दुःख निवारण
आदिश्री अरुण
Destruction of sorrow / दुःख निवारण
हमारे
समय में हमारे
पेरेंट्स ने कहा
कि दुःख से
निबटने के लिए
ऐसा करो , मैंने
कहा बस करो।
हमने कभी उनसे
सबाल नहीं पूछा
कि क्यों करें
? इससे क्या होगा
? मुझे समझाओ तो मैं
करूंगा, नहीं तो
मैं नहीं करूँगा
। लेकिन आज
के जेनेरेशन को
अंडरस्टैंडिंग चाहिए कि क्यों करना है
? कैसे करना है
? ऐसा करने से
क्या होगा ? ऐसा
करने से हमको
क्या - क्या फ़ायदा
होगा ? नहीं तो
हम नहीं करेंगे ।
अर्थात लोगों को पूर्ण
रूप से इसके
फायदे समझ में
आना चाहिए तब
वो करेंगे ।
अगर उनसे यह
कहा गया कि
करो तो वे केवल
डर से करेंगे ।
लोगों ने डर
से बहुत किया
है । कई
बार वे विमार
होते हैं फिर
भी डर से
उपवास करते हैं
। कई काम
ऐसे होते हैं
जिसको वे डर
से करते हैं
। लेकिन वास्तविकता
यह है कि
कोई भी काम
या कोई भी
पूजा या कोई
भी उपवास भावना
के ऊपर निर्भर
करता है ।
अगर भावना न हो तो किए गए उस काम
से या कोई भी
पूजा से या कोई
भी उपवास से उस व्यक्ति को कोई भी लाभ नहीं मिलेगा । कल्पना करो कि
आपको किसी रिश्तेदारी में गिफ्ट
देना है
। आप डायमण्ड गिफ्ट खरीद सकते हैं और अंदर
से मन में भाव उठ रहा है कि अब देना पडेगा, नहीं दूंगा तो लोग क्या कहेंगे ? उसने भी
मेरी बहु को एक लाख रुपये का डायमण्ड गिफ्ट दिया था, क्या करूँ ? बिजनेस भी ठीक नहीं
चल रहा है, पर रिश्तेदारी में तो देना ही पड़ता है, रूपये का कहीं से व्यवस्था तो करना
ही पडेगा । चलो ! एक काम को रोकना पडेगा । पता नहीं अभी ही क्यों यह संकट आगया ? अगर
ऐसी अवस्था में आप गिफ्ट दोगे भी तो उससे क्या मिलेगा ? कुछ भी नहीं । इसको किस खाते
में डालू ? निगेटिभ
में या पोजिटिभ में ? जबाब क्या मिला ? निगेटिभ में । जरा सोचो कि जिसका फाउंडेशन ही निगेटिभ
होगा उसको मिलेगा क्या ? कुछ भी नहीं ।
इसी
तरह रस्म - रिवाज या रिचुअल्स हैं । इसके पीछे भावना क्या है ? भावना क्या होना चाहिए
? अगर मोक्ष प्राप्त करना है तो भावना क्या होनी चाहिए ? मोक्ष प्राप्ति के रस्ते में
जो अवरोधक आवे वो नष्ट हो जाय और ईश्वर की भक्ति बिना रूकावट का हो । यदि 13 वीं का
भोज नहीं खाना है तो भावना क्या होनी चाहिए ? मेरा पुण्य फल नष्ट न हो । देखना यह है
कि इसके पीछे इंटेंसन क्या है ? मेन फाउंडेशन क्या है ? देखो निगेटिभ और पोजिटिभ एक
साथ नहीं रह सकते ।
लोगों
को ज्ञान नहीं है इस कारण वो भगवान को भी अपने जैसा समझने लगे हैं । वे भगवान को लिफाफे
दिखते हैं और उनसे कहते हैं कि हे भगवन ! यदि हमारा यह काम हो जायेगा तो मैं आपको सोने
का मुकुट पहनाउंगा । आपको चादर चढ़ाऊंगा । यदि मेरा अमुक काम हो जायेगा तो मैं आपके
नाम का प्रसाद बाटुंगा । भगवान के बारे में लोग यह सोचते हैं कि भगवान को जब थोड़ा इन्सेन्टिभ मिलेगा तब वो काम करेंगे
। क्या यह सोच आपको गलत नहीं लगता है ? यह
भगवान से प्यार नहीं बल्कि बिजनेस-डील है । आप भगवान से कहते हैं कि मेरा अमुक काम
हो जाए तो मैं प्रसाद चढ़ाऊंगा जबकि वे प्रसाद का डिमांड करते नहीं हैं । अगर काम नहीं
होता है तो आप प्रसाद नहीं चढ़ाते हैं । इसका मतलब क्या हुआ ? इंटेंशन प्यार की नहीं
बल्कि स्वार्थ की है । आप जो भी कर रहे हैं पहले उसका इंटेंशन चेक करो क्योंकि सारा
खेल इंटेंशन व् भावना का ही है । आपके डिमाण्ड का फाउंडेशन Faith, Love, और प्रार्थना
पर होना चाहिए तब आपके दुखों का निवारण निश्चित ही हो जायेगा ।