Guru Parv / गुरु पर्व


गुरु पर्व


21 जुलाई 2018 को गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पर्व आप भी मनाईए

गुरु पूर्णिमा का  पर्व एक  महीने तक  मनाया जाता है।
आप जुलाई महीने में किसी भी दिन गुरु पूर्णिमा का  पर्व मना सकते हैं।

गुरु पूर्णिमा राष्ट्रिय स्तर का पर्व है जो गुरु में समर्पण को व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है और यह सारे संसार में मनाया जाता है।

प्राचीन समय  में गुरु वेद व्यास जी चार वेद लिखे थे  जो भगवान ब्रह्मा जी के
द्वारा सुनाया गया था। सारे संसार के लोग गुरु वेद व्यास जी के इस पुनित कार्य के लिए कर्जदार हैं। उन्होंने 18  महा पुराण लिखा। उस समय  गुरु के प्रति समर्पण को व्यक्त करने के लिए एक दिन निश्चित किया गया जिसको गुरु पूर्णिमा पर्व कहते हैं।

आदि श्री अरुण  21 जुलाई 2016 को गुरु पूर्णिम का पर्व मनाएँगे,  क्योंकि
सबसे पहली बार आदि श्री जब गुरु पूर्णिमा पर्व मनाये थे तो  उस दिन  21
जुलाई को  पूर्णिमा था । तब  से 21 जुलाई को ही गुरु पूर्णिमा का पर्व
मनाया जाने लगा।

गुरु पर्व के दिन क्या करें ?

गुरु पर्व के दिन गुरुदेव की पूजा करने से पहले अन्तःकरण को शुद्ध करें इसके बाद ह्रदय से गुरदेव की  वन्दना करें ।
प्रत्येक प्राणी चाहे वह अमिर हो चाहे या गरीब गुरुदेव की पूजा करने के बाद
गुरुदेव को 5 चीज भेंट के रूप में अर्पण करके गुरुदेव से आशीर्वाद लें 
गुरुदेव को भेंट देने योग्य मुख्यतः 5  चीज हैं जो निम्नलिखित हैं -
1.पुष्प 2.फल (ड्राय फ्रूट) 3. अन्न (धान का चुरा या राजधानी चुरा) 4.वस्त्र 5.मुद्राएँ या रुपये 
                                               

(आदिश्री अरुण


ध्यानमूलं गुरुर्मूर्तिः ,  पूजामूलं गुरुर्पदम मंत्रमूलं  गुरुर्वाक्यं , मोक्ष मूलं गुरुर्कृपा ।।
मूल ध्यान गुरु रूप है, मूल पूजा गुरु पाँव मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य सतभाव
पंडित पाढ़ि गुनि पचि मुये, गुरु बिना मिलै ज्ञान ज्ञान बिना नहिं मुक्ति है, सत्त शब्द परनाम
सोइ-सोइ नाच नचाइये, जेहि निबहे गुरु प्रेम कहै आदिश्री  गुरु प्रेम बिन, कतहुँ कुशल नहि क्षेम
कहैं आदिश्री जजि भरम को, नन्हा है कर पीव तजि अहं गुरु चरण गहु, जमसों बाचै जीव
कोटिन चन्दा उगही, सूरज कोटि हज़ार तीमिर तौ नाशै नहीं, बिन गुरु घोर अंधार
तबही गुरु प्रिय बैन कहि, शीष बढ़ी चित प्रीत ते रहियें गुरु सनमुखाँ कबहूँ दीजै पीठ
तन मन शीष निछावरै, दीजै सरबस प्राण । कहैं आदिश्री गुरु प्रेम बिन, कितहूँ कुशल नहिं क्षेम
जो गुरु पूरा होय तो, शीषहि लेय निबाहि शीष भाव सुत्त जानिये, सुत ते श्रेष्ठ शिष आहि
भौ सागर की त्रास तेक, गुरु की पकड़ो बाँहि गुरु बिन कौन उबारसी, भौ जल धारा माँहि
करै दूरि अज्ञानता, अंजन ज्ञान सुदेय बलिहारी वे गुरुन की हंस उबारि जुलेय
सुनिये सन्तों साधु मिलि, कहहिं आदिश्री बुझाय जेहि विधि गुरु सों प्रीति छै कीजै सोई उपाय
अबुध सुबुध सुत मातु पितु, सबहि करै प्रतिपाल अपनी और निबाहिये, सिख सुत गहि निज चाल
लौ लागी विष भागिया, कालख डारी धोय कहैं आदिश्री गुरु साबुन सों, कोई इक ऊजल होय
राजा की चोरी करे, रहै रंग की ओट । कहैं आदिश्री क्यों उबरै, काल कठिन की चोट
साबुन बिचारा क्या करे, गाँठे राखे मोय जल सो अरसां नहिं, क्यों कर ऊजल होय


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