‘ईश्वर’ से तात्पर्य है “परम सत्ता ” ; ‘देवता’ नहीं । ‘देवता’ एक अलग शब्द है । “वह तेजस्वियों का तेज, बलियों का बल, ज्ञानियों का ज्ञान, मुनियों का तप, कवियों का रस, ऋषियों का गाम्भीर्य और बालक की हंसी में विराजमान है। ऋषि के मन्त्र गान और बालक की निष्कपट हंसी उसे एक जैसे ही प्रिय हैं। वह शब्द नहीं भाव पढता है, होंठ नहीं हृदय देखता है, वह मंदिर में नहीं, मस्जिद में नहीं, प्रेम करने वाले के हृदय में रहता है। बुद्धिमानों की बुद्धियों के लिए वह पहेली है पर एक निष्कपट मासूम को वह सदा उपलब्ध है। वह कुछ अलग ही है। पैसे से वह मिलता नहीं और प्रेम रखने वालों को कभी छोड़ता नहीं। उसे डरने वाले पसंद नहीं, प्रेम करने वाले पसंद हैं। वह ईश्वर है, सबसे अलग पर सबमें रहता है।
वह परम पुरुष जो निस्वार्थता का प्रतीक है, जो सारे संसार को नियंत्रण में रखता है, हर जगह मौजूद है और सब देवताओं का भी देवता है , एक मात्र वही सुख देने वाला है । जो उसे नहीं समझते वो दुःख में डूबे रहते हैं, और जो उसे अनुभव कर लेते हैं, मुक्ति सुख को पाते हैं । (ऋग्वेद 1.164.39)
यह सारा संसार एक और मात्र एक ईश्वर से पूर्णतः आच्छादित और नियंत्रित है । इसलिए कभी भी अन्याय से किसी के धन की प्राप्ति की इच्छा नहीं करनी चाहिए अपितु न्यायपूर्ण आचरण के द्वारा ईश्वर के आनंद को भोगना चाहिए । आखिर वही सब सुखों का देने वाला है । यजुर्वेद 40.1
ऋग्वेद 10.48.1
एक मात्र ईश्वर ही सर्वव्यापक और सारे संसार का नियंता है । वही सब विजयों का दाता और सारे संसार का मूल कारण है । सब जीवों को ईश्वर को ऐसे ही पुकारना चाहिए जैसे एक बच्चा अपने पिता को पुकारता है । वही एक मात्र सब जीवों का पालन पोषण करता और सब सुखों का देने वाला है ।
ऋग्वेद 10.48.5
ईश्वर सारे संसार का प्रकाशक है । वह कभी पराजित नहीं होता और न ही कभी मृत्यु को प्राप्त होता है । वह संसार का बनाने वाला है । सभी जीवों को ज्ञान प्राप्ति के लिए तथा उसके अनुसार कर्म करके सुख की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए । उन्हें ईश्वर की मित्रता से कभी अलग नहीं होना चाहिए ।
ऋग्वेद 10.49.1
केवल एक ईश्वर ही सत्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करने वालों को सत्य ज्ञान का देने वाला है । वही ज्ञान की वृद्धि करने वाला और धार्मिक मनुष्यों को श्रेष्ठ कार्यों में प्रवृत्त करने वाला है । वही एकमात्र इस सारे संसार का रचयिता और नियंता है । इसलिए कभी भी उस एक ईश्वर को छोड़कर और किसी की भी उपासना नहीं करनी चाहिए ।
यजुर्वेद 13.4
सारे संसार का एक और मात्र एक ही निर्माता और नियंता है । एक वही पृथ्वी, आकाश और सूर्यादि लोकों का धारण करने वाला है । वह स्वयं सुखस्वरूप है । एक मात्र वही हमारे लिए उपासनीय है ।
कुरान :
कुरान :
इस्लाम में शहादा का जो पहला भाग है उसे लिया जाये : ला इलाहा इल्लल्लाह (सिर्फ और सिर्फ एक अल्लाह के सिवाय कोई और ईश्वर नहीं है ) इस्लाम में अल्लाह को छोड़कर और किसी को भी पूजना शिर्क (सबसे बड़ा पाप ) माना जाता है ।
बाईबल :
यहोवा यों कहता है, “ बुद्धिमान अपनी बुद्धि पर घमण्ड न करे, न वीर अपनी वीरता पर , न धनी अपने धन पर घमण्ड करे;
परन्तु जो घमण्ड करे वह इसी बात पर घमण्ड करे, कि वह मुझे जानता और समझता हे, कि मैं ही वह यहोवा हूँ, जो पृथ्वी पर करुणा, न्याय और धर्म के काम करता है; क्योंकि मै इन्हीं बातों से प्रसन्न रहता हूँ। ” - बाईबल, यिर्मयाह (9:23,24)
ईश्वर हमें अपने से बात करने के लिए आमंत्रित करता है। हमसे जुड़ी बातों मेंअपने आप को संलग्न रखता है। हमें शुरू में एक दूसरे के लिए काम करने की जरूरत नहीं है और न ही हमें विनम्र,सही और पवित्र कार्य में संलग्न होने की जरूरत है। प्रेम करना और हमें स्वीकार करना ,जब हम उनके पास जाएँ, ईश्वर का स्वभाव है।
“ जितने यहोवा को पुकारते हैं, अर्थात जितने उसको सच्चाई से पुकारते हैं; उन सबों के वह निकट रहता है। ”
भजन संहिता (145:18)
हम जो कुछ भी बनाते हैं वह उन वस्तुओं से बनती हैं जो अस्तित्व में है या पहले की सोच द्वारा बनायी जाती है। ईश्वर में उन चीजों के बारे में बातें करने की क्षमता है जिनका अस्तित्व है।उनके पास केवल आकाशगंगा और जीवन रूप ही नहीं, बल्कि आज की समस्याओं का समाधान भी है। ईश्वर हमारे लिये सृजनात्मक है। ईश्वर चाहता है कि हम उनकी शक्ति से परिचित हों और उसपर निर्भर हों।
“ हमारा प्रभु महान और अति सामर्थी है; उसकी बुद्धि अपरम्पार है।”
( भजन संहिता 147:5 )
“ मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर लगाऊंगा। मुझे सहायता कहां से मिलेगी ? ”
“ मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है, जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है॥”
( भजन संहिता 121:1,2)
“ तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है; उससे भोले लोग समझ प्राप्त करते हैं।”
“तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।” (भजन संहिता (119:130,105)
‘’जितने तेरी बाट जोहते हैं उन में से कोई लज्जित न होगा; परन्तु जो अकारण विश्वासघाती हैं वे ही लज्जित होंगे॥” ---- (भजन संहिता 25:3 )
गीता :
जिस परमेश्वर से सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुई है और जिससे यह समस्त जगत् व्याप्त है, उस परमेश्वर की अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परम सिद्धि को प्राप्त हो जाता है (गीता 18:46)
ईश्वर ने कहा कि वह परमात्मा विभागरहित एक रूप से आकाश के सदृश परिपूर्ण होने पर भी चराचर सम्पूर्ण भूतों में विभक्त प्रतीत होता है ; तथा वह जानने योग्य परमात्मा विष्णु रूप से भूतों का धारण - पोषण करने वाला और रूद्र रूप से संहार करने वाला तथा ब्रह्मा रूप से सबको उत्पन्न करने वाला है। (गीता 13:16)
सिख धर्म (गुरुग्रंथ साहिब) :
सिख एक ही ईश्वर को मानते हैं, जिसे वे एक-ओंकार कहते हैं। उनका मानना है कि ईश्वर अकाल और निरंकार है। सिखमत की शुरुआत ही "एक" से होती है। सिखों के धर्म ग्रंथ में "एक" की ही व्याख्या हैं। एक को निरंकार, पारब्रह्म आदिक गुणवाचक नामों से जाना जाता हैं। निरंकार का स्वरूप श्री गुरुग्रंथ साहिब के शुरुआत में बताया है जिसको आम भाषा में 'मूल मन्त्र' कहते हैं।
ओंकार, सतिनाम, करतापुरख, निर्भाओ, निरवैर, अकालमूर्त, अजूनी, स्वैभंग
इस की प्राप्ति ज्ञान द्वारा होती है, इस लिए "गुर परसाद" पर मूल मन्त्र समाप्त होता है।
सिख धर्म की शुरुआत ही आतम ज्ञान से होती है। आत्मा क्या है? कहा से आई है? वजूद क्यों है? करना क्या है इतिहादी रूहानियत के विशे सिख प्रचार द्वारा पढाये जाते हैं। आत्मा के विकार क्या हैं, कैसे विकार मुक्त हो। आत्मा स्वयम निरंकार की अंश है। इसका ज्ञान करवाते करवाते निरंकार का ज्ञान हो जाता है।
हुक्मे अंदर सब है बाहर हुक्म न कोए।
जो हिता है हुकम में ही होता है। हुक्म से बाहर कुछ नहीं होता।
ईश्वर पुत्र अरुण :
जो व्यक्ति ईश्वर पुत्र अरुण के उपदेश में विश्वास रखता है और यह स्वीकार करता है कि केवल एक ही परमात्मा हैं जो सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता हैं, जो सभी मनुष्य की आत्मा हैं और जो सभी आध्यात्मिकता के निकलने वाले झरना स्रोत के उद्गम के स्रोत हैं, केवल वही व्यक्ति आदिश्री फेथ के अंतर्गत हैं।
बाईबल :
यहोवा यों कहता है, “ बुद्धिमान अपनी बुद्धि पर घमण्ड न करे, न वीर अपनी वीरता पर , न धनी अपने धन पर घमण्ड करे;
परन्तु जो घमण्ड करे वह इसी बात पर घमण्ड करे, कि वह मुझे जानता और समझता हे, कि मैं ही वह यहोवा हूँ, जो पृथ्वी पर करुणा, न्याय और धर्म के काम करता है; क्योंकि मै इन्हीं बातों से प्रसन्न रहता हूँ। ” - बाईबल, यिर्मयाह (9:23,24)
ईश्वर हमें अपने से बात करने के लिए आमंत्रित करता है। हमसे जुड़ी बातों मेंअपने आप को संलग्न रखता है। हमें शुरू में एक दूसरे के लिए काम करने की जरूरत नहीं है और न ही हमें विनम्र,सही और पवित्र कार्य में संलग्न होने की जरूरत है। प्रेम करना और हमें स्वीकार करना ,जब हम उनके पास जाएँ, ईश्वर का स्वभाव है।
“ जितने यहोवा को पुकारते हैं, अर्थात जितने उसको सच्चाई से पुकारते हैं; उन सबों के वह निकट रहता है। ”
भजन संहिता (145:18)
हम जो कुछ भी बनाते हैं वह उन वस्तुओं से बनती हैं जो अस्तित्व में है या पहले की सोच द्वारा बनायी जाती है। ईश्वर में उन चीजों के बारे में बातें करने की क्षमता है जिनका अस्तित्व है।उनके पास केवल आकाशगंगा और जीवन रूप ही नहीं, बल्कि आज की समस्याओं का समाधान भी है। ईश्वर हमारे लिये सृजनात्मक है। ईश्वर चाहता है कि हम उनकी शक्ति से परिचित हों और उसपर निर्भर हों।
“ हमारा प्रभु महान और अति सामर्थी है; उसकी बुद्धि अपरम्पार है।”
( भजन संहिता 147:5 )
“ मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर लगाऊंगा। मुझे सहायता कहां से मिलेगी ? ”
“ मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है, जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है॥”
( भजन संहिता 121:1,2)
“ तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है; उससे भोले लोग समझ प्राप्त करते हैं।”
“तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।” (भजन संहिता (119:130,105)
‘’जितने तेरी बाट जोहते हैं उन में से कोई लज्जित न होगा; परन्तु जो अकारण विश्वासघाती हैं वे ही लज्जित होंगे॥” ---- (भजन संहिता 25:3 )
गीता :
जिस परमेश्वर से सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुई है और जिससे यह समस्त जगत् व्याप्त है, उस परमेश्वर की अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परम सिद्धि को प्राप्त हो जाता है (गीता 18:46)
ईश्वर ने कहा कि वह परमात्मा विभागरहित एक रूप से आकाश के सदृश परिपूर्ण होने पर भी चराचर सम्पूर्ण भूतों में विभक्त प्रतीत होता है ; तथा वह जानने योग्य परमात्मा विष्णु रूप से भूतों का धारण - पोषण करने वाला और रूद्र रूप से संहार करने वाला तथा ब्रह्मा रूप से सबको उत्पन्न करने वाला है। (गीता 13:16)
सिख धर्म (गुरुग्रंथ साहिब) :
सिख एक ही ईश्वर को मानते हैं, जिसे वे एक-ओंकार कहते हैं। उनका मानना है कि ईश्वर अकाल और निरंकार है। सिखमत की शुरुआत ही "एक" से होती है। सिखों के धर्म ग्रंथ में "एक" की ही व्याख्या हैं। एक को निरंकार, पारब्रह्म आदिक गुणवाचक नामों से जाना जाता हैं। निरंकार का स्वरूप श्री गुरुग्रंथ साहिब के शुरुआत में बताया है जिसको आम भाषा में 'मूल मन्त्र' कहते हैं।
ओंकार, सतिनाम, करतापुरख, निर्भाओ, निरवैर, अकालमूर्त, अजूनी, स्वैभंग
इस की प्राप्ति ज्ञान द्वारा होती है, इस लिए "गुर परसाद" पर मूल मन्त्र समाप्त होता है।
सिख धर्म की शुरुआत ही आतम ज्ञान से होती है। आत्मा क्या है? कहा से आई है? वजूद क्यों है? करना क्या है इतिहादी रूहानियत के विशे सिख प्रचार द्वारा पढाये जाते हैं। आत्मा के विकार क्या हैं, कैसे विकार मुक्त हो। आत्मा स्वयम निरंकार की अंश है। इसका ज्ञान करवाते करवाते निरंकार का ज्ञान हो जाता है।
हुक्मे अंदर सब है बाहर हुक्म न कोए।
जो हिता है हुकम में ही होता है। हुक्म से बाहर कुछ नहीं होता।
ईश्वर पुत्र अरुण :
जो व्यक्ति ईश्वर पुत्र अरुण के उपदेश में विश्वास रखता है और यह स्वीकार करता है कि केवल एक ही परमात्मा हैं जो सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता हैं, जो सभी मनुष्य की आत्मा हैं और जो सभी आध्यात्मिकता के निकलने वाले झरना स्रोत के उद्गम के स्रोत हैं, केवल वही व्यक्ति आदिश्री फेथ के अंतर्गत हैं।
ईश्वर समस्त सृष्टि का अकेला स्रष्टा, पालनहार और शासक हैं। उसी ने पृथ्वी, आकाश, चन्द्रमा, सूर्य, सितारे और पृथ्वी पर रहने वाले सारे इंसानों एवं प्रत्येक जीव-जन्तुओं को पैदा किया। उसे न तो खाने-पीने और सोने की आवश्यकता पड़ती है, है और न ही उसका कोई साझी ही है। किन्तु वह सदा एक अद्वितीय ही है। उससे भिन्न दूसरा कोई भी नहीं है। वह अपने काम में किसी की भी सहायता नहीं लेता, क्योंकि वह सर्वशक्तिमान है। यजुर्वेद 32/3 में इस प्रकार कहा गया है —
" न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महदयश " अर्थात जिस प्रभु का बड़ा प्रसिद्ध यश है उसकी कोई प्रतिमा नहीं।
ईश्वर पुत्र अरुण के मतानुसार परमेश्वर के अनुभूति का सिद्धान्त
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REAL GOLOK DHAM ANAMI – ADI – SAT /
PARAM PURUSH
वास्तविक गोलोक धाम अनामी - आदि सत /
परम पुरुष
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DAYAL SACH – KHAND – AGAM
दयाल सच्च-खंड अगम
दयाल सच्च-खंड अगम
– ALAKH (Vaikunth)
अलख (बैकुण्ठ)
– SAT LOK
सत लोक
अलख (बैकुण्ठ)
– SAT LOK
सत लोक
MAHA KAAL / PAAR – BRAHM SUPER CAUSAL – BHAWAR GUPHA
महा काल / पार - ब्रह्म सुपर काउजल भंवर गुफा
-MAHA SUNN
महा सुन्न
महा सुन्न
-SUNN
सुन्न
सुन्न
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KAAL KAAL / BRAHMAND / TRIPLE WORLDS CAUSAL – DASAM DWAR
काल काल / ब्रह्माण्ड /तीनों लोक काउजल दसम द्वार
काल काल / ब्रह्माण्ड /तीनों लोक काउजल दसम द्वार
– TRIKUTI
त्रिकुटी
त्रिकुटी
SUBTLE – SAHAS DAL KANWAL
सबटेल सहस - दल - कंवल
सबटेल सहस - दल - कंवल
-Third Eye or Single Eye तिसरी आँख या केवल एक आँख
PHYSICAL - AGYA CHAKRA & BELOW
फिजिकल आज्ञा चक्र और इससे नीचे