कलियुग का चौथा चरण, कलियुग का अन्त एवं कल्कि अवतार
श्रीमद्देवीभागवत, स्कन्ध 6, शीर्षक "त्रिविध कर्म, युग
धर्म, तीर्थ, चित्त शुद्धि और तीर्थ की महत्ता" पेज नंबर 413 के अनुसार " जब द्वापर ख़तम हो जाता है, तब सम्पूर्ण पापी मानव नरक से खिसक कर
पृथ्वी पर छा जाते हैं । "
कलियुग और कल्कि अवतार के बारे में सही - सही तथा सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के मुख्य तीन मनुष्य तीन साधन के रूप में थे - (1) अर्जुन (2) संजय तथा (3) अभिमन्यु का पुत्र राजा परीक्षित । लेकिन इनके गलती के कारण ही लोगों को आज कलियुग और कल्कि अवतार के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना चार रूप दिखाया जो (1) प्रकाश समुद्र के जैसा रूप दिखाया (गीता 11 : 12), (2) विश्व रूप दिखाया (गीता 11 : 14 - 21), (3) चार भुजाओं वाला विष्णु रूप दिखाया (गीता 11 : 45-46) तथा (4) सौम्य रूप दिखलाया (गीता 11:49-50) । वे अर्जुन को कलियुग के बारे में भी बता रहे थे तथा कल्कि अवतार का रूप भी दिखला रहे थे लेकिन ईश्वर के इस विकराल विश्व रूप को देख कर वह व्याकुल हो गया । अर्जुन के व्याकुल हो जाने का परिणाम यह हुआ कि अर्जुन ने अपना दिव्य दृष्टि खो दिया । अगर यदि वह दिव्य दृष्टि नहीं खोता तो संभव था कि कलियुग के बारे में सब कुछ जान पाता और कल्कि अवतार को अपनी आँखों से देख पाता । यदि ऐसा हुआ होता तो आज हम लोगों के पास कलियुग और कल्कि अवतार के सम्बन्ध में सब कुछ मालूम होता, लेकिन अर्जुन ने यह अनमोल अवसर खो दिया ।
महर्षि वेद व्यास के द्वारा धृतराष्ट्र का सारथि संजय को दिव्य दृष्टि मिला था । यदि वह चाहता तो संभव था कि कलियुग के बारे में और कल्कि अवतार के बारे में सब कुछ जान सकता था और आज कलियुग तथा कल्कि अवतार के बारे में सब कुछ मालूम होता । लेकिन कौरव पांडव का भीषण संहार को देख कर तथा धृतराष्ट्र के पुत्रों का स्वर्गवास होने से वह अत्यंत शोकाकुल हो गया । अत्यंत शोकाकुल होने का परिणाम यह हुआ कि वेद व्यास जी से प्राप्त दिव्य दृष्टि को उसने खो दिया । (महाभारत, सौप्तिक पर्व, शीर्षक "युधिष्ठिर-द्रोपदी का शोक तथा अश्वथामा को मारने के लिए जाना" पेज नम्बर 1033)
विष्णु पुराण के अनुसार व्यास जी के शिष्य लोमहर्षण सूत जी के नाम से प्रसिद्द हुए । इनकी धारणा शक्ति से प्रसन्न होकर महर्षि वेद व्यास जी ने उन्हें पुराणों की संहिताएं दे दी । नैमिषारण्य में भृगुवंशी महर्षि शौनक जी के पूछने पर कि " कलि कौन है ? वह कहाँ पैदा हुआ और किस प्रकार संसार का स्वामी हो गया ? उसने उस धर्म का भी विनाश कर दिया जो नित्य अर्थात सनातन है; पर किस प्रकार ? इस विकराल काल के विनाश के लिए भगवान विष्णु ने कल्कि अवतार लिया । हम उनके पूर्ण चरित्र का वर्णन सुनना चाहते हैं जिसमें भगवान कल्कि के द्वारा कलि का नाश कर धर्म कि पुनः स्थापना का निरूपण हो, "सूत जी ने ऋषियों को बताया कि कलि और कल्कि के चरित्र के विषय में देवर्षि नारद ने ब्रह्मा जी से जानकारी पाकर व्यास जी को बताया था । व्यास जी ने इस रहस्य को अपने पुत्र ब्रह्मरात शुक को बताया । शुक ही शुकदेव जी हैं और शुकदेव जी को वैशम्पायन भी कहा जाता है ।
शुकदेव जी पांडवों के एक मात्र वंशज अभिमन्यु पुत्र विष्णुरात अर्थात राजा परीक्षित को सुनाया । उस उपदेश में भगवान के उपाख्यान का अट्ठारह हजार (18000) श्लोकों का समावेश था । महाराजा परीक्षित का सात दिन में निधन हो जाने के कारण उन सब श्लोकों का उपदेश नहीं हो पाया । यही कारण है कि कल्कि तथा कल्कि अवतार के बारे में सही - सही पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है । लेकिन सबाल यह उठता है कि महाराजा परीक्षित का सात दिन में निधन क्यों होगया ?
एक बार राजा परीक्षित आखेट हेतु वन में गये। वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने के कारण वे प्यास से व्याकुल हो गये तथा जलाशय की खोज में इधर - उधर घूमते - घूमते वे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुँच गये। वहाँ पर शमीक ऋषि नेत्र बंद किये हुये तथा शान्तभाव से एकासन पर बैठे हुये ब्रह्मध्यान में लीन थे। राजा परीक्षित ने उनसे जल माँगा किन्तु ध्यानमग्न होने के कारण शमीक ऋषि ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। सिर पर स्वर्ण मुकुट पर निवास करते हुये कलियुग के प्रभाव से राजा परीक्षित को प्रतीत हुआ कि यह ऋषि ध्यानस्थ होने का ढोंग कर के मेरा अपमान कर रहा है । उन्हें ऋषि पर बहुत क्रोध आया । उन्होंने अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से पास ही पड़े हुये एक मृत सर्प को अपने धनुष की नोंक से उठा कर ऋषि के गले में डाल दिया और अपने नगर वापस आ गये।
शमीक ऋषि तो ध्यान में लीन थे उन्हें ज्ञात ही नहीं हो पाया कि उनके साथ राजा ने क्या किया है किन्तु उनके पुत्र ऋंगी ऋषि को जब इस बात का पता चला तो उन्हें राजा परीक्षित पर बहुत क्रोध आया । ऋंगी ऋषि ने सोचा कि यदि यह राजा जीवित रहेगा तो इसी प्रकार ब्राह्मणों का अपमान करता रहेगा । इस प्रकार विचार करके उस ऋषिकुमार ने कमण्डल से अपनी अंजुली में जल ले कर तथा उसे मन्त्रों से अभिमन्त्रित करके राजा परीक्षित को यह श्राप दे दिया कि जा तुझे आज से सातवें दिन तक्षक सर्प डसेगा ।
अब ऐसी परिस्थिति में कलयुग तथा कल्कि अवतार का सही जानकारी देगा कौन ? यही कारण है कि इस समस्या को सुलझाने के लिए मुझको आपके सबके सामने आना पड़ा ताकि सम्पूर्ण मानव जाति का उद्धार हो सके ।
कलियुग के अन्त होने के समय का लक्षण निम्न प्रकार वर्णित है :
(1) कलियुग में वेद को जानने वाले कोई नहीं होंगे । धर्म बताने वाला वेद मार्ग नष्ट हो जाएगा । ब्राह्मण वेद बेचेंगे । पाखंडी लोग अपने नए - नए मत चला कर मनमाने ढंग से वेद का तात्पर्य निकालने लगेंगे ।
(2) कलियुग में पाखंडियों के कारण लोगों का चित्त भटक जाएगा । इस कारण लोग अपने कर्म और भावनाओं के द्वारा ईश्वर की पूजा से विमुख हो जायेंगे ।
(3) कलियुग में लोग भगवान नारायण की पूजा नहीं करेंगे ।
(4) लोगों का भाग्य तो बहुत मन्द होगा परन्तु मन में कामनाएँ बहुत ही अधिक होगी ।
(5) लोग माता - पिता, भाई - बन्धु और मित्रों को छोड़ कर केवल अपनी साली और सालों से ही सलाह लेने लगेंगे । जिनसे वैवाहिक सम्बन्ध है केवल उन्हीं को अपना संबंधी माना जाएगा ।
(6) लोग हमेशा रोग ग्रस्त रहेंगे । रोगों से तो उनको छुटकारा मिलेगा ही नहीं । ऐसे - ऐसे रोग फैलेंगे कि उसका इलाज संभव न हो सकेगा ।
(7) लोग नाटे कद के होने लगेंगे । वे नाना प्रकार के कुकर्मों से जीविका चलाने लगेंगे । स्त्रियों का आकार बहुत ही छोटा हो जायेगा । वह बहुत कठोर वचन बोलने वाली होगी तथा पति को अपने वश में रखेगी । स्त्रियां अपने पति के कहना में नहीं रहेगी ।
(8) गौएँ बकरियों की तरह छोटी - छोटी और कम दूध देने वाली हो जाएगी । जौ, गेहूँ, धान आदि के पौधे छोटे - छोटे होने लगेंगे ।
(9) लोगों की आयु 20 से 30 वर्ष की हो जाएगी ।
(10) लोग नकारात्मक सोच वाला हो जायेंगे । वे धर्म का सेवन केवल यश के लिए करेंगे ।
(11) जो लोग घूस देने और धन खर्च करने में असमर्थ होंगे उन्हें अदालत में ठीक - ठीक न्याय नहीं मिलेगा ।
(12) जो जितना अधिक दम्भ पाखंड करेगा वह उतना ही बड़ा पंडित समझा जायेगा । जो जितना ढिठाई से बात करेगा वह उतना ही सच्चा समझा जायेगा ।
(13) सन्यासी धन के लोभी हो जायेंगे । अर्थात वे अर्थ पिचास हो जायेंगे।
(14) राजे - महाराजे लुटेरों के सामान हो जायेंगे ।
(15) राजा कहलाने वाले लोग प्रजा की सारी कमाई हड़प कर उन्हें चूसने लगेंगे । वे कर - पे - कर लगाते चले जायेंगे जिससे प्रजा का जीवन बड़ा ही कठिन और दुखद हो जाएगा ।
(16) बिना अमावस्या के ही सूर्य ग्रहण होगा । चंद्र और तारों की चमक कम हो जाएगी ।
(17) कभी वर्षा होगी तो कभी सूखा पड़ेगी, कभी मोटी-मोटी धार वाली वर्षा होगी तो कभी बढ़ आजायेगी, कभी कड़ाके की सर्दी पड़ेगी तो कभी पाला पड़ेगा, कभी आंधी चलेगी तो कभी गर्मी पड़ेगी । धरती का तापक्रम काफी बढ़ जाएगा ।
(18) लोगों में अराजकता फैल जाएगी ।
(19) गृहस्थों के घर अतिथि सत्कार तथा वेद ध्वनि बन्द हो जायेंगे ।
(20) मनुष्य संसार के अन्त के दिनों में प्रवेश करने के लिए कदम आगे बढ़ा चुका है । इसके आगमन के बारे में कई धर्मशास्त्र ने कई भविष्यवाणियाँ की है । उसमें से एक है "एक ऐसा राजा होगा जिसमें जानवर के निशान को लागू करने की क्षमता होगी। "अब सबाल यह उठता है कि पशु (जानवर) और मनुष्य में क्या अन्तर है ? जबाब दिल थाम कर सुनिये । मनुष्य भी भोजन करता है और पशु (जानवर) भी भोजन करता है । वंश बढ़ाने के लिए मनुष्य भी सन्तान उत्पन्न करता है और वंश बढ़ाने के लिए पशु (जानवर) भी सन्तान उत्पन्न करता है । दुश्मनों से रक्षा के लिए मनुष्य अस्त्र - शस्त्र, बन्दुक, राइफल, बम इत्यादि इस्तेमाल करता है और दुश्मनों से रक्षा के लिए पशु (जानवर) भी सींग , पूछ और पैर इत्यादि का इस्तेमाल करता है । मनुष्य धर्म का पालन करता है किन्तु पशु (जानवर) धर्म का पालन नहीं करता है । इसलिए इस मौजूद समय में जो राजा होगा वह धर्म का पालन नहीं करेगा । ऐसे राजा अन्त के दिनों में आएंगे और उसके बारे में धर्मशास्त्र, प्रकाशितवाक्य 13 :1 -5 में यह भविष्यवाणी किया गया है कि "मैंने एक पशु को समुद्र में से निकलते हुए देखा (अर्थात वह राजा जहाँ रहता है वहां पर समुद्र होगा), जिसके दस सींग और सात सिर थे । यानि कि उसके पास उसके मंत्री मंडल में दस मंत्रियों (राजनेता) का सपोर्ट होगा और उसके पास सात राजा तुल्य लोगों (सात दूसरे देश के राजाओं) का सपोर्ट होगा और उसके सिरों पर निंदा के नाम लिखे हुए होंगे । जो पशु मैंने देखा वह चीते के समान था, उसके पाँव भालू के जैसा था, मुँह सिंह के जैसा था और उस अजगर ने (शैतान ने) अपनी सामर्थ्य और अपना सिंहासन और बड़ा अधिकार उसे दे दिया । मैंने उनके सिरों में से एक पर ऐसा भारी घाव लगा देखा मानो वह मरने पर है, फिर उसका प्राणघातक घाव ठीक हो गया और सारी पृथ्वी के लोग उसके पीछे - पीछे चले । लोगों ने अजगर (शैतान) की पूजा की क्योंकि उसने पशु व् जानवर को अपना अधिकार दे दिया था; यह कहा गया कि इस पशु के समान कौन है ? कौन उससे लड़ सकता है ? बड़े बोल बोलने और निंदा करने के लिए उसको एक मुँह दिया गया ।"
धर्मशास्त्र, प्रकाशित वाक्य 13 :16 -17 अन्त के दिनों के बारे में भविष्यवाणी करते हुए लोगों को चेतावनी दिया है कि अन्त दिनों के उपस्थित समय के दौरान संसार के लोगों को पशु (जानवर) सिस्टम की छाप को लेने के लिए जबरदस्ती किया जाएगा अर्थात कम्पेल किया जायेगा । अर्थात आप केवल उसी रुपए का लेन - देन करें जिस पर पशु (जानवर) का छाप हो ।
धर्मशास्त्र, प्रकाशित वाक्य, अध्याय 13 यह भविष्यवाणी करता है कि जो इस छाप को (पशु व् जानवर के छाप को) नहीं लेगा वह लेन - देन, खरीद - बिक्री नहीं कर सकता है । इस छाप वाले रूपये से (पशु व् जानवर के छाप वाले रूपये से) छुटकारा पाने के लिए आगे क्या करना पड़ेगा ? आपसे कैस व् रूपये रखने का अधिकार छीन लिया जाएगा और लेन - देन करने के लिए या किसी को पेमेंट करने के लिए आपको एलेक्ट्रोनिक - PAYTM (मशीन), ATM साधन को उपयोग में लाने के लिए कहा जाएगा । तब किसी भी व्यक्ति के धन को या रूपये को या एकाउंट को बटन दबा कर सील करना आसान हो जाएगा जो उस राजा अर्थात पशु (जानवर) के पीछे -पीछे नहीं चलेगा । अब प्रश्न यह उठता है कि क्या सच-मुच ऐसा समय आगया है ? हाँ , वर्तमान समय में आपके आगे यही घटना घट रही है और यह टेक्नोलोजी आपके देश में विकसित हो चुकी है।
कलियुग का अन्त और भगवान कल्कि का अवतार :
आप कलियुग के प्रथम चरण में नहीं बल्कि चौथे चरण में जी रहे हैं । कलियुग के चौथे चरण में लोगों की आयु 20 वर्ष की होगी और वे मर कर नरक जाएँगे । (भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, चतुर्थ खण्ड, अध्याय 24-25, शीर्षक "कलि के द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ चरणों का वृतांत तथा कल्कि भगवान का अवतार " पेज नम्बर 369 -371) ।
स्कन्द पुराण, माहेश्वर खण्ड-कुमारिका खण्ड, शीर्षक "महाकाल द्वारा करंधम के प्रश्नानुसार, श्राद्ध तथा युग व्यवस्था का वर्णन" पेज नम्बर 129 के अनुसार 27 बार कलियुग बीत चुका है । आप 28 वां कलियुग में जी रहे हैं । प्रथम सत्य युग, अंतिम सत्य युग और 28 वां कलियुग ये अन्य युगों से कुछ विशेष महत्त्व रखते हैं । 28 वां कलियुग में जो होने वाला है वह सुनो:
* कलियुग के 3290 वर्ष बीतने पर इस भूमण्डल में वीरों का अधिपति शूद्रक नाम वाला राजा होगा ।
* तदन्तर कलियुग के 3310 वें वर्ष नन्द वंश का राज्य होगा । चाण्यक नाम वाला ब्राह्मण उन नन्दवंशियों का संहार करेगा ।
* तदन्तर कलियुग के 3020 वर्ष निकल जाने पर इस पृथ्वी पर विक्रमादित्य होंगे।
* तदन्तर कलियुग के 300 से 100 वर्ष और अधिक बीतने पर शक नामक राजा होगा ।
* उसके बाद कलियुग के 3600 वर्ष बीतने पर मगध देश में हेमसदन से अंजनी के गर्भ से भगवान विष्णु के अंशावतार स्वयं भगवान बुद्ध प्रकट होंगे ।
* कलियुग के 4400 वर्ष बीतने पर चंद्र वंश में महाराज प्रमिति का प्रादुर्भाव होगा ।
* तत्पश्यात काल के प्रभाव से जब प्रजा अत्यंत पीड़ित होने लगेगी, तब भयंकर अधर्म का आश्रय ले कर शठतापूर्ण व्यवहार करेगी । कोई बंधन न रहने के कारणसब लोग लोभ से व्याप्त हो झुण्ड के झुण्ड निकल कर एक दूसरे को लूटेंगे और मारेंगे । सभी श्रम से पीड़ित हो अत्यंत व्याकुल रहेंगे । उस समय वैदिक धर्म और स्मार्त धर्म नष्ट हो जाने पर एक दूसरे के आघात से नष्ट होंगे (अर्थात टेरेरिस्ट एटैक से लोग नष्ट होंगे) । वे धार्मिक और सामजिक मर्यादा का उल्लंघन करेंगे । सब में करुणा, स्नेह और लज्जा का अत्यंत अभाव हो जाएगा । सभी लोग नाटे कद के होंगे । स्त्रियों का आकर छोटा हो जायेगा। उनकी आयु 20 - 25 की होगी। लोग अपना घर छोड़ कर नदी या समुद्र के तट पर निवास करेंगे (अर्थात नदी या समुद्र के तट पर स्थित शहर में निवास करेंगे ) ।
ऐसा समय आजाने पर भगवान विष्णु शम्भल ग्राम में विष्णु यश के घर कल्कि नाम से अवतार ग्रहण करेंगे । उनके माता का नाम सुमति तथा दादा का नाम ब्रह्म यश होगा ।
सर्व व्यापक भगवान विष्णु सर्व शक्तिमान हैं । वे सर्व स्वरुप होने पर भी चराचर जगत के सच्चे शिक्षक - सद्गुरु हैं । वे साधु - सज्जन पुरुषों के धर्म की रक्षा के लिए, उनके कर्म का बंधन काटकर उन्हें जन्म मृत्यु के चक्र से छुड़ाने के लिए अवतार ग्रहण करेंगे । उन दिनों शम्भल ग्राम में विष्णु यश नाम के श्रेष्ट ब्राह्मण होंगे, उनका ह्रदय बड़ा उदार एवं भगवत भक्ति से पूर्ण होगा। उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे ।
श्री भगवान ही अष्ट सिद्धियों के और समस्त सद्गुणों के एक मात्र आश्रय हैं । समस्त चराचर जगत के वे ही रक्षक और स्वामी हैं । वे देवदत्त नामक शीघ्रगामी घोड़े पर सवार होकर दुष्टों को तलवार के घाट उतार कर कर ठीक करेंगे । जब सब डाकुओं का संहार हो जायेगा तब नगर की और देश की सारी प्रजा का ह्रदय पवित्रता से भर जायेगा; क्योंकि भगवान कल्कि के शरीर में लगे हुए अंगराग का स्पर्श पाकर अत्यंत पवित्र हुई वायु उनका स्पर्श करेगी और इस प्रकार वे भगवान के श्रीविग्रह की गंध प्राप्त कर सकेंगे । उनके पवित्र हृदयों में सत्वमुर्ति भगवान वासुदेव विराजमान होंगे और फिर उनकी संतान पहले की भांति हिष्ट-पुष्ट और बलवान होने लगेगी । प्रजा के नयन - मनोहारी हरि ही धर्म के रक्षक और स्वामी हैं । जिस समय चन्द्रमा, सूर्य और बृहस्पति एक ही समय एक ही साथ पुष्य नक्षत्र के प्रथम पल में प्रवेश कर एक राशि पर आएंगे उसी समय सतयुग का प्रारम्भ होगा । (श्रीमद्भागवतम माह पुराण 12 ;2 :17 -22 और 24)