आदिश्री अरुण का महा उपदेश, भाग - 28
(आदिश्री अरुण)
इन्द्रियों को हठ पूर्वक रोके, विषयों से मन को न हटाए
रखे व्रत उपवास
परन्तु न लालसा छूटे न लोभ ही जाए
मन में कुछ आचरण में कुछ है - २; दोनों का नहीं मेल मिलाए
मन में कुछ आचरण में कुछ है ; दोनों का नहीं मेल मिलाए
ऐसा मूढ़ मति अज्ञानी , मिथ्याचारी दम्भी कहाए - २
हे मनुष्य ! स्थित प्रज्ञ मनुष्य की बुद्धि स्थिर रहती है, अपने मन पर उसका नियंत्रण रहता है । स्थित
प्रज्ञ भोग और उपभोगों में रस आसक्ति नहीं रहती । वे शुभ - अशुभ वस्तुओं के प्राप्ति के बाद भी न प्रसन्न होते हैं और न दुखी होते हैं । हे मनुष्य ! ऐसे महा पुरुषों को पूर्ण विश्वास होता है कि ईश्वर सदा सर्वदा उनके पास है । इसलिए वे किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होते । लेकन यह कार्य आम साधारण मनुष्य के लिए संभव नहीं है । लेकिन असंभव भी नहीं है । इस कार्य को संभव बनाने के लिए दैवी
कृपा की आवश्यकता होती है क्योंकि भी कार्य दैविक कृपा के बिना सिद्ध नहीं होता । इसलिए
मनुष्य को अपने पुरुषार्थ के साथ - साथ ईश्वर की भक्ति का भी आश्रय लेना चाहिए ।
हे मनुष्य ! ईश्वर की भक्ति करने से मन सात्विक हो जाता है और विषयासक्ति पूर्णतः समाप्त हो जाती है ।
हे मनुष्य ! तुम पूछते हो कि यदि आसक्ति का नाश नहीं हुआ तो क्या होगा ? हे
मनुष्य ! मैं तुमसे सच कहता हूँ कि यदि आसक्ति का नाश नहीं हुआ तो मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है । हे मनुष्य ! आसक्ति के कारण हर मनुष्य किसी भी विषय के आकर्षण और मोह में फसकर सोते - जागते निरंतर उसी का चिंतन करते रहते हैं । यदि कोई मनुष्य सुन्दर महल को देख कर ललायित हो जाता है तो वह मनुष्य निरंतर सोते - जागते उसी का चिंतन करते रहता है । तब आसक्ति के नीव पर कामना का भाव
उभरने लगता है । कामना में थोड़ी भी रुकावट आने से क्रोध का आगमन हो जाता है । जहाँ क्रोध है वहां अविवेक उत्पन्न हो जाता है अर्थात क्रोद्ध से विवेक का नाश हो जाता है।
जिस प्रकार प्रचंड वायु के झोंके से दीपक बुझ जाती है
ठीक उसी प्रकार कामना युक्त अविवेक की आँधी से मनुष्य की स्मृति नष्ट हो जाती है, और जब स्मृति नष्ट हो जाती है तब बुद्धि का
नाश होने में बहुत समय नहीं लगता अर्थात शीघ्र ही बुद्धि का नाश हो जाता है । चैतन्य
का नाश होने पर जो स्थिति शरीर की होती है ठीक वही दशा बुद्धि का नाश होने पर मनुष्य
की हो जाती है । बुद्धि नाश
हो जाने के कारण मनुष्य का भी सर्वनाश हो जाता है ।
विषयों के ध्यान से आसक्ति जन्मे , आसक्ति कामना की अग्नि जगाए
कामना पूर्ति में बाधा पड़े तो, आए क्रोध जो बोध मिटाए
क्रोध से मूढ़ता हो उत्पन्न - २, तो मूढ़ता ही चित्त में भ्रम
को लाए
क्रोध से मूढ़ता हो उत्पन्न - २, कि मूढ़ता
ही चित्त में भ्रम
को लाए
भ्रम से होता बुद्धि का नाश, जो मानव को निज पथ से गिराए
जिसका बुद्धि नाश हुआफिर उसका सर्वनाश हो जाए
उपरक्त
कथन की पुष्टि करते हुए गीता 2 : 62 - 63 में
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा कि - विषयों का चिंतन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति
हो जाती है, आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोद्ध उत्पन्न
होता है ; क्रोध से अत्यंत मूढ़भाव उत्पन्न हो जाता है, मूढ़भाव से स्मृति में भ्रम हो
जाता है, स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है
और बुद्धि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है ।
जिस
कामना को इतना खराब कहा गया है वास्तव में कामना एक शक्ति का श्रोत है जिसके द्वारा
मनुष्य जीवन में परमानन्द को प्राप्त कर सकता
है । परन्तु यदि कामना की शक्ति मनुष्य के नियंत्रण में न रहे तो वही शक्ति मनुष्यों
का सर्वनाश कर देती है । मैं आपसे सच कहता हूँ कि यदि किसी भी शक्ति का दुरूपयोग किया
जाय तो वह परम विनाशकारी बन जाती है और यदि उसका
सदुपयोग किया जाता हो जाता है तो वही शक्ति वरदान बन जाती है । इस प्रकार कामना
की शक्ति जो भी वरदान बन सकती है और श्राप
भी ।