कौन हैं कल्कि अवतार ? वे क्यों घूमेंगे धरती पर ?

Kalki Puran  / कौन हैं कल्कि अवतार ? वे धरती पर क्यों घूमेंगे  ?

(ईश्वर पुत्र अरुण)  

कौन हैं कल्कि अवतार ?

श्रीमदभागवतम महापुराण  1 ;3 :6 -25 में 22 अवतारों की गणना  की गई है, परन्तु भगवान के 24 प्रसिद्द अवतार हैं। श्रीमदभागवतम महापुराण में दो अवतारों के नाम गुप्त हैं। Kalki Puran / कल्कि पुराण 1 ; 2 :7 के अनुसार दो अवतार और हैं - मरू और देवापि। 


 24 अवतारों के नाम निम्नलिखित हैं -
(1) सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार चार ब्रह्मण 
(2) सूकर  अवतार 
(3) नारद 
(4)  नर-नारायण 
(5) कपिल 
(6) दत्तात्रेय 

(7) यज्ञ 
(8) ऋषभदेव 
(9)  पृथु 
(10)  मत्स्य अवतार 
(11)  कच्छप  अवतार 
(12) धन्वंतरि 
(13) मोहिनी अवतार 
(14) नरसिंह अवतार 
(15)  वामन अवतार 
(16) परशुराम अवतार 
(17) परासर  
(18)  रामावतार 
(19) बलराम
(20) कृष्णावतार 
(21)  बुद्धा अवतार 
(22) देवापि 
(23) मरू 
(24)  कल्कि अवतार।   

कल्कि अवतार

कल्कि अवतार 64 कलाओं से युक्त हैं । महा पुराणों के अनुसार उत्तरप्रदेश के मथुरा-वृन्दावन  के बोर्डर (गौरिया मठ के पास) संभल नामक स्थान पर विष्णुयश नामक श्रष्ठ ब्राह्मण के घर माता सुमति के गर्भ से भगवान कल्कि, पुत्र रूप में जन्म लिए । कल्कि जी देवताओं के द्वारा दिए गए शीघ्रगामी घोड़े पर सवार होकर हाथ में रत्नसरु तलवार लेकर  संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन:स्थापना करेंगे।
ईश्वर के अवतार लेने का समय और ईश्वर के अवतार लेने का जो उद्देश्य  होता है वह गीता 4 : 8 में भगवान श्रीकृष्ण जी ने साफ़ - साफ़ शब्दों में वर्णन किया है। साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पापकर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए भगवान्  अवतार लेते हैं।  

श्रीमदभागवतम महापुराण 12;2:19-21  में भगवान्  कल्कि जी के अवतार लेने के उद्देश्य के बारे में भविष्वाणी किया गया है कि भगवान कल्कि जी ही जगत के रक्षक और स्वामी हैं। वे देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर दुष्टों को तलवार के घाट उतारकर ठीक करेंगे। उनके रोम - रोम से अतुलनीय तेज की किरणें   छिटकती होगी।  वे अपने शीघ्रगामी घोड़े से सब जगह (सर्वत्र) घूमेंगे (विचरण करेंगे) और राजा के वेश में छिप कर रहने वाले कोटि - कोटि डाकुयों का संहार करेंगे। तब नगर की और  देश की सारी प्रजा का ह्रदय पवित्रता से भर जाएगा; क्योंकि भगवान् कल्कि के शरीर में लगे हुए अंगराज का स्पर्श पाकर अत्यन्त पवित्र हुई वायु उनका स्पर्श करेगी और इस प्रकार वे भगवान के श्रीविग्रह की दिव्य गंध प्राप्त कर सकेंगे। 

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