Maha Upadesh of Aadishri, Part – 6 (New) ; आदिश्री के महा उपदेश, भाग - 6 (New)
(आदिश्री अरुण )
मन का स्वभाव ही है चंचलता । गीता अध्याय 6 : 34 इस कथन की पुष्टि करते हुए कहा कि यह मन बड़ा चंचल, प्रमथन स्वभाव
वाला, बड़ा ढृढ़ और बलवान है । अब
बच्चे को देखिए । उनके माता - पिता कहेंगे कि झील के पास मत जा, जंगल
में मत खेलना, तो वह बच्चा निश्चित ही वही करेंगे जिसके लिए
उसे मना किया गया है । बन्धन को तोड़ने में ही मनुष्य को बड़ा मजा आता है बल्कि
मनुष्य को बन्धन को तोड़ने के लिए
मन बड़ा ही ललचाता है । मन जब भ्रमित होता है तब वह सोचने समझने की क्षमता को खो देता है । वह भ्रम से मायाजाल में फस जाता है । अब प्रश्न यह उठता है कि मन शांत कैसे रहे ?
उत्तर
बड़ा ही सरल है । धीरज रखने से मन शान्त रहता है, आप एकाग्रचित हो
जाते हैं, भ्रम के मायाजाल
से निकलकर अपने लक्ष्य को देख पाते हैं । इसलिए धीरज रखना सीखें । चुकि धीरज बहुत
बड़ी शक्ति है इसलिए मनुष्य को इसे अपने व्यवहारिक जीवन में उपयोग करना चाहिए ।
कई बार मनुष्य अपने लक्ष्य के बहुत
करीब होता है पर अचानक वह मार्ग बंद हो जाता है या फिर वह मनुष्य भ्रम में फस जाता
है, कभी - कभी उस भ्रम से जूझकर मनुष्य हार मान लेता है और कभी - कभी उस
भ्रम को ही मनष्य अपना लक्ष्य समझ लेता है
और ऐसी स्थिति में मनुष्य का
लक्ष्य उससे दूर होता चला जाता है । अब प्रश्न यह उठता है कि क्या किया जाय ?
उत्तर है धैर्य । धैर्य तब उत्पन्न होगा जब मन को बन्धन में
डालें । मैं मानता हूँ कि मन बड़ा चंचल, प्रमथन स्वभाव वाला, बड़ा
ढृढ़ और बलवान है परन्तु यह अभ्यास से ही वश में होता है । गीता 6 : 35 इस कथन की
पुष्टि करता है । लेकन बन्धन और मर्यादा
में बड़ा अन्तर है । कभी - कभी बन्धन तोड़ना उचित होता है परन्तु
मर्यादा तोड़ना उचित नहीं चाहे वह प्रेम की
हो, चाहे वह शत्रुता की हो, चाहे वह अतिथि की हो, चाहे
वह बाप - बेटा का हो, चाहे वह सास - बहु की हो, चाहे वह गुरु - शिष्य का हो । अब
प्रश्न यह उठता है कि मर्यादा है क्या ? हमें कैसे मालुम हो कि हमें किस सीमा
को नहीं तोड़ना चाहिए ? इसका
उत्तर बड़ा ही सरल है । जैसा व्यवहार आप किसी दूसरे से उम्मीद करते हैं कि वह
मनुष्य आपके साथ करे वास्तविकता में वही आपकी भी मर्यादा है । जो सीमा आप किसी
दूसरे को पार नहीं करने देना चाहते हैं वही सीमा आपकी भी है । जिस दिन से आप अपनी
मन से यह प्रश्न करना प्रारम्भ कर देंगे उस
दिन से न आपसे कोई मर्यादा भंग होगी और न ही आपसे कोई अपराध होगा । इसलिए
कहा गया है कि जब आपका मन नियंत्रण में हो तो आपके ह्रदय
के साथ - साथ आपके मन में भी ईश्वर निवास करेंगे । तब यदि आप अपने मन से मर्यादा का उत्तर पूछेंगे तो आपका मन आपको कभी
भी अनुचित उत्तर नहीं देगा ।