आदिश्री अरुण का महा उपदेश, भाग - 31
(आदिश्री अरुण)
हे भटके हुए लोगों ! आज आपकी और मेरी बातें ऐसे विषयों पर होगी जिसके बारे में आप कभी सोचे भी नहीं होंगे । आज की चर्चाएँ जिसके ह्रदय को स्पर्श करेगी उसका महिमा के लिए मार्ग खुल जाएगा । आप
मेरी एक बातों का जबाब दीजिये - भगवान् पक्षपात करते हैं या सबसे बराबर प्यार करते हैं ? यदि
भगवान सबसे बराबर प्यार करते हैं तो सबको एक जैसा रंग क्यों नहीं दिया ? भगवान सबसे बराबर प्यार करते हैं तो सबको एक जैसा स्वर या आबाज क्यों
नहीं दिया ? भगवान सबसे बराबर प्यार करते हैं तो सबको एक जैसा दिमाग क्यों
नहीं दिया ? भगवान सबसे बराबर प्यार करते हैं तो सबको बराबर धन क्यों नहीं दिया ? भगवान सबसे बराबर प्यार करते हैं तो सबको बराबर बल क्यों
नहीं दिया ? भगवान सबसे बराबर प्यार करते हैं तो सबको एक जैसा घर क्यों
नहीं दिया ? भगवान सबसे बराबर प्यार करते हैं तो सबको बराबर आयु क्यों नहीं दिया ? इसका अर्थ यह है कि भगवान सबको बराबर प्यार करते हैं लेकिन उनके कर्मों को देखते हुए न्याय पूर्वक प्यार करते हैं ।
आप कहते हैं कि भगवान तो दयालु हैं ; मनुष्य कितना भी पाप करे माफ़ कर देते हैं । लोगों की हत्या करो, ब्राह्मणों की ह्त्या करो, चोरी करो, डकैती करो, झूठ बोलो, भगवान दयालु हैं, भगवान सबको प्यार करते हैं तो क्या वो आपको माफ़ कर देंगे ? बोलो ? पुण्य का प्रभाव कभी भी नष्ट नहीं होता और पाप का प्रभाव भी कभी नष्ट नहीं होता । पाप व्यक्ति को मारता है और पुण्य
व्यक्ति को तारता है । जब ऐसी बात है तो आपके द्वारा किए गए पापों से तो आपको ही मृत्यु मिलेगी । यदि आप यह सोचेंगे कि भगवान् दयालु हैं, भगवान हमसे प्रेम करते हैं इसलिए वो हमको माफ़ कर देंगे तो ऐसा नहीं हो सकता । चुकि मनुष्यों को कर्म फल का ज्ञान नहीं होता है इसलिए मनुष्य लोगों
की हत्या करता है , ब्राह्मणों की ह्त्या करता है, चोरी करता है, डकैती करता है, झूठ बोलता है ।
कर्म फल क्या है ? जैसा करोगे वैसा भरोगे, जैसा बोओगे वैसा काटोगे । अपने पानी पीया तो उसका फल क्या है ? प्यास मिट जाएगी कोई भी पीकर देख लो । रोटी खाओगे तो भूख मिट जाएगी कोई भी खाकर देख लो । नींद आजाएगी तो थकान मिट जाएगी । मिहनत करोगे तो सफलता मिलेगी । पीपल का या बड़ का, तिल का एक बीज बोओ तो कई गुना बीज मिलेगा । बड़ का के बीज में कितना बीज होता है ? किसी ने गिनती किया है ? अनंत बीज होते हैं । एक बीज से अनंत बीज प्राप्त होते हैं । यह है कर्म फल । जो आप बोते हैं आपको उसका अनंत गुना मिलता है । आप सब जो दान देते हैं, आप सब जो सहयोग देते हैं ये भी आपको अनंत गुना होकर मिलने वाला है । यदि आप चोरी करोगे, धोखा करोगे, बेईमानी करोगे, हिंसा करोगे, झूठ बोलोगे तो इसका फल भी आपको कई गुना मिलने वाला है । लूटना है तो लूटो लेकिन तू भी फिर लुटाने वाला है । तुम किसी का इज्जत लुटते हो तो लूटो लेकिन तेरी भी और तेरी माँ - बहन और पुरे खानदान की इज्जत लूटने वाली है । आप दूसरे के साथ बुरा करते हो तो करो लेकिन तेरी भी माँ - बहन और खानदान के साथ बुड़ा होगा । जो आप करोगे वो आपको कई गुना होकर मिलेगा । तो अब सबाल यह उठता है कि साधारण भाषा में पाप और पुण्य क्या है ? जिससे आपको और हमको सुख मिले वह पुण्य है और जिससे आपको और हमको दुःख मिले वह पाप है । कोई आपको सम्मान करे तो आपको सुख मिलगा या दुःख ? सुख मिलेगा । यदि एक बार कोई किसी का अपमान करे तो वह उस दुःख को जिंदगी भर नहीं भूलेगा तो आप किसी का अपमान नहीं करो ताकि आपको कई गुना अपमान रूपी दुःख नहीं सहना पड़ेगा ।
आपको कर्म के बारे में अज्ञान नहीं होना चाहिए । कर्म के बारे में मनुष्य अज्ञान होता है इसलिए वह पाप करता है या अधर्म करता है । आहार के बारे में मालूम नहीं होता है इसलिए व्यक्ति बीमार होता है। व्यवहार के बारे में मनुष्य को ज्ञान नहीं होता इसलिए घर में क्लेश होता है । घर में करोड़ों की दौलत है फिर भी घर में क्लेश है । एक बहन जी से मुझसे मिली तो वह मुझसे बोली कि मैं मरना चाहती हूँ । मैंने पूछा क्यों ? घर में मेरे को शांति नहीं है । कई पति जिसके पास हजार करोड़ की दौलत थी वो आत्म हत्या करके मर गए । क्यों ? शांति नहीं - शांति नहीं बल्कि उनके घर में क्लेश था । व्यवहार के बारे में ज्ञान नहीं होने से घर में, परिवार में क्लेश रहता है । व्यापार का ज्ञान नहीं होने से व्यापार में घाटा होता है और उसे दुःख होता है - मेरा सब कुछ लूट गया । व्यापार में घाटा तो B .P. और शुगर में बढ़ोतरी, केलोस्ट्रोल में बढ़ोतरी, वजन में बढ़ोतरी, दुःख में बढ़ोतरी । जीवन का बोध नहीं होने से, जन्म का बोध नहीं होने से, आत्मा का बोध नहीं होने से, परमात्मा का बोध नहीं होने से मनुष्य को संसार में दुःख झेलना पड़ता है । आत्मा और परमात्मा का ज्ञान नहीं होने से मनुष्य को सभी प्रकार के दुःख झेलने पड़ते हैं ।
शरीर तो यन्त्र है। भगवान ने अपना काम करने के लिए यन्त्र बनाया । भगवान का सबसे श्रेष्ट रचना क्या है ? मनुष्य । भगवान ने मनुष्य किस लिए बनाया ? भोग भोगने के लिए नहीं । ज़रा सोचो - भगवन ने पेड़ किस लिए बनाए ? मनुष्य को छाया और फल देने के लिए । गाय किस लिए बनाए ? मनुष्य को दूध देने के लिए, धरती किस लिए बनाए ? मनुष्य की रहने के लिए और मनुष्य को अन्न देने के लिए । जल किसके लिए मनुष्य के लिए, सूर्य, चाँद, सितारे, रात, दिन, उजाला, अँधियारा इत्यादि किसके लिए बनाए ? मनुष्य के लिए। मनुष्य किसके लिए बनाए ? भगवान के मनुष्य को अपने लिए बनाया गया ।
भगवान् को अपना काम करना था इसलिए उन्होंने मनुष्य को बनाया । भगवान को दिव्य कर्म करने थे इसलिए उनको हाथ चाहिए तो उन्होंने मनुष्य के लिए हाथ बनाया । तो ये हाथ किसका है ? मेरा नहीं यह भगवान का है । भगवान को इस संसार को देखना था इसलिए उन्होंने मनुष्य के लिए आँख बनाया । भगवान को इस धरती को ज्ञान देना था इसलिए भगवान ने अपना ज्ञान देने के लिए हमारा दिमाग बनाया । करना तो भगवान को है लेकिन इस काम के लिए भगवन ने मनुष्य रूपी शरीर यन्त्र के रुप में निर्माण किया । गीता 18 अध्याय का 61 श्लोक में भगवान ने कहा कि " हे अर्जुन ! शरीर रूप यंत्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण करता हुआ सब प्राणियों के ह्रदय में स्थित है । "
कर्म फल क्या है ? जैसा करोगे वैसा भरोगे, जैसा बोओगे वैसा काटोगे । अपने पानी पीया तो उसका फल क्या है ? प्यास मिट जाएगी कोई भी पीकर देख लो । रोटी खाओगे तो भूख मिट जाएगी कोई भी खाकर देख लो । नींद आजाएगी तो थकान मिट जाएगी । मिहनत करोगे तो सफलता मिलेगी । पीपल का या बड़ का, तिल का एक बीज बोओ तो कई गुना बीज मिलेगा । बड़ का के बीज में कितना बीज होता है ? किसी ने गिनती किया है ? अनंत बीज होते हैं । एक बीज से अनंत बीज प्राप्त होते हैं । यह है कर्म फल । जो आप बोते हैं आपको उसका अनंत गुना मिलता है । आप सब जो दान देते हैं, आप सब जो सहयोग देते हैं ये भी आपको अनंत गुना होकर मिलने वाला है । यदि आप चोरी करोगे, धोखा करोगे, बेईमानी करोगे, हिंसा करोगे, झूठ बोलोगे तो इसका फल भी आपको कई गुना मिलने वाला है । लूटना है तो लूटो लेकिन तू भी फिर लुटाने वाला है । तुम किसी का इज्जत लुटते हो तो लूटो लेकिन तेरी भी और तेरी माँ - बहन और पुरे खानदान की इज्जत लूटने वाली है । आप दूसरे के साथ बुरा करते हो तो करो लेकिन तेरी भी माँ - बहन और खानदान के साथ बुड़ा होगा । जो आप करोगे वो आपको कई गुना होकर मिलेगा । तो अब सबाल यह उठता है कि साधारण भाषा में पाप और पुण्य क्या है ? जिससे आपको और हमको सुख मिले वह पुण्य है और जिससे आपको और हमको दुःख मिले वह पाप है । कोई आपको सम्मान करे तो आपको सुख मिलगा या दुःख ? सुख मिलेगा । यदि एक बार कोई किसी का अपमान करे तो वह उस दुःख को जिंदगी भर नहीं भूलेगा तो आप किसी का अपमान नहीं करो ताकि आपको कई गुना अपमान रूपी दुःख नहीं सहना पड़ेगा ।
आपको कर्म के बारे में अज्ञान नहीं होना चाहिए । कर्म के बारे में मनुष्य अज्ञान होता है इसलिए वह पाप करता है या अधर्म करता है । आहार के बारे में मालूम नहीं होता है इसलिए व्यक्ति बीमार होता है। व्यवहार के बारे में मनुष्य को ज्ञान नहीं होता इसलिए घर में क्लेश होता है । घर में करोड़ों की दौलत है फिर भी घर में क्लेश है । एक बहन जी से मुझसे मिली तो वह मुझसे बोली कि मैं मरना चाहती हूँ । मैंने पूछा क्यों ? घर में मेरे को शांति नहीं है । कई पति जिसके पास हजार करोड़ की दौलत थी वो आत्म हत्या करके मर गए । क्यों ? शांति नहीं - शांति नहीं बल्कि उनके घर में क्लेश था । व्यवहार के बारे में ज्ञान नहीं होने से घर में, परिवार में क्लेश रहता है । व्यापार का ज्ञान नहीं होने से व्यापार में घाटा होता है और उसे दुःख होता है - मेरा सब कुछ लूट गया । व्यापार में घाटा तो B .P. और शुगर में बढ़ोतरी, केलोस्ट्रोल में बढ़ोतरी, वजन में बढ़ोतरी, दुःख में बढ़ोतरी । जीवन का बोध नहीं होने से, जन्म का बोध नहीं होने से, आत्मा का बोध नहीं होने से, परमात्मा का बोध नहीं होने से मनुष्य को संसार में दुःख झेलना पड़ता है । आत्मा और परमात्मा का ज्ञान नहीं होने से मनुष्य को सभी प्रकार के दुःख झेलने पड़ते हैं ।
शरीर तो यन्त्र है। भगवान ने अपना काम करने के लिए यन्त्र बनाया । भगवान का सबसे श्रेष्ट रचना क्या है ? मनुष्य । भगवान ने मनुष्य किस लिए बनाया ? भोग भोगने के लिए नहीं । ज़रा सोचो - भगवन ने पेड़ किस लिए बनाए ? मनुष्य को छाया और फल देने के लिए । गाय किस लिए बनाए ? मनुष्य को दूध देने के लिए, धरती किस लिए बनाए ? मनुष्य की रहने के लिए और मनुष्य को अन्न देने के लिए । जल किसके लिए मनुष्य के लिए, सूर्य, चाँद, सितारे, रात, दिन, उजाला, अँधियारा इत्यादि किसके लिए बनाए ? मनुष्य के लिए। मनुष्य किसके लिए बनाए ? भगवान के मनुष्य को अपने लिए बनाया गया ।
भगवान् को अपना काम करना था इसलिए उन्होंने मनुष्य को बनाया । भगवान को दिव्य कर्म करने थे इसलिए उनको हाथ चाहिए तो उन्होंने मनुष्य के लिए हाथ बनाया । तो ये हाथ किसका है ? मेरा नहीं यह भगवान का है । भगवान को इस संसार को देखना था इसलिए उन्होंने मनुष्य के लिए आँख बनाया । भगवान को इस धरती को ज्ञान देना था इसलिए भगवान ने अपना ज्ञान देने के लिए हमारा दिमाग बनाया । करना तो भगवान को है लेकिन इस काम के लिए भगवन ने मनुष्य रूपी शरीर यन्त्र के रुप में निर्माण किया । गीता 18 अध्याय का 61 श्लोक में भगवान ने कहा कि " हे अर्जुन ! शरीर रूप यंत्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण करता हुआ सब प्राणियों के ह्रदय में स्थित है । "
तो मस्तिष्क में प्रेरणा कौन दे रहा है ? भगवान । मस्तिष्क में ज्ञान किसका है ? भगवान का ।
आँखों में देखने की शक्ति किसकी है ? भगवान् का ।
कानों में सुनने की शक्ति किसकी है ? भगवान का ।
वाणी में बोलने की शक्ति किसकी है ? भगवान् का ।
मनुष्य अज्ञान के कारण मान लेता है कि मैं ही सब कुछ हूँ ।
अग्नि ने कहा कि मुझमें इतनी शक्ति है कि पूरी दुनिया को जला दूँ । भगवान् ने कहा कि जला के दिखा - तो वह कुछ नहीं कर सका । वायु
ने कहा कि मुझमें इतनी शक्ति है कि पूरी दुनिया को उड़ा दूँ
। भगवान् ने कहा कि उड़ा के दिखा - तो वह कुछ नहीं कर सका । भगवान् ने कहा कि सारी
शक्ति मुझसे है । मनुष्य को भ्रम है कि मुझसे है । शक्ति का श्रोत क्या है ? पूर्ण
ब्रह्म ।
ईश्वर ने कहा कि " मेरे भय से वायु चलती है, मेरे भय से सूर्य तपता है, मेरे भय से इन्द्र वर्षा करता है और अग्नि जलती है तथा मेरे ही भय से मृत्यु अपने कार्य में प्रवृत होता है । योगीजन भक्ति योग के द्वारा शांति प्राप्त करने के लिए मेरे निर्भय चरण कमलों का आश्रय लेते हैं ।" (श्रीमद्भागवतम महा पुराण 3 ; 25 : 42 -43 )
गीता अध्याय 18 का श्लोक 55 में भगवान ने कहा कि - जो प्राणी मुझ परमात्मा को, मैं जो हूँ और जितना हूँ, ठीक वैसा का वैसा जान लेता है. वह तत्काल ही मुझमें प्रविष्ट हो जाता है ।
ईश्वर ने कहा कि " मेरे भय से वायु चलती है, मेरे भय से सूर्य तपता है, मेरे भय से इन्द्र वर्षा करता है और अग्नि जलती है तथा मेरे ही भय से मृत्यु अपने कार्य में प्रवृत होता है । योगीजन भक्ति योग के द्वारा शांति प्राप्त करने के लिए मेरे निर्भय चरण कमलों का आश्रय लेते हैं ।" (श्रीमद्भागवतम महा पुराण 3 ; 25 : 42 -43 )
गीता अध्याय 18 का श्लोक 55 में भगवान ने कहा कि - जो प्राणी मुझ परमात्मा को, मैं जो हूँ और जितना हूँ, ठीक वैसा का वैसा जान लेता है. वह तत्काल ही मुझमें प्रविष्ट हो जाता है ।