आदिश्री के महा उपदेश, भाग - 8
(आदिश्रीअरुण)
आजकल के मनुष्य के जीवन की योजना का आधार ही है भय । मनुष्य हमेशा ही भय का
कारण ढूँढ़ लेता है और उसी के आधार पर कर्म करने का निश्चय करता है । जीवन में जिन
मार्गों का वे चुनाव करते हैं वे चुनाव भी मनुष्य भय के कारण ही करते हैं । अब
प्रश्न यह उठता है कि क्या यह भय वास्तविक
होता है ? भय का अर्थ है आने वाले
विपत्ति की कल्पना। समय का स्वामी कौन है ? न तो आप समय के स्वामी हैं न आपके शत्रु और न ही आपके
प्रतिद्वन्दी । समय तो केवल ईश्वर के आधीन चलता है । तो क्या यदि कोई आपको हानि
पहुँचाने के लिए केवल योजना बनाता है तो वास्तव में वो आपको हानि पहुंचा सकता है ?
नहीं, कभी नहीं । किन्तु भय से भरा हुआ ह्रदय आपको अधिक हानि पहुंचता है । क्योंकि विपत्ति के समय लिया गया निर्णय
हमेशा ही अयोग्य निर्णय होता है और यह अयोग्य निर्णय हमेशा ही विपत्ति को अत्यधिक
पीड़ादायक बनाता है । किन्तु विश्वास से भरा ह्रदय विपत्ति के समय को भी बड़ा ही
सरलता से पार कर जाता है । अर्थात जिस कारण से मनष्य भय को स्थान देता है भय ठीक
उसके विपड़ीत कार्य करता है ।