इतिहास को देखो तो आपको तुरन्त ही यह पता चल जाएगा कि जब-जब संकट आता है तब-तब उसका निवारण करने वाली शक्ति भी जन्म लेती है । मनुष्य के जीवन का चालक है भय (डर) । मनुष्य सदा ही भय का कारण ढूंढ लेता है। जीवन में आप जिन मार्गों का चुनाव करते हैं, वो चुनाव भी आप भय के कारण ही करते हैं। किन्तु क्या यह भय वास्तविक होता है? भय का अर्थ है आने वाले समय में विपत्ति की कल्पना करना। किन्तु क्या आप जानते हैं कि समय का स्वामी कौन है ? न आप समय के स्वामी हैं और न आपके शत्रु। समय तो केवल ईश्वर के अधीन चलता है। तो क्या कोई यदि आपको हानि पहुँचाने के लिए केवल योजना बनाये तो क्या वे आपको वास्तव में हानि पहुँचा सकता है ? नहीं । यह परम सत्य है कि भय से भरा हुआ ह्दय आपको अधिक हानि पहुँचा सकता
है ।
विपत्ति के समय भयभीत ह्दय अयोग्य निर्णय करता है और विपत्ति को अधिक पीड़ादायक बनाता है। किन्तु विश्वास से भरा ह्दय विपत्ति के समय को भी सरलता से पार कर जाता है - आदिश्री अरुण