लक्ष्य क्यों बनाएँ ?


अपने वास्तविक जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए एक लक्ष्य को निर्धारित करना अत्यन्त आवश्यक है चाहे किसी चीज को हासिल करने की हो या चाहे अच्छा नौकरी पाने की हो। चाहे प्रतियोगिता परीक्षा में पास करने की हो या चाहे ईश्वर की प्राप्ति करने की हो।  
एक लक्ष्य ही है जो व्यक्ति को एक सही दिशा देता है या सही मार्गदर्शन करता है लक्ष्य ही उसे बताता है कि कौन सा काम उसके लिए जरूरी है और कौन सा नहीं। यदि लक्ष्य स्पष्ट हों तो हम उसके मुताबिक अपने आप को तैयार कर सकते  हैं हमारा  अचेतन मन  हमें उसी के अनुसार कार्य  करने के लिए प्रेरित करता है दिमाग में यदि लक्ष्य साफ हो तो उसे पाने के रास्ते भी साफ नजर आने लगते हैं और मनुष्य  उसी दिशा में अपने कदम को बढा देता है। जिस किसी व्यक्ति ने सफलता हासिल की है या जिस किसी व्यक्ति ने ईश्वर को प्राप्त किया है उसके पीछे केवल एक मात्र लक्ष्य का ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ईश्वर की प्राप्ति के सम्बन्ध में भी आदिश्री ने लक्ष्य को निर्धारित करने के लिए परामर्श दिया है। उन्होंने साफ - साफ लब्जों में कहा कि लक्ष्य को निर्धारित किये बिना परमेश्वर  की प्राप्ति नहीं की जासकती है। इसका कारण यह है कि जब आप परमेश्वर को प्राप्त करने के लिए आप आगे बढ़ेंगे तब उसी समय रास्ते में आकृष्ट करने वाली बहुत से चीज सामने आयेंगे जैसे नाम, सोहरत, रुपये या फिर जिन्दगी बेहतर बनाने के बहुत से अवसर इत्यादि - इत्यादि। यदि आपका कोई लक्ष्य नहीं है तो आप पथ भ्रष्ट हो जायेंगे।           
आदिश्री अरुण जी ने लक्ष्य बनाने के मुख्य चार कारण बताए  हैं जो निम्नलिखित वर्णित हैं -
(1) सही दिशा में आगे बढ़ने के लिएयदि आपको पता हो कि आपको कहाँ जाना है तो  आप वहां पहुँच जायेंगे जरा  सोचिये अगर आपको यह नहीं पता है  कि आप को कहाँ जाना है तो भला आप क्या करेंगे ? इधर उधर भटकने में ही समय व्यर्थ नष्ट हो जायेगा। इसी तरह इस जीवन में भी यदि आपने अपने लिए लक्ष्य नहीं बनाया है तो आपकी ज़िन्दगी तो चलती रहेगी पर जब  बाद में आप पीछे मुड़ कर देखेंगे तो शायद आपको पछतावा होगा  कि आपने कुछ भी प्राप्त नहीं किया। यह अकाट्य सत्य है कि लक्ष्य व्यक्ति को एक सही दिशा देता है लक्ष्य ही उसे बताता है कि कौन सा इत्यादि उसके लिए जरूरी है और कौन सा काम जरूरी नहीं है। यदि लक्ष्य स्पष्ट हों तो हम उसके मुताबिक अपने आप को तैयार करते हैं
(2) अपनी उर्जा का सही उपयोग करने के लिए : परमेश्वर  ने इन्सान को सीमित उर्जा और सीमित समय दिया है ।इसलिए यह  जरूरी हो जाता है कि हम इसका उपयोग करें और सही तरीके से करें। लक्ष्य हमें ठीक यही काम  करने के लिए  प्रेरित करता है। अगर आप अपने अंतिम लक्ष्य  रख कर कोई काम करते हैं तो उसमें आपका कंसंट्रेशन  और एनर्जी  का  लेवल काफी अच्छा होता है वनिस्पत अंतिम लक्ष्य को बिना ध्यान में रखे काम करने से। उदाहरणार्थ, जब आप किसी  लाइब्रेरी  में बिना किसी खास मकसद से किताब को पढने  के लिए जाते हैं तो आप यूँ ही कुछ किताबों को उठाएंगे  और उनके पन्ने पलटेंगे । यदि आप कसी खास प्रोजेक्ट  रिपोर्ट  को पूरा करने के मकसद से जाएंगे  तो आप उसके मतलब की ही किताबें चुनेंगे और अपना काम पूरा करेंगे। दोनों ही परिस्थिति  में आप समय उतना ही देते हैं पर आपकी  एफिशिएंसी  में जमीन-आसमान का फर्क होता है। इसी तरह यदि जीवन  में भी अगर हमारे सामने कोई निश्चित लक्ष्य नहीं है तो हम यूँ ही अपनी एनर्जी  बर्वाद  करते रहेंगे और नतीजा कुछ भी नहीं निकलेगा । लेकिन इसके विपरीत, जब हम लक्ष्य को ध्यान में रखेंगे तो हमारी एनर्जी  सही जगह उपयोग होगी और हमें सही रिजल्ट देखने को मिलेंगे।
(3) सफल होने के लिए: जो कोई एक सफल व्यक्ति बनना चाहता है उसके  लिए सफलता   हासिल करने का उपाय  लक्ष्य के  द्वारा ही निर्धारित होता  है । यदि आपका कोई लक्ष्य नहीं है तो आप एक बार को औरों के नज़र में सफल हो सकते हैं परन्तु  खुद की नज़र में आप कैसे निर्णय  करेंगे कि आप सफल हैं या नहीं ?  इसके लिए आपको अपने द्वारा ही तय किये हुए लक्ष्य को देखना होगा। इसलिए सफलता प्राप्त करने के लिए सबसे पहले लक्ष्य बनाना परम आवष्यक है ।

(4) अपने मन के विरोधाभाष को दूर करने के लिए:  हमारे  जीवन  में कई अवसर आते हैं और जाते  हैं । कोई चाह कर भी सभी के सभी अवसरों  का फायदा नहीं उठा पाता है  । अवसरों के मिलने के वावजूद भी  कभी हाँ तो कभी ना करते हैं । ऐसी परिस्थिति में  हम निर्णय ही  नहीं कर पाते हैं कि हमें क्या  करना चाहिए ? ऐसी परिस्थिति में आपका लक्ष्य ही आपको मार्गदर्शन  कर सकता है । जैसे मेरी पत्नी  का लक्ष्य एक  ब्यूटी  पार्लर  खोलने का है और  ऐसी परिस्थिति  में अगर आज उसे एक ही साथ दो जॉब -ऑफर्स  मिलें - जिसमें से एक किसी पार्लर से हो और दूसरा सेल काउंटर पर हो । तो वह बिना कुछ सोचे, बिना  किसी संदेह  किये वह पार्लर का जॉब  ज्वाइन कर लेगी, भले ही वहां उसे दुसरे ऑफर  के तुलना में कम तन्खा क्यों न  मिले । वहीँ अगर सामने कोई लक्ष्य नहीं  हो तो वह  तमाम फैक्टर्स  को एवेलुएट  करते रह जाएगी   और अंत में  शायद ज्यादा वेतन ही निर्णय का कारने का मुख्य कारण बन जाएगा ।

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