Surrender / समर्पण

समर्पण 

(आदिश्री अरुण

Surrender / समर्पण


गुरु के चरणों में फूल चढाने सेअथवा  सिर्फ गुरु का आदेश मानाने मात्र से क्या समर्पण सिद्ध होता है नहीं । समर्पण का वास्तविक अर्थ है जब गुरु के प्रति मन में कोई संदेह नहीं रहे । गुरु के मुख से आदेश निकलने के  पूर्व शिष्य उस कार्य को पूरा कर दे । गुरु के विचारों के साथ शिष्य के विचार एक हो जाय । शिष्य जब तक अपने गुरु में ब्रह्माविष्णुमहेश समेत इनके रूप न  देखे तब तक उसका समर्पण  सत्य नहीं । यदि सच पूछा जाय तो समर्पण किसी कार्य का नाम नहीं बल्कि समर्पण तो ह्रदय की भावना और मन की स्थिति का नाम है । समर्पण सभी आध्यात्मिक साधनाओं के पराकाष्ठा पर पहुँचने के महत्वपूर्ण साधन का नाम है और इसका वास्तविक उद्देश्य ज्ञान का क्रमिक विकास है । यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बिना शर्त स्वयं को समर्पण किया जाता है जिसमें सब प्रकार का अहंकारअहंभावस्वार्थपरतादिखावटी स्वार्थपरक कार्यदम्भ तथा स्वार्थपरायण क्रिया कलाप का नाश हो जाता है और वह अपने गुरु या फिर अपने ईश्वर में मिलकर एक हो जाता है और उनकी सम्पूर्ण  सृष्टि की सेवा करता  है ।  जिस व्यक्ति के अंदर  पूर्ण संतोषनिर्लिप्तता या वैराग्यधैर्य वाली स्वाभावदया की दिव्यताईश्वर में विश्वास  की शक्ति तथा गुरु और शिष्य के बीच का सम्बन्ध अथवा ईश्वर या शिष्य के बीच का सम्बन्ध दिख पड़े तो उसको समर्पण कहा जाता है   

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