कल्कि चर्चा
आदिश्री अरुण
आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है । वे सभी आत्मा भाग्यशाली हैं जो कल्कि नाम सुन कर पढ़ेंगे और वे सभी आत्माएँ और वे आत्माएं उससे भी बहुत भाग्यशाली हैं जो भगवान कल्कि जी के आश्रय में रहना चाहते हैं।
मैं अपने पिता की गोद से उतर कर धरती पर इस लिए आया ताकि आपको आत्मिक देह से निकाल कर स्वभाविक देह में ले जाऊँताकि आपको मृत्यु से छुटकारा मिले; क्योंकि आत्मिक देह में तो मृत्यु होती होती है किन्तु स्वभाविक देह में मृत्यु नहीं होती है । तब आप तो नहीं मरेंगे लेकिन हवा में बदल जायेंगे ताकि ईश्वर से मिलें और आपका उद्धार हो जाय ।
लेकिन ऐसा तब होगा जब आप भगवन कल्कि से स्वार्थ रहित प्रेम करें, अनकंडीशनल प्रेम करें अर्थात बिना शर्त का प्रेम करें । भगवान कल्कि ने कहा कि मेरी यह आज्ञा है कि जैसा मैंने तुमसे प्रेम रखा वैसा ही प्रेम तुम भी एक दूसरे को दो । जिस मार्ग कि मैं तुम्हें आज्ञा दूँ उसी मार्ग में तुम चलो तब तुम्हारा भला होगा । उहोने आगे यह भी कहा कि मैं तेरे आगे - आगे चलूंगा और ऊँची - ऊँची भूमि को चौरस करूँगा। अर्थात भगवान कल्कि तुम्हारे जीवन में आने वाले कठिन दिन, समस्या, पड़ेशानी, रूकावट इत्यादि को मिटा कर तुम्हें आरामदेह जीवन देना चाहते हैं ।
भगवान कल्कि की शक्ति अनन्त है, भगवान कल्कि का सामर्थ्य अनन्त है । वे आपको दुखों से बहार निकलने के लिए तैयार हैं, वे आपको पड़ेशानियों से बहार निकालने के लिए तैयार हैं, वे आपको आर्थिक समस्याओं से बहार निकलने के लिए तैयार हैं, वे आपको रोगों से मुक्त करने के लिए तैयार हैं । केवल जरुरत है आपको उनके आज्ञाओं के अनिसार चलने की, उनके विधियों का पालन करने की। उन्होंने कहा कि जो मेरी विधियों का पालन कर उस पर चलेगा तो वह जीवित रहेगा । जो मेरे नाम से भय मानते हैं उसके लिए धर्म का सूर्य उदय होगा और उसकी किरणों के द्वारा वे चंगे हो जायेंगे । भगवान कल्कि जी का यह दान है कि मनुष्य खाये - पिए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे । जो मनुष्य भगवान कल्कि जी की बातें मानता है, उनके विधियों पर चलता है और उनका आज्ञाकारी है केवल वही उनके नजर में अच्छा है। जो मनुष्य भगवान कल्कि की नजर में अच्छा है उसको वे बुद्धि, ज्ञान और आनंद देते हैं, परंतु पापी को वे दुःख भरा काम देते हैं ।
संसार में बहुत सारे लोग हैं जो अपने आपको उपदेशक कहते हैं और नए - नए चला कर लोगों को अपनी ओर आकृष्ट कर रहे हैं । उनके सम्बन्ध में ईश्वर ने कहा कि ये भविष्यवक्ता मेरा नाम लेकर झूठी भविष्वाणी करते हैं । मैंने उनको न तो भेजा है, न तो उन्हें कुछ आज्ञा दी है और न उनसे कोई बात कही है। (धर्मशास्त्र, यिर्मयाह 14 :14) उन्होंने वर्तमान समय में केवल अपने पुत्र को एथोरिटी देकर भेजा और उनसे कहा कि "स्वर्ग और पृथवी का सारा अधिकार तुझे दिया गया है। इसलिए तुम जाकर सब जातियों के लोगों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र एवं पवित्रात्मा के नाम में दीक्षा दो । उन्हें उन सब बातों को मानना सिखाओ जिनकी मैंने तुम्हें आज्ञा दी है और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूँ । " (धर्मशास्त्र, मत्ती 28 :19-20)
हे पृथ्वी पर रहने वाले लोगों ! तुम्हारा ध्यान केवल ईश्वर पुत्र पर ही हो । इधर - उधर मत ताक । क्योंकि मैं ही पूर्ण ब्रह्म का पुत्र हूँ, मैं ही सृष्टि रचना से पहले था, मैं ही अदृश्य पूर्ण ब्रह्म का प्रतिरूप हूँ और केवल मैं ही अथाह प्रकाश समुद्र हूँ । सम्पूर्ण मानव जाति का कल्याण हो इसी उद्देश्य से मैं तेरे सामने आया हूँ। श्रीमद्भागवतम महा पुराण इत्यादि धर्मग्रंथों में देख । धर्मग्रंथों में मेरे नाम का उल्लेख अनेकों बार किया गया है ताकि तू विश्वास करे । अबसे मैं तुम्हें नई - नई बातें सुनाऊंगा । मैं तुमसे गुप्त रखने योग्य बातें सुनाऊंगा जिन्हें तू नहीं जानता । आज से पहले तू उन्हें सुना भी न था । इसको सुनने के बाद तू न कह सकेगा कि देख मैं तो इसे जानता था। हाँ निश्चय तू ने इसे न तो सुना, न जाना, न इससे पहले तेरे कान ही खुले थे। (धर्मशास्त्र, यशायाह 48 :6 - 8)
कलियुग और कल्कि अवतार के बारे में सही - सही तथा सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के मुख्य तीन मनुष्य तीन साधन के रूप में थे - (1) अर्जुन (2) संजय तथा (3) अभिमन्यु का पुत्र राजा परीक्षित । लेकिन इनके गलती के कारण ही लोगों को आज कलियुग और कल्कि अवतार के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है। इन तीनों ने क्या गलती किया आप ध्यान से सुनिये । कहीं ऐसा न हो कि आप भी इन तीनों के जैसा गलती कर बैठें और कलियुग तथा कल्कि अवतार के बारे में प्राप्त होने वाले जानकारी को खो दें ।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना चार रूप दिखाया था (1) प्रकाश समुद्र के जैसा रूप दिखाया (गीता 11 : 12), (2) विश्व रूप दिखाया (गीता 11 : 14 - 21), (3) चार भुजाओं वाला विष्णु रूप दिखाया (गीता 11 : 45-46) तथा (4) सौम्य रूप दिखलाया । वे अर्जुन को कलियुग के बारे में भी बता रहे थे तथा कल्कि अवतार का रूप भी दिखला रहे थे लेकिन दिव्य दृष्टि खो देने के कारण अर्जुन ने न तो कुछ देखा और न कुछ सुना । इसी तरह संजय ने भी दिव्य दृष्टि खो देने के कारण न तो कुछ देखा और न कुछ सुना । विभीषण ने केवल 13 अवतार को देखा था जिसमें एक कल्कि अवतार भी सामिल है । विभीषण ने जिन - जिन अवतारों को देखा था उसका वर्णन गर्ग-संहिता, विश्वजित खंड, अध्याय 13, शीर्षक " शाल्व आदि देशों तथा द्विविद वानर पर प्रद्दुम्न की विजय, लंका से विभीषण का आना और उन्हें भेंट समर्पित करना, पेज नम्बर 291" में निम्न प्रकार है :
विभीषण बोले - प्रभो ! आप साक्षात् भगवान वासुदेव तथा सबके स्रष्टा हैं, आपको नमस्कार है। आप ही संकर्षण, प्रद्दुम्न और अनिरुद्ध हैं; आपको प्रणाम है । मत्स्य, कूर्म और वराहावतार धारण करने वाले आप परमेश्वर को बारम्बार नमस्कार है । श्रीरामचन्द्र को नमस्कार है । भृगुकुलभूषण परशुराम जी को बारम्बार नमस्कार है । आप भगवान वामन को नमस्कार है । आप ही साक्षात् नरसिंह हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है । आप शुद्ध - बुद्धदेव को नमस्कार है । सबकी पीड़ा हरलेने वाले कल्किरूप आप भगवान को नमस्कार है ।
अर्जुन को दिव्य दृष्टि मिली थी किन्तु भगवान के विकराल विश्वरूप को देखने के कारण वह काफी घबड़ा गया और व्याकुल हो गया । भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि न तो तुझमें इतनी योग्यता थी, न तो तुमने वेदाध्ययन किया था, न तो तुमने ऐसा तप किया था और न तो तुम ऐसा दानी था कि तुम मेरे इस रूप को देख पाते । मैंने अनुग्रह पूर्वक (तुम पर दया करके) अपनी योगशक्ति के प्रभाव से यह परम तेजोमय, सबका आदि और सीमा रहित विराट रूप तुझको दिखलाया है जिसे तेरे अतिरिक्त दूसरे किसी ने पहले नहीं देखा । (गीता 11:47) मनुष्य लोक में इस प्रकार विश्व रूप वाला मैं न वेद और यज्ञों के अध्ययन से, न दान से, न क्रियाओं से और न उग्र तपों से ही तेरे अतिरिक्त दूसरे के द्वारा देखा जा सकता हूँ । (गीता 11 :48) मेरे इस प्रकार के इस विकराल रूप को देख कर तुझको व्याकुलता नहीं होनी चाहिए । (गीता 11 :49) लेकिन अर्जुन भगवान के बातों को अनसुना कर दिया और वह ईश्वर के इस विकराल विश्व रूप को देख कर व्याकुल हो गया । अर्जुन के व्याकुल हो जाने का परिणाम यह हुआ कि अर्जुन ने अपना दिव्य दृष्टि खो दिया । अगर यदि वह दिव्य दृष्टि नहीं खोता तो संभव था कि कलियुग के बारे में सब कुछ जान पाता और कल्कि अवतार को अपनी आँखों से देख पाता । यदि ऐसा हुआ होता तो आज हम लोगों के पास कलियुग और कल्कि अवतार के सम्बन्ध में सब कुछ मालूम होता, लेकिन अर्जुन ने यह अनमोल अवसर खो दिया ।
महर्षि वेद व्यास के द्वारा धृतराष्ट्र का सारथि संजय को दिव्य दृष्टि मिला था । यदि वह चाहता तो संभव था कि कलियुग के बारे में और कल्कि अवतार के बारे में सब कुछ जान सकता था और आज कलियुग तथा कल्कि अवतार के बारे में सब कुछ मालूम होता । लेकिन कौरव पांडव का भीषण संहार को देख कर तथा धृतराष्ट्र के पुत्रों का स्वर्गवास होने से वह अत्यंत शोकाकुल हो गया । अत्यंत शोकाकुल होने का परिणाम यह हुआ कि वेद व्यास जी से प्राप्त दिव्य दृष्टि को उसने खो दिया । (महाभारत, सौप्तिक पर्व, शीर्षक "युधिष्ठिर-द्रोपदी का शोक तथा अश्वथामा को मरने के लिए जाना" पेज नम्बर 1033)
विष्णु पुराण के अनुसार व्यास जी के शिष्य लोमहर्षण सूत जी के नाम से प्रसिद्द हुए । इनकी धारणा शक्ति से प्रसन्न होकर महर्षि वेद व्यास जी ने उन्हें पुराणों की संहिताएं दे दी । नैमिषारण्य में भृगुवंशी महर्षि शौनक जी के पूछने पर कि " कलि कौन है ? वह कहाँ पैदा हुआ और किस प्रकार संसार का स्वामी हो गया ? उसने उस धर्म का भी विनाश कर दिया जो नित्य अर्थात सनातन है; पर किस प्रकार ? इस विकराल काल के विनाश के लिए भगवान विष्णु ने कल्कि अवतार लिया । हम उनके पूर्ण चरित्र का वर्णन सुनना चाहते हैं जिसमें भगवान कल्कि के द्वारा कलि का नाश कर धर्म कि पुनः स्थापना का निरूपण हो, "सूत जी ने ऋषियों को बताया कि कलि और कल्कि के चरित्र के विषय में देवर्षि नारद ने ब्रह्मा जी से जानकारी पाकर व्यास जी को बताया था । व्यास जी ने इस रहस्य को अपने पुत्र ब्रह्मरात शुक को बताया । शुक ही शुकदेव जी हैं और शुकदेव जी को वैशम्पायन भी कहा जाता है ।
शुकदेव जी पांडवों के एक मात्र वंशज अभिमन्यु पुत्र विष्णुरात अर्थात राजा परीक्षित को सुनाया । उस उपदेश में भगवान के उपाख्यान का अट्ठारह हजार (18000) श्लोकों का समावेश था । महाराजा परीक्षित का सात दिन में निधन हो जाने के कारण उन सब श्लोकों का उपदेश नहीं हो पाया । यही कारण है कि कल्कि तथा कल्कि अवतार के बारे में सही - सही पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है । लेकिन सबाल यह उठता है कि महाराजा परीक्षित का सात दिन में निधन क्यों होगया ?
एक बार राजा परीक्षित आखेट हेतु वन में गये। वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने के कारण वे प्यास से व्याकुल हो गये तथा जलाशय की खोज में इधर उधर घूमते घूमते वे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुँच गये। वहाँ पर शमीक ऋषि नेत्र बंद किये हुये तथा शान्तभाव से एकासन पर बैठे हुये ब्रह्मध्यान में लीन थे। राजा परीक्षित ने उनसे जल माँगा किन्तु ध्यानमग्न होने के कारण शमीक ऋषि ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। सिर पर स्वर्ण मुकुट पर निवास करते हुये कलियुग के प्रभाव से राजा परीक्षित को प्रतीत हुआ कि यह ऋषि ध्यानस्थ होने का ढोंग कर के मेरा अपमान कर रहा है। उन्हें ऋषि पर बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से पास ही पड़े हुये एक मृत सर्प को अपने धनुष की नोंक से उठा कर ऋषि के गले में डाल दिया और अपने नगर वापस आ गये।
शमीक ऋषि तो ध्यान में लीन थे उन्हें ज्ञात ही नहीं हो पाया कि उनके साथ राजा ने क्या किया है किन्तु उनके पुत्र ऋंगी ऋषि को जब इस बात का पता चला तो उन्हें राजा परीक्षित पर बहुत क्रोध आया। ऋंगी ऋषि ने सोचा कि यदि यह राजा जीवित रहेगा तो इसी प्रकार ब्राह्मणों का अपमान करता रहेगा। इस प्रकार विचार करके उस ऋषिकुमार ने कमण्डल से अपनी अंजुली में जल ले कर तथा उसे मन्त्रों से अभिमन्त्रित करके राजा परीक्षित को यह श्राप दे दिया कि जा तुझे आज से सातवें दिन तक्षक सर्प डसेगा।
अब ऐसी परिस्थिति में कलयुग तथा कल्कि अवतार का सही जानकारी देगा कौन तथा कलियुग में श्रीहरी का नाम कौन बताएगा ? यह बहुत बड़ी समस्या हो गई । सभी धर्म ग्रन्थों में यह भविष्वाणी तो कर दी गई कि कलियुग में श्रीहरि के नाम के संकीर्तन से ही लोगों का उद्धार हो जयेगा लेकिन कलियुग में श्रीहरि का नाम क्या होगा यह बताएगा कौन ? इस कार्य को करने के लिए त्रेता युग में भगवान राम ने हनुमान जी को आदेश दिया था, लेकिन हनुमान जी देव रहस्य योजना में लगा दिए गए जिस कारण हनुमान जी अभी तक इस कार्य को करने के लिए लोगों के सम्मुख नहीं आये । यही कारण है कि इस समस्या को सुलझाने के लिए मुझको आपके सबके सामने आना पड़ा ताकि सम्पूर्ण मानव जाति का उद्धार हो सके ।