हकिकत

आदि श्री अरुणजब से इस पृथ्वी ग्रह पर मानवजाति का जन्म हुआ है, तब से मनुष्य ने हमेशा यह समझने की कोशिशें  की है कि प्राकृतिक व्यवस्था कैसे काम करती है, रचनाओं और प्राणियों के ताने-बाने में इसका अपना क्या स्थान है और  आखि़र खु़द जीवन की अपनी उपयोगिता और उद्देश्य क्या है ? इसी सच्चाई की  तलाश में, मुद्दत से  संस्कृतियों पर फैली हुई संगठित धर्मो ने मानवीय जीवन शैली की संरचना की है। उसने  एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में ऐतिहासिक धारा  का निर्धारण भी किया है ।
कुछ धर्मो की बुनियाद चन्द लिखित पंक्तियों व आदेशों पर आधारित है जिनके बारे में उनके अनुयायियों का दावा है कि वह खुदाई या ईश्वरीय साधनों से मिलने वाली शिक्षा का सारतत्व है जब कि अन्य धर्म की निर्भरता केवल मानवीय अनुभवों पर ही आधारित रही है ।
क़ुरआन, बाइबल, और वेद  जो  आस्था का मूल  स्रोत है एक ऐसी किताब है जिसको लोग  पूरे तौर पर ईश्वर या खु़दाई या आसमानी साधनों से आया हुआ मानते हैं। इसके अलावा धर्म ग्रंथों  के बारे में लोगों का यह विश्वास कि इसमें  मानवजाति के लिये निर्देश मौजूद है और ईश्वर या अल्लाह का  पैग़ाम हर ज़माने, हर दौर के लोगों के लिये और वर्तमान दुनिया के लोगों के लिए मौजूद  है। 
मानव इतिहास में एक युग ऐसा भी था जब ‘‘चमत्कार‘‘ या चमत्कारिक वस्तु मानवीय ज्ञान और तर्क से आगे हुआ करती थी लेकिन आज लोग धर्म ग्रन्थों और कुरआन में लिखी बातों का अनुमोदन करते हैं कि सृष्टि का उद्गम  ‘‘बिग बैंग‘‘ के अनुकूल है। वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि सृष्टि में आकाशगंगाओं के निर्माण से पहले भी सृष्टि का सारा द्रव्य एक प्रारम्भिक वायुगत रसायन (gas) की अवस्था में था, संक्षिप्त में यह कि आकाशगंगा के निर्माण से पहले वायुगत रसायन अथवा व्यापक बादलों के रूप में मौजूद था जिसे आकाशगंगा के रूप में नीचे आना था सृष्टि के इस प्रारम्भिक द्रव्य के विश्लेषण में गैस से अधिक उपयुक्त शब्द ‘‘धुंआ‘‘ है। प्राचीन संस्कृतियों में यह माना जाता था कि चांद अपना प्रकाश स्वयं व्यक्त करता है। विज्ञान ने हमें बताया कि चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है फिर भी यह वास्तविकता आज से चौदह सौ वर्ष पहले पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में बता दी गई है।
बड़ा पवित्र है वह जिसने आसमान में बुर्ज ( दुर्ग ) बनाए और उसमें एक चिराग़ और चमकता हुआ चांद आलोकित किया ।( अल. क़ुरआन ,सूर: 25 आयत 61)
पवित्र क़ुरआन में सूरज के लिये अरबी शब्द ‘‘शम्स‘‘ प्रयुक्त हुआ है। अलबत्ता सूरज को ‘सिराज‘ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है मशाल (torch) जबकि अन्य अवसरों पर उसे ‘वहाज‘ अर्थात् जलता हुआ चिराग या प्रज्वलित दीपक कहा गया है। इसका अर्थ ‘‘प्रदीप्त‘ तेज और महानता‘‘ है। सूरज के लिये उपरोक्त तीनों स्पष्टीकरण उपयुक्त हैं क्योंकि उसके अंदर प्रज्वलन combustion का ज़बरदस्त कर्म निरंतर जारी रहने के कारण तीव्र ऊष्मा और रौशनी निकलती रहती है। चांद के लिये पवित्र क़ुरआन में अरबी शब्द क़मर प्रयुक्त किया गया है और इसे बतौर‘ मुनीर प्रकाशमान बताया गया है ऐसा शरीर जो ‘नूर‘ (ज्योति) प्रदान करता हो। अर्थात, प्रतिबिंबित रौशनी देता हो। एक बार पुन: पवित्र क़ुरआन द्वारा चांद के बारे में बताए गये तथ्य पर नज़र डालते हैं, क्योंकि निसंदेह चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है बल्कि वह सूरज के प्रकाश से प्रतिबिंबित होता है और हमें जलता हुआ दिखाई देता है। पवित्र क़ुरआन में एक बार भी चांद के लिये‘, सिराज वहाज, या दीपक जैसें शब्दों का उपयोग नहीं हुआ है और न ही सूरज को , नूर या मुनीर‘,, कहा गया है। इस से स्पष्ट होता है कि पवित्र क़ुरआन में सूरज और चांद की रोशनी के बीच बहुत स्पष्ट अंतर रखा गया है, जो पवित्र क़ुरआन की आयत के अध्ययन से साफ़ समझ में आता है।  जब आप सभी धर्म ग्रन्थ पढ़ेंगे तो आपको मालूम होगा कि सभी धर्मग्रंथों में एक ही वास्तविकता छिपी हुई है जो एक ही ईश्वर के द्वारा भिन्न - भिन्न समयों में भिन्न - भिन्न भाषाओँ में भिन्न - भिन्न लोगों के लिए एक  ही बात  लिखी गई  है। 
इसलिए लोगों को यह मान लेना चाहिए कि सभी धर्मग्रन्थ ईश्वर की प्रेरणा से ही लिखी गई है और सभी लोगों को सभी धर्मगर्न्थों को श्रद्धा एवं निष्ठा से पढ़ना चाहिए। 

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