कौन हैं ईश्वर पुत्र अरुण ?
सृष्टि के आदि में कुछ भी नहीं था - न पृथ्वी था, न स्वर्ग था और न अंतरिक्ष था । न दृश्य था न द्रष्टा था । केवल एक मात्र पूर्ण ब्रह्म ही पूर्णरूप से प्रकाशित हो रहे थे ।सृष्टि रचना के उद्देश्य से पूर्ण ब्रह्म ने अपने आपको तीन विष्णु में विभाजित किया - (1) महा विष्णु (2) गर्वोदकासयी विष्णु (3) क्षीरदकोसयी विष्णु
महा विष्णु से जड़ प्रकृति उत्पन्न हुआ जिसको Lower Energy कहते हैं । इससे रचने का काम किया जाता है ।
गर्वोदकासयी विष्णु से चेतन प्रकृति उत्पन्न हुआ जिसको Higher Energy कहते हैं। इससे रचना फंक्शन करती है ।
क्षीरदकोसयी विष्णु को ही Super Soul परमात्मा/पहिलौठा/ईश्वर पुत्र/ईश्वर के सदृश कहते हैं और यही जर्रे - जर्रे में समाया । इसी क्षीरदकोसयी विष्णु / परमात्मा/पहिलौठा/ईश्वर पुत्र/ ने जड़ प्रकृति और चेतन प्रकृति को इस्तमाल करके (Use / यूज करके ) पूरी सृष्टि रचा । यही क्षीरदकोसयी विष्णु ही सम्पूर्ण जगत का मूल करण हैं । (गीता 7 :4-6) श्रीमद्देवी भागवत में इसी क्षीरदकोसयी विष्णु को ही ईश्वर कहते हैं तथा धर्मशास्त्र इन्हें ईश्वर पुत्र कहते हैं। धर्मशास्त्र के अनुसार पूर्ण ब्रह्म ने अपने पुत्र (ईश्वर पुत्र) के द्वारा ही सारी सृष्टि रचवाया और ईश्वर पुत्र को ही सृष्टि के सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया । (धर्मशास्त्र, इब्रानियों 1 : 2) धर्मशास्त्र ने ईश्वर पुत्र के विषय में कहा कि - वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा है। (धर्मशास्त्र, कुलुस्सियों 1 : 15)
गीता अध्याय 4 के श्लोक 6 में ईश्वर ने कहा कि - तू ऐसा समझ कि सम्पूर्ण भूत इन दोनों प्रकृतियों से उत्पन्न होने वाले हैं और मैं सम्पूर्ण जगत का प्रभव तथा प्रलय हूँ ।
क्षीरदकोसयी विष्णु जी को ही नारायण कहते हैं और ये अवतारों का अक्षय (कोष) भण्डार हैं । इन्हीं से सारे अवतार प्रकट होते हैं । (श्रीमद्भागवतम महा पुराण 1 ;3 :5) आज तक जितने भी अवतार हुए हैं सब इन्हीं के अंश से प्रकट हुए हैं । अब तक क्षीरदकोसयी विष्णु के जितने भी अवतार हुए हैं उसमें कुल 24 अवतार प्रसिद्ध हैं ।
हे भटके हुए लोगों ! तुम बताओ कि जगत में किसने महासागर को चुल्लू से मापा और किसके वित्ते से आकाश का नाप हुआ । किसने पृथ्वी के मिट्टी को नपवे में भरा और पहाड़ को तराजू में और पहाड़ियों को कांटे में तौला है ? किसने परमेश्वर की आत्मा को मार्ग बताया या उसका मंत्री हो कर उसका ज्ञान सिखाया । आपने किससे सम्पति ली और ज्ञान सिखाकर बुद्धि का मार्ग जता दिया है । (धर्मशास्त्र, यशायाह 40 :12 -14) वह आपका ईश्वर पुत्र है जो न थकता, न श्रमित होता है, उसकी बुद्धि अगम है । वह थके हुए को बल देता है और शक्तिहीन को बहुत सामर्थ देता है। (धर्मशास्त्र, यशायाह 40 :28 -29) आपका ईश्वर पुत्र ही अनंत अनगिनत प्रकाश बून्द का वह अथाह सागर है जिसमें आत्मा रूप नन्हें - नन्हें प्रकाश बून्द मौजूद है और आत्मा रूप नन्हीं प्रकाश की बूंदों को अपने अन्दर समाकर जन्म मृत्यु के चक्र से छुड़ा लेता है। वही अनामी से अगम में आया; अगम से अलख में आया; अलख से सत्य लोक में आया । सत्य लोक से भंवर गुफा में आया । भंवर गुफा को सोऽहं ब्रह्म कहते हैं । भंवर गुफा से महा शून्य में आया; महा शून्य से शून्य में आया; शून्य से मानसरोवर झील में आया; मानसरोवर झील से दसम द्वार में आया । दसम द्वार को रा रम ब्रह्म कहते हैं । दसम द्वार से त्रिकुटी में आया । त्रिकुटी को माया ब्रह्म कहते हैं । त्रिकुटी से नीचे ज्योत निरंजन पर आया । ज्योत निरंजन को ही ॐ ब्रह्म कहते हैं । ज्योत निरंजन से नीचे तीसरी आंख (THIRD EYE ) पर आया; तीसरी आंख (THIRD EYE ) से नीचे आज्ञा चक्र पर आया और आज्ञा चक्र से दोनों आखों में फ़ैल गया ।
जो ईश्वर पुत्र / क्षीरदकोसयी विष्णु सबके घट - घट में समाया उसी को SUPER SOUL कहते हैं । इसका कभी नाश नहीं होता है, ये जन्म - मृत्यु से परे है; माया से परे है; इसकी कोई जाति नहीं; इसका कोई मजहब नहीं; लोग इसको आत्मा भी कहते हैं ।