आदिश्री का महा उपदेश; भाग - 12
(आदिश्री अरुण)
हे मनुष्य ! तुम अपने मन की झोली फैला
दो तभी तुम मेरा उपदेश अपने झोली में भर कर अपने जीवन को सुखी बना सकते हो । तुम्हारे प्रश्नों की सीमाओं से परे जो
और कुछ है, जो तुम्हारे
बुद्धि और तर्क से परे है वह सब कुछ मैं
तुमको प्रदान करना चाहता हूँ।
अब तक मैंने
जो तुम्हें ज्ञान, कर्म अथवा योग आदि की शिक्षा दी है वह सब भूल
जाओ, सब पूजा की विधिओं को, सब योग साधनों को और समस्त धर्मों को
भुलाकर केवल ईश्वर की शरण में इस प्रकार आ जाओ जैसे काँटों से लहुलहान और कीचड़ से
लथपथ एक बालक रोता - रोता भाग कर अपनी माँ की गोद में पनाह लेता है और जिस प्रकार
माँ उसके शरीर से सारा गन्ध और कीचड़ को धो कर उसे फिर से एक फूल की तरह निर्मल और
स्वच्छ बना देती है ठीक उसी प्रकार हे
मनुष्य ! ईश्वर तुम्हारे समस्त पापों का मैल धोकर तुझे सभी पापों से मुक्त कर
देंगे । तुझको समस्त सांसारिक बंधनों से मुक्ति दे कर तुझको शाश्वत शांति प्रदान
करेंगे ।