How to attain Bhakti yog


भक्ति योग की प्राप्ति




लोगों के कल्याण के लिए अथवा  ईश्वर की प्राप्ति के लिए तीन साधन बताये गए हैं - ज्ञान योग, कर्म योग तथा भक्ति योग जिसमें भक्ति योग सबसे सरल है लेकिन भक्ति योग की प्राप्ति किस प्रकार होगी यह सबके लिए विचारणीय है
भक्ति योग की सिद्धि प्राप्त करने के लिए आदिश्री अरुण जी ने 39 बातों का उल्लेख  (Points ) किया जिसको भगवन श्री कृष्ण ने गीता 12 :1 - 20  में विस्तार से वर्णन किया है कल्याण चाहने वाले मनुष्यों  के लिए आदिश्री अरुण जी के दिव्य वचन निम्न प्रकार वर्णित हैं -
 (1) भजन ध्यान में लगे रहना (2) अनन्य श्रद्धा रखना (3) ईश्वर के सगुन रूप में मन लगना (4) इन्द्रियों को वश में करना (5) मन और बुद्धि से परे निराकार अविनाशी परमेश्वर में ध्यान लगाना  (6) सम्पूर्ण भूतों में समान भाव रखना (7) सब प्राणियों में समान भाव रखना (8) ईश्वर के परायण / आधीन रहना (Depend upon  God) (9) सम्पूर्ण कर्मों को ईश्वर में अर्पण करना यहाँ तक कि मन और बुद्धि को ईश्वर में अर्पण करना (10) ईश्वर में अनन्य भक्ति और  अनन्य प्रेम  रखना (11)  ईश्वर का निरन्तर चिंतन करना  (12) केवल ईश्वर में ही चित्त लगाना (13) ईश्वर के स्वरुप   का  ध्यान अथवा  योगाभ्यास करना (14) केवल ईश्वर को ही प्राप्त करने की इच्छा रखना (15) सब भूतों में द्वेष भाव से रहित होना (16) सभी कर्मों के फल का त्याग करना (17) सम्पूर्ण भूतों में स्वार्थ रहित रहना (18) सबका प्रेमी होना (19) दयालु (20) ममता से रहित  (free from attachment to possession) तथा स्वार्थ से रहित  (21) अहंकार से रहित (22) सुख - दुःख की  प्राप्ति में सम  (23) क्षमावान (24) अपराध करने वालों को भी अभय देने वाला  (25) निरन्तर संतुष्ट रहना (26) मन - इन्द्रियों सहित शरीर को वश में किए रहना (27) ईश्वर में दृढ़ निश्चय रखने वाला (28) ईश्वर प्राप्ति रूप योग के आश्रित होकर उपयुक्त साधन करने में असमर्थ  है तो मन-बुद्धि पर विजय प्राप्त करना (29) जिससे कोई जीव उद्वेग  (anxiety) को प्राप्त नहीं होता  (30) जो स्वयं  भी किसी उद्वेग  (anxiety) को प्राप्त नहीं होता (31) हर्ष (harha—pleasure), अमर्ष (amarha—pain) से रहित (32) भय और उद्देग से रहित (33) आकांछा से रहित, बाहर-भीतर से शुद्ध (externally and internally pure) , चतुर (skillful), पक्षपात से रहित (without cares), दुखों से छूटा हुआ (untroubled), सब आरम्भों का त्यागी (free from selfishness in all undertakings) (34) जो कभी हर्षित हो , कामना करे , शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी हों   (35) शत्रु-मित्र में, मान-अपमान में सम, सर्दी-गर्मी और  सुख-दुःख आदि में सम हों (36) आसक्ति से रहित हों  (37) निन्दा-स्तुति को समान समझने वाला (38) मननशील (silent contemplation) (39) किसी भी प्रकार से शरीर का निर्वाह होने में सदा ही संतुष्ट हो, रहने के स्थान में ममता आसक्ति से रहित तथा स्थिर बुद्धि वाला  

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