर दिया है जबकि पिता के बिना उनका कोई वजूद ही नहीं है । मैं तो यह कहता हूँ कि अपने जुवान की ताकत उन पिता पर मत अजमाओ क्योंकि उसी के कारण तुम धरती पर आए हो, उसी ने तुम्हारे जीवन को सवांरा है और केवल उसी ने तुम्हें सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचाने के लिए मार्ग तैयार किया और सारे सुखों की तिलांजलि देकर एवं कठोर बनकर सफलता के उच्च शिखर पर पहुंचा कर दम लिया है । दुनियाँ में तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त तुम्हारा पिता है क्योंकि उनकी डाँट के पीछे भी बेपनाह प्यार है । रास्ते पर तो सभी चलते हैं पर जो रास्ता बनाये वही भगवान् है । पिता बहुत ही मिहनत करके घर बनाता है । वह स्वयं भूखा रह कर अपने बच्चे और पत्नी का पेट भरता है, उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है तथा कठोर परिश्रम करके उनकी हर ख्वाहिस को पूरा करता है । मिट्टी का मटका और परिवार की कीमत सिर्फ बनाने वाले को पता होता है तोड़ने वाले को नहीं । पानी अपना पूरा जीवन देकर पेड़ को बड़ा करता है यही कारण है कि पानी लकड़ी को कभी डूबने नहीं देता । पापा भी अपना पूरा जीवन देकर अपने बच्चों को बड़ा करता है यही कारण है कि पापा अपने बच्चों को कभी डूबने (दुःख व् संकट में पड़ने) नहीं देता ।
" जो तुम्हारी ख़ुशी के लिए हार मान सकता है
उस व्यक्ति से कभी जीत नहीं सकते;
सच कहता हूँ तुमसे कि उसी का नाम है पापा ।
पिता की करो सजदा दिल से तो इबादत बनेगी
पिता की करो सेवा तो अमानत बनेगी ।
खुलेगा जब तुम्हारी गुनाहों का खाता
तो पिता की सेवा तुम्हारी जमानत बनेगी । "