शेष भाग ........ गीता सार अध्याय २ (ईश्वर पुत्र अरुण)
गीता अध्याय २ में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि लोगों का पतन किस प्रकार होता है ? इस क्रम में उन्होंने अर्जुन से कहा कि रजोगुण के बढ़ने से कामना की उत्पति होती है और कामना ही क्रोध है, यह भोगों से न अघाने वाला और बड़ा पापी है, इसको ही तू वैरी जान । उन्होंने फिर कहा कि रजोगुण के बढ़ने का कारण आसक्ति ही है और उन्होंने यह भी बताया कि आसक्ति की उत्पत्ति कैसे होती है ? उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आसक्ति विषयों का चिन्तन करने से उत्पन्न होता है । विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है , आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है । क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है, मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है, स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात ज्ञानशक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से वह अपनी स्थिति से गिर जाता है अर्थात उसका पतन हो जाता है । इसलिए मनुष्य के पतन का सबसे बड़ा कारण आसक्ति, कामना और क्रोध है । कल्याण चाहने वाले मनुष्य को इन तीनों का तत्काल ही त्याग कर देना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान योग और कर्म योग दोनों के विषय में कहा ताकि उस बुद्धि से युक्त होकर वह अपने कर्म बंधन को नष्ट कर डाले । क्योंकि इस कर्मयोग में आरम्भ का अर्थात बीज का नाश नहीं है और उल्टा फलरूप दोष भी नहीं है, बल्कि इस कर्मरूप धर्म का थोड़ा सा भी साधन जन्म मृत्युरूप महान भय से रक्षा कर लेता है । इस कर्मयोग में निश्चयात्मक बुद्धि एक ही होती है; किन्तु अस्थिर विचारवाले विवेकहीन सकाम मनुष्यों की बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत भेदोंवाली और अनंत होती है । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जिस काल में तेरी बुद्धि मोह रूप दलदल को भली भांति पार कर जाएगी, उस समय तू सुने हुए और सुनने में आने वाले इस लोक और परलोक संबंधी सभी भोगों से वैराग्य को प्राप्त हो जाएगा। अंत में उन्होंने यह कहा कि भाँति - भाँति के वचनों को सुनने से विचलित हुई तेरी बुद्धि जब परमात्मा में अचल और स्थिर ठहर जाएगी, तब तू योग को प्राप्त हो जाएगा अर्थात तेरा परमात्मा से नित्य संयोग हो जाएगा । जिस काल में मनुष्य अपने मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देगा उस काल में वह तुरत ही परमेश्वर में स्थित हो जाएगा ।