आदिश्री का महा उपदेश, भाग - 13
लोग दुःख को देख कर घबरा जाते हैं और पूछते हैं कि मेरे
जिंदगी में दुःख का अंत कब होगा ? मनुष्यों के जीवन में दुःख और सुख तो
आते - जाते रहते हैं । वास्तविकता यह है कि
सर्दी - गर्मी, सुख और दुःख ये इन्द्रियों के साथ जुड़े हुए
अनुभव मात्र हैं जो अनित्य हैं। ये तो आते
- जाते रहते हैं । जब सुख और दुःख आते हैं तो मनुष्य उसको स्थाई समझ कर जीते हैं ।
वे इस बात को भूल जाते हैं कि यह अनित्य
है और यही भूल दुःख का सबसे बड़ा कारण बनता है। गीता अध्याय 2 के श्लोक 14 में ईश्वर ने
कहा कि “सर्दी - गर्मी
और सुख - दुःख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति - विनाशशील
और अनित्य है । इसलिए हे मनुष्य ! इनको तू सहन कर ।" अगर आप ईश्वर के इस रहस्य मय बातों को अपने
जीवन में लागू करते हैं तो आप कभी भी सुख - दुःख, सर्दी या गर्मी
से विचलित नहीं होंगे क्योंकि उस समय आपको पता होगा जो परम सत्य है वो इन
इन्द्रियों से परे है, वो परमात्मा है जो नित्य है । आज कल मनुष्य
छोटी - छोटी बातों को लेकर दुःख और सुख के वयार में बह जाते हैं । अगर लोग उनकी तस्वीर पसंद नहीं करते तो वे तुरत उदास हो जाते हैं और यदि पसन्द करते हैं तो वे अचानक
से आनंदित हो जाते हैं । थोड़ी देर के बाद दूसरी तस्वीर लोगों के सामने रखते हैं । अगर यह तस्वीर लोगों को पसन्द नहीं
आती है तो फिर से वे उदास हो जाते हैं। मनुष्य अपनी जिंदगी को ऐसे मूल्यहीन बातों पर आश्रित कर लेते हैं । जरा सोचिए कि आज का मनुष्य जो तुछ्य बातों
से सुख - दुःख के वयार में बह जाते हैं उनको मैं क्या सलाह दूँ ? जबकि ये सुख और दुःख दोनों ही अनित्य हैं । जब आप दुःख के बोझ के नीचे दब जाइए
तब मेरी बातों को जरूर स्मरण कीजिए ।
इससे आपको सुख - दुःख के दुःश्चक्र से अवश्य
ही छुटकारा
मिलेगा ।
तथास्तु ! अर्थात ऐसा ही हो ।