Dravya-Yagya on Guru Purnima
गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर द्रव्य यज्ञ का आयोजन
(आदिश्री अरुण)
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु र्गुरूदेवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
गुरु गोविन्द दोऊ एक हैं, दुजा सब आकार ।
आपा मेटैं हरि भजैं , तब पावैं दीदार ।।
गुरु और गोविंद दोनो एक ही हैं केवल नाम का अंतर है । गुरु का बाह्य (शारीरिक) रूप चाहे जैसा हो किन्तु अंदर से गुरु और गोविंद मे कोई अंतर नही है । मन से अहंकार की भावना का त्याग करके सरल और सहज होकर आत्म ध्यान करणे से सद्गुरू का दर्शन प्राप्त
होगा ।
द्रव्य यज्ञ
लोगों के कल्याण के लिए गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर द्रव्य यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है द्रव्य यज्ञ करने से भरपूर मात्रा में धन की प्राप्ति होती है। धन संकट का नाश होता होता है । वेदकेअनुसार अग्नि में जिस चीज की आहुति दी जाती है वह चीज प्रचुर मात्रा में यज्ञ करने वाले कोवापस मिलता है । जो व्यक्ति अपने हाथों से अग्नि में आहुति देगा केवल उसी को फल मिलेगा।इसलिए सभी व्यक्ति अपने हाथों से अग्नि में केवल उसी चीजों की आहुति दें जिस चीज की उन्हें कमी है ।
लोगों के कल्याण के लिए गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर द्रव्य यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है द्रव्य यज्ञ करने से भरपूर मात्रा में धन की प्राप्ति होती है। धन संकट का नाश होता होता है । वेदकेअनुसार अग्नि में जिस चीज की आहुति दी जाती है वह चीज प्रचुर मात्रा में यज्ञ करने वाले कोवापस मिलता है । जो व्यक्ति अपने हाथों से अग्नि में आहुति देगा केवल उसी को फल मिलेगा।इसलिए सभी व्यक्ति अपने हाथों से अग्नि में केवल उसी चीजों की आहुति दें जिस चीज की उन्हें कमी है ।
*पूर्णिमा का अर्थ क्या होता है ?
"पूर्णिमा" का अर्थ होता है पूर्ण आकार में चन्द्रमा का होना। "पूर्णिमा" शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया है क्योंकि गुरु पूर्णिमा के पर्व के दिन चन्द्रमा पूर्ण कला (पूर्ण आकार) में होता है।
*गुरु पूर्णिमा कब है ?
गुरु पूर्णिमा 9 जुलाई 2017 अर्थात Sunday को है।
गुरु पूर्णिमा पर क्या करें :
* यह पर्व श्रद्धा से मनाना चाहिए, अंधविश्वास के आधार पर नहीं।
* इस दिन वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर गुरु को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
* गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करें (Thoughts में) उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए। यह केवल उन लोगों के लिए है जो किसी कारण से अपने गुरूदेव के पास नहीं पहुँच सकते हैं ।
*गुरु का आशीर्वाद सभी-छोटे-बड़े लोगों के लिए कल्याणकारी तथा ज्ञानवर्द्धक होता है।
क्या करें गुरु पूर्णिमा के दिन :
* प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके तैयार हो जाएं।
* घर के किसी पवित्र स्थान पर सफेद वस्त्र बिछाना ।
* फिर गुरु के नाम को मंत्र के रूप में उच्चारण करके पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
* तत्पश्चात दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए।
* फिर गुरु के नाम मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए।
* अब अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करें (Thoughts में) उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए। यह केवल उन लोगों के लिएहै जो किसी कारण से अपने गुरूदेव के पास नहीं पहुँच सकते हैं ।
गुरु महिमा
गुरु समान दाता नहीं , याचक सीष समान ।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दिन्ही दान ।।
संपूर्ण संसार में गुरु के समान कोई दानी नहीं है और शिष्य के समान कोई याचक नहीं है । ज्ञान रुपी अमृतमयी अनमोल सम्पदा गुरु अपने शिष्य को प्रदान करके कृतार्थ करता है और गुरु द्वारा प्रदान की जाने वाली अनमोल ज्ञान सुधा केवल याचना करके ही शिष्य पा लेता है ।
गुरु को सर पर राखिये चलिये आज्ञा माहि ।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोक भय नाहीं ।।
गुरु को अपने सिर का गज समझिये अर्थात , दुनिया में गुरु को सर्वश्रेष्ठ समझना चाहिए क्योंकि गुरु के समान अन्य कोई नहीं है । गुरु की आज्ञा का पालन सदैव पूर्ण भक्ति एवम् श्रद्धा से करने वाले जीव को संपूर्ण लोकों में किसी प्रकार का भय नहीं रहता ।
कबीर ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और ।
हरि के रुठे ठौर है, गुरु रुठे नहिं ठौर ।।
कबीरदास जी कहते है कि वे मनुष्य अंधों के समान है जो गुरु के महत्व को नहीं समझते । भगवान के रुठने पर स्थान मिल सकता है किन्तु गुरु के रुठने पर कहीं स्थान नहीं मिलता है ।
गुरु शरणगति छाडि के, करै भरोसा और ।
सुख संपती को कह चली , नहीं नरक में ठौर ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि जो मनुष्य गुरु के पावन पवित्र चरणों को त्यागकर अन्य पर भरोसा करता है उसके सुख संपती की बात ही क्या, उसे नरक में भी स्थान नहीं मिलता है ।
कबीर हरि के रुठते, गुरु के शरणै जाय ।
कहै कबीर गुरु रुठते , हरि नहि होत सहाय ।।
प्राणी जगत को सचेत करते हुए कहते हैं – हे मानव । यदि भगवान तुम से रुष्ट होते है तो गुरु की शरण में जाओ । गुरु तुम्हारी सहायता करेंगे अर्थात सब संभाल लेंगे किन्तु गुरु रुठ जाये तो हरि सहायता नहीं करते जिसका तात्पर्य यह है कि गुरु के रुठने पर कोई सहायक नहीं हो सकता है ।