ईश्वर का सन्देश सिर्फ आपके लिए


मैं तेरी पूजा इसलिए स्वीकार नहीं करता हूँ क्योंकि जब तुम अपने माता - पिता की पूजा नहीं कर सका जो रात - दिन तुम्हारे आँखों के सामने रहते हैं तो तुम मेरी पूजा  क्या करोगे ? जिसको तुम इन आँखों से देख भी नहीं सकते । जब तुम अपने माता - पिता का आज्ञाकारी नहीं बन सका तो तुम मेरा आज्ञाकारी किस प्रकार बन सकते हो ?
उस इंसान का मैं कभी भी नहीं सुनता और न उसके करीब आता जो अपने माता - पिता से ऊँची आवाज में बात करता है, उसका निरादर करता है और उसे दुत्कारता है । क्योंकि जो इंसान अपने माता - पिता का इज्जत नहीं कर सकता वह मेरी इज्जत क्या करेगा ? इस कारण मैं तुमसे सच कहता हूँ कि प्रेम ही मेरा वरदान है और यदि तुम मुझसे कुछ पाए हो तो अपने प्रेम का प्रमाण दो ।
याद रखो - जो निर्दोष व्यक्ति को दोष लगता है उस मुर्ख को उसका पाप दौड़ कर उसी के पास आता है और वह पाप की मजदूरी प्राप्त करता है। जिस प्रकार वायु के रुख की ओर फेंकी हुई धूल सहज ही अपने ऊपर आ पड़ती है - आदिश्री अरुण

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